सोमवार, 6 अगस्त 2012

झील होना भी एक त्रासदी है!






 



कुछ घंटों की अजमेर यात्रा में कुछ देर  आना सागार झील  के किनारे भी खड़े रहने का मौका मिला  . उमस भरी गर्मी में प्राकृतिक दृश्यों के  साथ   झील से होकर आती ठंडी बयार का लुत्फ़ लेना प्रारंभ ही किया था कि बदबू का तेज झोंका नाक को छू गया . पास खड़े एक स्थानीय  नागरिक ने बताया कि पूरे शहर की नालियों का गन्दा पानी इसी झील में आकर मिलता है , तो यह दुर्दशा होनी स्वाभाविक है  . झील के किनारे सुन्दर बाग़ में  पशुओं की सुन्दर आकृतियाँ , मीरा की मूर्ति लगा कर इसे खूबसूरत बनाने का प्रयास किया गया है  परंतु झील के अस्तित्व के लिए  आवश्यक  जल की शुद्धता और स्वच्छता   पर ध्यान दिया जाना था. उसकी ही कोई परवाह नहीं ...नीचे झाँक कर देखा झील का पानी काई के कारण हरियाया था और मनो कूड़ा करकट झील के किनारे पड़ा था.  प्लास्टिक की  बोतलें , जूते -चप्पल , कपड़े और ना जाने क्या -क्या  . दूषित जल झील में नहीं आये यह प्रशासन की जिम्मेदारी है  किंतु किनारे पड़ा कूड़ा करकट पर्यटकों की मेहरबानी है . झील की बेबसी पर दुःख भी हुआ . वह स्वयं तो अपने किनारे पड़े कचरे को साफ़ नहीं कर सकती  ना ही दूषित जल के बहाव को रोक सकती है . नदी होती तो और बात थी , सब कूड़ा करकट समेट ले जाती ...दूषित मानसिकता /आरोपों/ आक्षेपों को झेलते   स्त्रियाँ भी ऐसी झील हो जाती है .  स्त्रियों को नदी ही होना चाहिए , झील नहीं . झील होना भी एक त्रासदी है !  झील के किनारे खड़े "झील से प्यार करते हुए " शरद कोकास और उनके प्रशंसक भी स्मृति में रहे )

झील होना भी एक त्रासदी है!

भूगर्भ में हुई आग्नेय हलचलें 
कभी जन्म देती हैं झीलों को  
कभी नष्ट भी कर देती हैं  
निर्माण और अवसान के मध्य        
शांत गहरे नीले पारदर्शी  जल के किनारे
मुग्ध ठगे दृग  
झीलों के निष्कलंक सौन्दर्य से !!

आप्लावित कुंठित निर्मित दीवारों ने 
निर्मल जल को घेर कर   
निर्मित कर ली कृत्रिम झीलें 
तब भी वे उतनी ही शांत पारदर्शी थी ...









 उछाले कंकड़ बनाते थे जितनी शीघ्रता से भंवर
 अंक में भर कर त्वरित गति से                                
वैसे ही बिसरा देती थी  निर्मल झीलें  !
मगर कूड़ा जो अब किनारे पर 
अटका पड़ा है काई बनकर 
झील  का गहरा नीला रंग 
हल्का होता रह गया  है हरा ...
हवा के झोंके के साथ बतकही करते       
किनारे खड़े मुसाफिर की बढ़ी हुई नाक में 
गंधाती है झीलें  !

अपनी बढ़ी हुई नाक लेकर 
मुंह फेरने से गंध पीछा नहीं छोड़ती 
कि गंधाने में कुसूर झील का नहीं नाक का है 
जो बढ़ते हुए झील के किनारे तक जा पहुंची!
 झील स्वयं चल कर नहीं आती नाक तक .

झीलों के हाथ नहीं है कि बढ़ कर नाक ही दबा दे 
गंधाने की बतकही  ख़तम कर दे सिरे से ही !
झील के शांत निर्मल नीले जल के लिए 
किनारे खड़े मुसाफिर अपने हाथों को बढ़ाये 
और बीन लाये वह कूड़ा 
जो फेंका है हममें से ही 
किसी किनारे खड़े मुसाफिर ने  !


