हिंद युग्म प्रकाशन ने मुकेश कुमार सिन्हा और अंजू (अनु) चौधरी के सयुंक्त संपादन में "कस्तूरी :"काव्य संकलन प्रस्तुत किया है जिसमे उन्होंने 24 काव्य- सुगंधियों को शामिल किया है . २२ अगस्त को दिल्ली में होने वाले कार्यक्रम में इस पुस्तक के विमोचन की तैयारियां यहाँ जोरो पर है .
पुस्तक परिचय में इस काव्य संग्रह का नाम कस्तूरी इस अर्थ में सार्थक हो गया है . जैसे मृग अपनी नाभि में कस्तूरी लिए इसकी खुशबू के लिए भटकता है , यह काव्य संग्रह भी इन कवि /कवियित्रियों के विचारों के रंग और शब्दों की खुशबू से सरोबार है . कस्तूरी मे एक साथ ही विचारों , भावनाओं और कल्पनाओं के विभिन्न रंग भक्ति , शक्ति ,मौसम की बहार , परम्परा की धारा , आधुनिकता का लिबास , विश्वास , इन्तजार किसी के लौट आने का , कही वियोग की छाया , कही टूटन की पीडा , कही भरपूर आत्मविश्वास , इन्द्रधनुष - से सिमटे हुए हैं .
संपादक द्वय अपने इस संकलन को अपने विचार , प्रेम , आत्मविश्वास और सहयोगी साथियों के साथ मिलजुल का बनाये गये आशियाने जैसा ही मानते हैं ....
" हम तो यूँ ही इस जमी पर आये थे
अकेले ही
खुद ब खुद एक काफिला बना
विचारों का
सोचा ना था यूँ साथ मिलेगा कुछ अपनों का
और कुछ अपने जैसों का
ना
इमारत की
ख्वाहिश थी
ना सपनों के महल की ही जरुरत थी
थी तो बस मुट्ठी भर प्यार की
अपना यह आशियाना सजाने की !
हर
ह्रदय में अपूर्व सुगंध भरी है
सम्बन्ध जोड़ने के बाद
तुम सब कस्तूरी मृग हो
फिर भी भागते फिरते खोजते हो खुद को
अंजू जी लिखती हैं .
कस्तूरी काव्य संकलन में जाने -पहचाने श्रेष्ठ काव्य रचनकारों के साथ युवा दखल को भी शामिल किया गया है . इस पुस्तक में शामिल कवि /कवयित्रियों की रचनाओं का क्रमवार परिचय इस प्रकार है --
1. अजय देवगिरे --पहली ही कविता " जाने वो किधर है " कस्तूरी की खुशबू की मानिंद है . जिसकी तलाश में निकले हैं , जाने वो किधर है .
प्रेम कवितायेँ हर शै में महबूब का ही दीदार कराती हैं तभी तो सिवा प्रेम के कुछ और नजर नहीं आता , इनकी कविता " तू ही तू है " .
प्रेम कवितायेँ हर शै में महबूब का ही दीदार कराती हैं तभी तो सिवा प्रेम के कुछ और नजर नहीं आता , इनकी कविता " तू ही तू है " .
अगर तुम होते , इश्क खुमारी , तुझमे खो जाऊं में सर्वत्र प्रेम ही प्रेम है .
२. अमित आनंद पाण्डेय -- हर मानव अपने विचारों के द्वंद्व से घिरा है , वह सन्दर्भ है , सार भी , मुखर है तो मौन भी . इसी विविधता को अपनी पहचान बताते हैं अमित अपने में हैरान है कि वह सन्दर्भ भी है और सार भी मुखर है तो मौन भी .
मेरी कोमल तितली ईश्वर ने तुम्हे सिर्फ रंगीन पंख दिए हैं न कान नहीं दिए शायद ...कोई सदा महबूब तक नहीं जाती या फिर पुकार नहीं पाती . (कस्तूरी सा खयाल ) .
मेरी कोमल तितली ईश्वर ने तुम्हे सिर्फ रंगीन पंख दिए हैं न कान नहीं दिए शायद ...कोई सदा महबूब तक नहीं जाती या फिर पुकार नहीं पाती . (कस्तूरी सा खयाल ) .
