हिन्दू पौराणिक गाथा कल्कि पुराण में एक विष कन्या सुलोचना (गन्धर्व चित्रग्रीव की पत्नी )का जिक्र किया गया है जिसके सिर्फ देखने भर से दुश्मन मृत्यु को प्राप्त हो जाता था...
विषकन्या बनाने के लिए बहुत छोटी उम्र से ही कन्याओं को बहुत सूक्ष्म मात्र में विष दिया जाना शुरू किया जाता था , जिसमे कई बार उनकी मृत्यु भी हो जाती थी .... जिस कन्या का शरीर विष को जज्ब कर लेता था वह आगे चलकर विषकन्या में तब्दील कर दी जाती थी और उनका उपयोग दुश्मनों को रास्ते से हटाने के लिए किया जाता था ...
सभ्यता के विकास के साथ एक ओर जहाँ परिवारों में कन्याओं के प्रति खान पान,शिक्षा और मौलिक अधिकारों में जागृति आयी है वही दूसरी ओर लिंग परिक्षण कर कन्या भ्रूण हत्या कर उन्हें जन्म लेने के अधिकार से ही वंचित किया जा रहा है ... समाज में व्याप्त लिंग भेद से उपजी असमानता , अपमान ,उत्पीडन और उपेक्षा के कारण बालिकाओं में असुरक्षा और विद्वेष का भाव उपजता रहा है ...बहुत छोटी अवस्था से ही लगातार अवमानना इन कन्यायों को बिना विष के ही विषकन्या में तब्दील करता जा रहा है ...जो इस पूरी सभ्यता और नस्ल के लिए बहुत घातक है ...
अच्छा होगा कि समय रहते चेत कर भारतीय संस्कृति के गुरु मंत्र
" यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते रमन्ते तत्र देवता "
को पुनः प्रतिष्ठापित करते हुए कन्याओं को उचित मान सम्मान का अधिकारी बनाया जाए ... वर्ना लगातार विष कन्या में तब्दील होती नारियों की यह खेप इस पूरे सभ्यता के लिए घातक साबित होगी ...
विषकन्या
कन्यायें
यूं ही नहीं
रातो रात चुप चाप
तब्दील हो जाती है
विषकन्याओं में...
बहुत छोटी उम्र से
पीती हैं विष के छोटे छोटे घूंट
इस तरह भरा जाता है
उनकी रगों में
कि कोई साक्ष्य ना रहे
कभी उनके पालितों द्वारा ही
कभी उनके रक्षकों द्वारा ही
पहला घूंट विष का
मर्मान्तक पीड़ा देता है
भय से दर्द से
रोम रोम कंपा देता है
दम तोड़ देती है कई बार
इस पहले घूँट से ही
मगर जो बच जाती हैं
और सीख जाती है
आंसू पीकर मुस्कुराना
उपेक्षा सहकर खिलखिलाना
दर्द सह कर गुनगुनाना
प्यार के बिना जीना
अंततः वे ही बदलती है
विषकन्याओं में .....
ये बदलती है
उन आसुओं का अंश लेकर
कोख में ही दफ़न कर दी गयी
आहों का असर लेकर ...
और अंततः होती हैं अभिशापित
पायें जिसे चाहे नहीं ....
चाहे जिसे पाए नहीं ....
आक्रान्ताओं ...
इन पर हंसो मत
इनसे लड़ो मत
इनसे डरो .....
ये करने वाली है
तुम्हारे नपुंसक दंभ को खंडित
तुम्हारी सभ्यता को लज्जित
इसलिए
इन्हें प्यार दो
इन्हें सम्मान दो
ये चाहे तो भी
ना चाहे तो भी
मांगे तो भी
ना मांगे तो भी ............
बचा सकते हो तो बचा लो
इस धरा पर अपने होने का प्रमाण
वर्ना नहीं दूर है
अब एक पूरी सभ्यता का अवसान ..........
यूं ही नहीं
रातो रात चुप चाप
तब्दील हो जाती है
विषकन्याओं में...
बहुत छोटी उम्र से
पीती हैं विष के छोटे छोटे घूंट
इस तरह भरा जाता है
उनकी रगों में
कि कोई साक्ष्य ना रहे
कभी उनके पालितों द्वारा ही
कभी उनके रक्षकों द्वारा ही
पहला घूंट विष का
मर्मान्तक पीड़ा देता है
भय से दर्द से
रोम रोम कंपा देता है
दम तोड़ देती है कई बार
इस पहले घूँट से ही
मगर जो बच जाती हैं
और सीख जाती है
आंसू पीकर मुस्कुराना
उपेक्षा सहकर खिलखिलाना
दर्द सह कर गुनगुनाना
प्यार के बिना जीना
अंततः वे ही बदलती है
विषकन्याओं में .....
ये बदलती है
उन आसुओं का अंश लेकर
कोख में ही दफ़न कर दी गयी
आहों का असर लेकर ...
और अंततः होती हैं अभिशापित
पायें जिसे चाहे नहीं ....
चाहे जिसे पाए नहीं ....
आक्रान्ताओं ...
इन पर हंसो मत
इनसे लड़ो मत
इनसे डरो .....
ये करने वाली है
तुम्हारे नपुंसक दंभ को खंडित
तुम्हारी सभ्यता को लज्जित
इसलिए
इन्हें प्यार दो
इन्हें सम्मान दो
ये चाहे तो भी
ना चाहे तो भी
मांगे तो भी
ना मांगे तो भी ............