42 टिप्‍पणियां:

  1. स्त्रियाँ झील हो , नदी हो या फिर हो समंदर ,जो भी हो वे स्वयं तो निर्मल ही होती हैं और उन्हें दूषित करने वाले पे उनका कोई जोर नहीं होता | हाँ! वेगवान हो तो मलिनता को अपने वेग से ठहरने नहीं देतीं , बस |

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  2. बड़ी सार्थक और सन्देश परक प्रविष्टि ! झील और स्त्री की शुचिता से खिलवाड़ करता संसार एक दिन बहुत पछतायेगा !

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  3. स्त्री झील ही है तभी तो सारा कूड़ा करकट समेटते हुए खुद को और जग को निर्मलता प्रदान करती है...बहुत सार्थक संदेश देती सुन्दर प्रस्तुति..वाणी जी मेरी नई पोस्ट में आप का स्वागत है..

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  4. झील से स्त्रियॉं की तुलना करते हुये सार्थक संदेश दिया है .... प्रेरक और संदेश देती सुंदर रचना

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  5. झीलों दुर्दशा पर प्रशासन का ध्‍यान नहीं जाता है बस वहां मूर्तिया स्‍थापित करने में ही ध्‍यान रहता है।

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  6. झील खुद चल कर नहीं आती नाक तक ... यही तो मुसीबत है . कोई नहीं कहता कि यह त्रासदी हमने दी है , आसान होता है कहना कि वह झील बेकार है, गन्दी है . झील सी निर्मलता नदी में हो , मनुष्य में हो , जानवरों में ..... वह त्रासदी ही है .
    स्त्री को तो आरम्भ से सीता और गंगा के उदाहरण दिए गए , सीता धरती में समा गईं , गंगा की स्थिति भी सर्वज्ञात है

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  7. बेह्तरीन अभिव्यक्ति ...!!
    शुभकामनायें.

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  8. बेहद सार्थक और सटीक अभिव्यक्ति ।

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  9. बेहद सशक्‍त भावों के साथ ... उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति .. आभार

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  10. झील की यंत्रण को बाखूबी और बहुत ही प्रभावी से उठाया है आपने इस रचना में ... सच तो ये है की झीलें और तालाब आज सूखते जा रहे हैं इसी के चलते ...
    हम लोगों को ही कोचना होगा इस विषय पे ...

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  11. झील बन कर रहना, सब स्वयं में समाहित कर लेना, जीवन के कठिन पड़ावों ं में सहज रहना, सब के सब बहुत कठिन है।

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  12. झील और नदियों के प्रदूषण से प्रशासन अनजान ही रहना चाहते हैं..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  13. स्त्री तो नदी ही होती है...जबरन उसे झील में तब्दील कर दिया जाता है...
    शरद जी की इस कविता श्रृंखला की हर कविता मुझे भी बहुत पसंद है.

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  14. क्या झील और क्या नदियाँ ? उनके दूषित होने में हाथ तो हमारा ही है. हम उसकी शुचिता का सम्मान करें तो वे हमारे लिए निर्मल बन कर रहेंगी नहीं तो गंदगी के बदले हमें ही गंदगी ही मिलेगी. एक सार्थक सन्देश देती रचना.

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  15. Padhke laga ki,kaash! Jheelen ya dadiyan,swayam hee pratikar kar sakteen!

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  16. सार्थक संदेश ..... प्रस्तुती भी उतनी ही अच्छी ......

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  17. मैंने नरभक्षी झीलों को भी देखा है,दलदल और पंक वाली झीलों से आदमी को भी सावधान रहना चाहिए

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  18. बहुत खूब....
    सार्थक भाव लिए सुन्दर रचना...
    सादर
    अनु

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  19. विचारणीय प्रश्न, प्रभावी कविता! जन-सामान्य में जानकारी और ज़िम्मेदारी की कमी और प्रशासन की अकर्मण्यता मिलकर किसी भी झील, नदी या पूरे देश को गन्दा कर सकती है।

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  20. बेहद प्रेरक संदेश देती सार्थक भाव लिए बेहतरीन प्रस्तुति,,,,

    RECENT POST...: जिन्दगी,,,,

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  21. ठीक ऐसी ही दशा हमारे हैदराबाद के हुसेंसागर झील की भी है |

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  22. हमने तो गंगा के वेगवान प्रवाह को नहीं बख्शा, ठहरे जल की कौन परवाह करे?