माँ बुनती है हर साल उम्मीदों के सूत से गर्म लोई .सूत और लोई का बिम्ब माँ के अहसासों और दुआओं में अपने बच्चों के प्रति प्रेम को दर्शाता है . साथ ही किसी कोने से यह भय भी झांकता है कि ठण्ड तो हर वर्ष रहेगी मगर क्या माँ भी .. !.
बरसात हमेशा बहार की आहट नहीं है " आज की बारिश " में शहर में हुए धमाके की अँधेरी काली रात में डरे सहमे बच्चे माँ से पूछते हैं पिता के अब तक घर ना आने का सबब और इस पूछने में छिपे भय का दर्द रीढ़ की हड्डी में सिहरन पैदा करता है .
3. आनंद द्विवेदी --जीवन एक "रंगमंच " है और हम सब इसके किरदार . प्रकृति ने जो किरदार दिए हैं , वह ठीक से निभाए जाएँ , जीवन उसके जीने में सार्थक है , क्या, क्यों के प्रश्न में नहीं !
हमारी दुनिया में मौसम बदलता है मगर प्रेम नहीं , कुछ लम्हे उसकी दुनिया में कैद होकर रह जाते हैं , आखिरी कैद प्रेमी की जंग है शरीर
की जंजीरों से पार गुजर जाने की .
अपनी कविता " हरसिंगार " में प्रेम के खुशबू बनकर स्वयं में रच बस जाने का सन्देश देती है .
4.राहुल तिवारी -- मेरे घर कृष्ण आये , कल हो न हो की चिन्ता मे है,
चाँद ने पूछा बादल से . इनकी कविता " पुराने पेड मे नये पत्ते " प्रभावित करती है . पेड पर लगने वाले नये पत्ते पेड का इतिहास नही जानते , बदलते मौसम ने किस तरह पुराने पत्ते विदा होते गये और पेड बस खडा देखता ही रहा , इन पत्तो ने
नहीं देखा था , मगर जब वे स्वयम नये पत्तो को पुराना होते पेड से बिछडते देखते हैं तब वृक्ष की व्यथा से परिचित हो जाते हैं , समय सब दिखा देता है .
5. गुन्जन अग्रवाल अपनी कविता में पूछती है कि उनके प्रेम और हमारे प्रेम मे अन्तर कैसा है ..जब हर पुरुष प्रेम मे कृष्ण है , स्त्री राधा है तो हमारा प्रेम भी तो उन प्रभु जैसा पारलौकिक ही तो हुआ , हममे से ही किसी को तो हमने अपना ईश्वर चुना .अवतार मनुष्य रूप मे ही तो थे, तो फ़िर हमारे प्रेम को भर्त्सना क्यो मिले , वह भी तो उतना ही आध्यात्मिक , पारलौकिक हो सकता है , जैसा कि राम , कृष्ण य ऐसे किसी अन्य अवतार का था क्योंकि ये अवतार हम जैसे इंसानों के मध्य से ही
चुने गये थे .
अपने प्रेम को विराट होने के अर्थ मे कह्ती है "
मेरा प्रेम बौनासाई नही , कदम्ब है . "
द्रुपद पुत्री पान्चाली के अर्जुन के प्रेम मे पांच पतियो के बीच विभक्त होने के बलिदान की व्यथा उनसे एक पाती पान्चाली के नाम लिखवा लेती है.
6. गुरमीत सिंह ...मीत तखल्लुस से लिखने वाले गुरमीत पुरानी बस टिकट , कॉफ़ी का बिल , चॉकलेट के रैपर मे , पुराने खतो मे सम्भाले है यादो को , बेजार होकर कह्ते है ...कागज़ के टुकडो के दिल नही होते या फ़िर कही ये यादे , वो प्रेम ही तो सिर्फ़ कागज़ी नही था .
