शुक्रवार, 16 अप्रैल 2010

कहीं यादों की परतें खुलने लगी हैं.....





माथे
पर चढ़ गयी है त्योरियां
खून उतर आया है आंखों में
तमतमा गए है चेहरे कई
भींच गयी हैं मुट्ठियाँ

तीखी हो गयी है जबान की धार भी
सज गए है चाकू छुरियां
संभाल लिए है भाले बर्छियां
चढ़ गए कांधे पर तीर कमान

म्यान से निकल पड़ी है तलवारें
ढाल की आड़ लिए पहन लिए है बख्तरबंद
तेल पिला दी गयी हैं सभी लाठियाँ
दुनाली का रुख भी है अब इसी तरफ़

कहीं यादों की परतें खुलने लगी हैं
जख्मों की सीवन उधड़ने लगी है ......



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9 टिप्‍पणियां:

  1. यह तो रौद्र मुद्रा है राजस्थान के रण बाकुरों का -कोई नयी हल्दी घाटी की रणभेरी तो नहीं यह ?

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  2. ab to bas ye do dharmon ke beech hoti jung me hi hoa hai...kranti..bhool hi jao...

    http://dilkikalam-dileep.blogspot.com/

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  3. अरे भाई ई कौन सी आर्मी है जो लाठी-डंडा , चाकू छुरी, भाला बरछी, तीर कमान, तलवार ढाल , दुनाली तमंचा सबसे लड़ती है.....
    कमाल है....कोई नया फ़ोर्स होगा....
    हाँ नहीं तो...!!

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  4. bahut sundar rachna

    bandhai aap ko is ke liye

    ari bat haldi hati ki to mujhe nahi lagta hki ye haldi gati ka photo he


    shekhar kumawat

    http://kavyawani.blogspot.com

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  5. म्यान से निकल पड़ी है तलवारें
    ढाल की आड़ लिए पहन लिए है बख्तरबंद
    तेल पिला दी गयी हैं सभी लाठियाँ
    दुनाली का रुख भी है अब इसी तरफ़
    baap re.... geet kaise gaun ? yahi to aalam hai aaj ka.....
    abhivyakti achhi hai

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  6. कहीं यादों की परतें खुलने लगी हैं
    जख्मों की सीवन उधड़ने लगी है ......
    सुन्दर पंक्तियाँ

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  7. मैं तो कुछ अलग ही देख रहा हूँ अभिव्यक्ति का तेवर !
    इस ब्लॉग पर कविताएं सज रही है क्रमशः ! अच्छा लग रहा है ! आभार ।

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