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  23. प्रकृति के प्रति हमारी संवेदनहीनता को आपने इस रचना के माध्यम् से दर्शाकर लोगों को जो जागरूक करने का प्रयास किया है, वह सराहनीय है।

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  24. आपने सही कहा है...झील को स्वच्छ भी उन्हे बनाना है जिन्होंने इन्हें दूषित किया है..हर पर्यटक स्थल पर ऐसे स्वयंसेवी या गाइड होने चाहियें जो कूड़ा कचरा फेंकने वाले लोगों को दंडित करें.

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  25. त्रासदी की त्रासदी को उभारा है आपने.. जो अब केवल इसी के लिए ही अभिशप्त है..

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  26. झील ही नहीं नदी होना भी एक त्रासदी है.. दिल्ली में जब जमुना को मेरी बेटी ने देखा तो मुझसे पूछने कगी कि इतना बड़ा नाला यहाँ कैसे आया.. तब यह विचार आया मन में कि हमने कालिंदी को काली-नदी बना डाला.. मगर झील सी गहरी आँखें कहने में भी अब डर लगता है.. बहुत ही खूबसूरत कविता, आपकी अन्य कविताओं की ही तरह!!

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  27. झील से स्त्री की तुलना नयी है...अच्छी भी है.

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  28. झील का बहाने बहुत ही बढ़िया सार्थक चिंतन ...

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  29. सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  30. पकृति के प्रशंसकों ने ही अपनी व्यावसायिक बुद्धि के कारण नदियों, झीलों को गंदा किया है। पहले झील की सुंदरता पर मुग्ध हुए फिर आस पास घर बना लिया। व्यवसायिक बुद्धि आई तो सडकें होटल बनते गये। गंदगी का क्या करें सबसे आसान चलो नदियों, झीलों में बहा दें। कौन देखता है? धीरे-धीरे गंदगी का अंबार लगता गया। गंगा हो या नैनीतात। कंचनजंगा की पहाडियाँ हों या रोहतांग दर्रा सभी प्राकृतिक स्थलों को हम गंदा किये जा रहे हैं और खुद को प्रकृति प्रेमी भी कहते चले आ रहे हैं।

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  31. स्त्रियों को नदी होना चाहिए झील नहीं। झील होना एक त्रासदी है। ..वाह!

    ..झील हो तो साथ वृक्षों का मिले, पंछियों का मिले, पहाड़ों का मिले। लोभी मनुष्यों का न मिले।

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  32. प्रकृति की दी नेसर्गिक सुंदरता को नष्ट करने के लिए जिस तरह हम तत्पर हैं उससे अगली पीढ़ी के लिए नदी, झील जैसे बिंब शायद ही किसी कवि हृदय को उल्लासित कर पाएँ।

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  33. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें आभार तिरंगा शान है अपनी ,फ़लक पर आज फहराए
    एक निवेदन सभी महिला ब्लोग्गर्स से-आपको शिखा कौशिक के एक नए ब्लॉग ''WORLD'sWOMAN BLOGGERS ASSOCIATION -JOIN THIS NOW ''का लिंक दे रही हूँ यहाँ जुड़ें और महिला शक्ति को संगठित होने का सुअवसर दें.

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  34. बेहतरीन प्रस्तुति। स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ।वन्दे मातरम्...

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  35. तो आजकल आप पर्यटन पर हैं.....?

    वह कवि ही क्या जो प्रकृति का ह्रास देख द्रवित न हो जाये .....
    कभी यही झील उपमा का जरिया बनती थी और आज त्रासदी .....


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  36. प्रेरक संदेश, सार्थक आलेख।

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  37. सचमुच ....पर कब भीतर सब कुछ समाहित कर लेने की क्षमता रहे

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