ठहरी सी जिन्दगी में थोड़ी हलचल मच जाए , थोडा नादानी से जी ले चलो कुछ तूफ़ानी करते है . सर्दियो मे महबूब के साथ बिताये दो लम्हे " काश ऐसे बीत जाये , काश बीत गये होते " वो शाम कुछ अजीब थी " गीत की याद दिलाते है.
इनकी कविता अजनबी मे कवि आईना देखने से डरता है कि कही आईना उसे अजनबी ना दिखा दे . ग़ज़ल कुछ बातें में "यार मिलते हैं यारी नहीं , दिल मिलते है दिलदारी नही" में रिश्तो के दोहरेपन मे खोये है !
7. जैसबी गुरजीत सिंह की कवितायेँ इतंजार , प्रेम मे मै तेरे अनलिखे खत सा पढ लिय जाता हू, वो नींद से जगाने वाला ख्वाबों मे अपनी तकदीर बना लेता है , ख्वाब टूट जाने से पहले .
प्रेम को मैने पाला है एक गम छिपाकर दुनिया की नजर से.
प्रेम के कुछ कतरे संभाले हैं इन्होने यादों के !
8. डॉ . वन्दना सिंह .. स्वगत-प्रलाप मे मन की तराजू पर तुलते हुए सोचती है ..मौन से उबर कर निकले शब्द कही खोखले तो नही .
मन को मजबूत बनने की प्रेरणा देती है...सम्भल से मन !
मां कविता हर पुत्री की उस पीडा को दर्शाती है जब वह अपनी माँ को उस तरह नही सहेज पाती जिस तरह माँ ने उसे
संभाला था.
संघर्ष भरे जीवन मे
तूफानों को मन मे दबाये अकेले चलने को विवश आदमी के कम या ख़त्म होते उत्साह की व्यथा दर्शाती है . वन्दना जी की एक गज़ल "ख्वाब " संकलन मे सम्मिलित की गयी है ,
एहतियातन कर लिया उससे किनारा मैने .
9. नीलिमा शर्मा --. इनकी कविता नई नवेली नई दुल्हन के उल्लासित मगर घबराये मन की भावना को प्रकट
करती है जो अजनबी -से नए संसार में अपने प्रिय की बाट जोहता है .
संबोंधन में कशमकश है प्रेमी- प्रेमिका या पति -पत्नी के बीच , वे एक दूसरे को क्या कह कर पुकारें . आप तुम या तू . तय यह ही होता है कि किसी संबोधन को त्याग कर दोनों एक दूसरे को नाम से ही पुकारें ताकि दोनों की नजरों में एक दूजे में समाने पर भी पृथक अस्तित्व का भान बना रहे , कुछ छूट जाने का भय ना रहे.
जीवन की आपाधापी में यथार्थ और पलायन एक साथ चलते हैं .
ये हमारी जिंदगी एक दूसरे से ही है .
कविता के जन्म की कविता बन जाने से पूर्व शब्दों की गुथमगुत्थी में कविता के जन्म होने से पूर्व की प्रसव पीड़ा का संकेत देती है .
लोंग कहते हैं ...प्रियतम की छवि से मुग्ध है कि प्रातः प्रभु के दर्शन क्यों करू जब मेरे सम्मुख कोई कृष्ण -सा है!
10. नीलम पुरी -- प्रेम का होना , छूट जाना , आस बन्धना, टूट जाना दो प्रेमियो के बीच नितान्त व्यक्तिगत मामला है .वे प्रेम को
दूसरों के समक्ष निरीह नहीं दिखाना चाहती ...
किसी से भी ना कहना ,कह्ती है वे " मुझसे मत कहना" मे .
कोई बेवफ़ा यू ही नही होता साबित करती है कविता " बेवफ़ा हू तो क्या , वादाखिलाफ़ी की मैने तुम्हारे लिये मे बेवफ़ा होने का इल्ज़ाम सिर पर लेते हुए .
कोई बेवफ़ा यू ही नही होता साबित करती है कविता " बेवफ़ा हू तो क्या , वादाखिलाफ़ी की मैने तुम्हारे लिये मे बेवफ़ा होने का इल्ज़ाम सिर पर लेते हुए .
रूठी -रूठी प्रियतमा से मनुहार है कविता मे , मै
रूठ जाउ तुम मनाती रहो .
इनकी
भी एक गज़ल " ख्वाब " शमिल है ..ख्वाब आये तो नींद आ जाये !
11. पल्लवी सक्सेना -- अपनी कविता जीवन रूपी अग्नि में प्रश्न करती है कि कच्ची मिट्टी के घड़े और सुराही शीतल जल के लिए एक ही आंच पर पकते हैं तो जीवित रहने की जद्दोजहद में स्त्री और पुरुष के लिए समाज के मापदंड भिन्न क्यों है . जीवन नारी के लिए अग्निपरीक्षा- सा क्यों है ?
यादों में भीगा मन कविता मन समंदर के किनारे स्मृतियों की लहरें कभी मीठी कभी खरी , तृप्ति की परिभाषा लिखती हैं .
सागर एक रूप अनेक में अलसुबह से देर रात तक सागर अपने कई रंग बदलता है . उसके बदलते रूप के लावण्य से मोहित लोंग रात के सन्नाटे में समंदर की चीख ,लहरों के आर्तनाद को महसूस नहीं कर पाते . प्रेम हँस कर बांटा है , मगर ग़म अकेले ही पिया सागर ने !
12. बोधमिता -- इस संकलन में सम्मिलित इनकी कवितायेँ रिश्तों को परिभाषित करती है , कही वे माँ है , कही बेटी भी . इनकी रचनाओं में सृजनकर्ता माँ सृजन की प्रक्रिया में
फूल और काँटों को अलग करती स्वयं लहूलुहान होती है , मगर होठों पर फिर भी मुस्कान सजी है.
माँ से बोली बेटी में बेटी माँ से अपने अस्तित्व के पूर्ण विकास के लिए गहरे समन्दर में
उतरने की अनुमति चाहती है , भीतर कही भयभीत है कि माँ का वात्सल्य- प्रेम कही बरगद की वह घनी छाँव ना हो जाय जिसके नीचे कोई दूसरा पौधा पनप नहीं सकता .
माँ -बेटे में बेटे के जाने के बाद उसे याद करती माँ है तो बिटिया में बिटिया को उन्मुक्त परवाज़ देना चाहने वाली माँ भी है .
कविता युवा वास्तविक जीवन के रिश्तों को उपेक्षित कर अंतरजाल की आभासी दुनिया में उलझे युवा वर्ग पर दृष्टि रखती है तो दर्द में ब्याहता अपने पति को साथी के रूप में देखना चाहती है , अभिभावक के रूप में नहीं !
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9789381394144&ref=15ac47da-
क्रमशः ...कस्तूरी ...एक दृष्टि (2)
कस्तूरी की महक लगता है दीवाना बना देगी......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा वाणी जी...
दूसरी कड़ी की प्रतीक्षा है....
सादर
अनु
२४ को २ किश्तों में समेटने का ख्याल क्यों आया आपको ?
जवाब देंहटाएंसंकलन में २४ और समीक्षा में १२ की दर से , कहीं अंकशास्त्र का दखल तो नहीं हुआ इस मामले में :)
समीक्षा विस्तृत और हौसले बढाने वाली है संकलन का इंतज़ार रहेगा ! संकलन के प्रकाशकों संपादकों और रचनाकारों को हार्दिक शुभकामनाएं !
दो किश्तों में पढने पर सभी रचनाकारों को पूरी तवज्जो मिल पाने का विचार भी रहा !
हटाएंकस्तूरी पर समग्र दृष्टि -आगतांक प्रतीक्षित!
जवाब देंहटाएंबोधमिता नीलम पुरी, नीलिमा गुरमीत |
जवाब देंहटाएंअमितानंद राहुल अजय, जैसबी गुरजीत |
जैसबी गुरजीत, आनन्द वन्दना गुन्जन |
रचें पल्लवी गीत, करे पाठक मन-रंजन |
अंजू बन्धु मुकेश, बहुत आभारी रविकर |
शुभ कस्तूरी गंध, विमोचन हो बढ़-चढ़ कर ||
dineshkidillagi.blogspot.com
आभार !
हटाएं:)...ravikar sir shama baandh diya aapne..
हटाएंabhar!
यह सारे समारोह तभी आयोजित हो रहे हैं जब मैंने दिल्ली छोड़ दिया है.. और इतनी दूर से तथा नए उत्तरदायित्व के दबाव में इनमें भाग लेना भी संभव नहीं.. किन्तु आपके माध्यम से इनका सजीव परिचय पाकर वहाँ उपस्थित होने का आनंद प्राप्त होता है.. शुभकामनाएं कि इस कस्तूरी की सुगंध दासों दिशाओं को सुवासित करे!!
जवाब देंहटाएंइनमें से अधिकांश नाम ऐसे हैं जिनकी रचनाओं तक शायद पहुंच न हो पाई है। अच्छा लगेगा इन्हें पढ़ना, आपकी समीक्षा तो प्रोत्साहित कर ही रही है।
जवाब देंहटाएंएक समीक्षक के रूप में भी आपने अपनी सिद्धहस्त लेखनी का कमाल दिखाया है।
बधाई।
सार्थक संग्रह कस्तूरी!! शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंVani di:) nihal ho gaya main:)
जवाब देंहटाएंजानकर अच्छा लगा कि हिंदयुग्म आज भी सक्रीय है।
जवाब देंहटाएंप्रकाशित कवियों को बधाई और शुभकामनाएं..
समीक्षा का रंग भी गहरा है .... बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंबढिया,
जवाब देंहटाएंशुभकामनाएं
बहुत ही अच्छी समीक्षा
जवाब देंहटाएंसंकलन में सम्मिलित रचनाकारों एवं सम्पादक द्वय को हार्दिक शुभकामनाएं !!
बहुत खूबसूरत समीक्षा की है आगे का इंतज़ार रहेगा।
जवाब देंहटाएंईद मुबारक !
जवाब देंहटाएंआप सभी को भाईचारे के त्यौहार की हार्दिक शुभकामनाएँ!
--
इस मुबारक मौके पर आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (20-08-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
आभार !
हटाएंबढ़िया समीक्षा .... कस्तुरी पढ़ने के लिए प्रेरित करती हुई ....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर समीक्षा..ईद मुबारक !
जवाब देंहटाएंवाणी जी ...बहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंकभी सोचा नहीं था कि कस्तूरी को सबका इतना प्यार और सम्मान मिलेगा ....आभार आप सबका ..कस्तूरी को इतना प्यार देने के लिए
काव्य रत्नों से सजी यह पुस्तक..
जवाब देंहटाएंआपको समीक्षक पाकर सुखद आश्चर्य रहा ! कस्तूरी को उचित सम्मान देने के लिए आभार !
जवाब देंहटाएंBehad achhee sameeksha kee hai!
जवाब देंहटाएंMere blogpe meri hausala afzayi ke liye tahe dilse shukriya.
उत्तम समीक्षा....सभी सम्मलितों को बधाई...
जवाब देंहटाएंshukriyaa vani jee kabhi socha hi nhi tha ke hamare lafzo ko inta samman milega ..........tahe dil se aapke shukguzari hai ham sab .....kasturi team
जवाब देंहटाएंबहुत दिल लगा कर की गयी है समीक्षा !
जवाब देंहटाएंसुंदर !
हिन्दी-युग्म परिवार,अंजु (अनु) चौधरी, मुकेश जी
जवाब देंहटाएंएवं सभी कवि-गण को ढेर सारी शुभकामनाएँ।
और कस्तूरी संकलन अपने उद्देश्य में सफल हो
ऐसी शुभेक्षा के साथ।
आनन्द विश्वास।
इस बेहतरीन अंदाज़ में काव्य संग्रह को आपने अपने शब्दों में बाँधा है...एक सटीक और सधा हुआ विवेचन ... आपका आभार वाणी जी...
जवाब देंहटाएंसादर...:)
वाणी जी नमस्कार,
जवाब देंहटाएंआपने यहाँ परिचय कराया जिसके लिए आभार आपकी समीक्षा अच्छी लगी...
धन्यवाद