बचा सकते हो तो बचा लो
इस धरा पर अपने होने का प्रमाण
वर्ना नहीं दूर है
अब एक पूरी सभ्यता का अवसान ..........
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चित्र अदाजी के सहयोग से ...
एक अनुभवी विश्लेषण ........ विषकन्या के दर्द को समझा है, अदभुत रचना
जवाब देंहटाएंवाणीगीत जी,आपका अद्भुत कल्पना को नमन...कबिता के अंदर छिपा हुआ दर्द साफ दिखाई देता है...और उस दर्द को जहर का संज्ञा देना अनोखा बिम्ब है...
जवाब देंहटाएंपहले तो मैं आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हूँ मेरे ब्लॉग पर आने के लिए और टिपण्णी देने के लिए!
जवाब देंहटाएंअद्भुत सुन्दर रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!
[ पिछले कई दिनों से सन्नाटा था और मुझे लग ही रहा था कि तूफ़ान लाएगा ]
जवाब देंहटाएंतब की विषकन्यायें किसी गाइडेड मिसाइल सी ,एक गुप्त हथियार और नियोजित षड्यंत्र जैसी , निर्मित होती थीं ,कुछ सबल क्रूर मस्तिष्कों के कारखानों में ! असहमतियों के सम्पूर्ण सफाए के घातक मिशन की स्वचालित मशीन सी ! आज भी रिमोट लगभग उतने ही वहशी हाथों में है जो अपने ही अंश को विकसित करते हैं मशीन सा बेजान और बेहिस् !
आपनें गज़ब का बिम्ब ढूंढ ,अदभुत कविता गढ़ डाली है जो स्त्रियों के विरुद्ध साजिशों को तार तार कर रही है ! बढ़िया !
सुचिंतित और बेहतरीन !
जवाब देंहटाएंस्त्रियों के लिए बेहतर दुनिया की दुआओं के साथ !
जवाब देंहटाएंदी ..बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट...
जवाब देंहटाएंकन्याओं के विषकन्य बनने कि पूरी यात्रा बहुत सटीक है ...भूमिका भी लाजवाब ...तब बनायीं जाती थीं विशेष रूप से विषकन्या ..
जवाब देंहटाएंआज लोग जाने अनजाने में विष भर देते हैं कन्या में ...आज कि एक ज्वलंत समस्या को बहुत संवेदनशीलता से कहा है ..
और समाज को आगाह भी किया जा रहा है ...बहुत प्रभावशाली रचना ...
विष कन्याओं के दर्द को समेटे सार्थक पोस्ट लगी । बहुत दिनों बाद आपको पछ़ने का मौका मिला , बढ़िता पोस्ट ।
जवाब देंहटाएंकन्या से "विषकन्या" बनने, की संवेदनशीलता को व्यक्त करती अनोखी प्रस्तुति...जागरूक करती रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंइतिहास के साथ एक भावपूर्ण रचना ।
जवाब देंहटाएंबिलकुल अलग...फिर पढना होगा
जवाब देंहटाएं@ Ali jee
जवाब देंहटाएंये कविता मैंने बहुत पहले लिखी थी ...अपने "ज्ञानवाणी " ब्लॉग पर प्रकाशित भी की थी ...अपनी सारी कविताओं को एक जगह संकलित करने के क्रम में इन्हें यहाँ इकठ्ठा कर रही हूँ ..
अभी पिछले दिनों वर्षाजी के सम्पादकीय में किसी उमा नाम की लड़की के बारे में पढ़ा ...तब से ही अपनी ये कविता मुझे बहुत याद आ रही थी ...आखिर आज पोस्ट कर ही दी ...
आपके प्रोत्साहन के लिए बहुत आभार ..!
@ All
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए बहुत आभार ..!
अब विष कन्याएं नहीं human bomb बन रहीं हैं...एक ही बार में कई जीवन सीधा पटाक्षेप...:)
जवाब देंहटाएंहाँ पहले भी पढ़ी है इसे....
फिर एक बात अच्छी लगी है...
सदैव 'भारी'....
बहुत सुंदर पोस्ट...और इस पोस्ट को पढ़ कर एक कलर्स पर दिखाया जाने वाला नाटक 'उतरन' याद आ गया जिसमे टप्पू (तपस्या) भी कुछ ऐसा ही चरित्र निभा रही है जिसे धीरे धीरे बचपन से ही अपनी दोस्त का साथ, उस गरीब दोस्त को उसके माँ पिता द्वारा दिया गया प्यार उसके लिए विष बन गया और आज वो उस अपनी दोस्त इच्छा के लिए विषकन्या ही साबित हो गयी.
जवाब देंहटाएंसच कहा आपने
इन्हें प्यार दो..
इन्हें सम्मान दो..
ये चाहें तो भी ..
और ना चाहे तो भी..
बहुत प्रयोगवादी सच. लेकिन इस सच को जी पाना उतना ही मुश्किल.
बधाई इस महत्वपूर्ण सन्देश के लिए.
ऐसा विष तो सारे समाज को सुन्न कर देगा।
जवाब देंहटाएंजी हाँ , अंततः वे ही बनती हैं विष कन्या ....
जवाब देंहटाएंया तो वे जहर उगलती हैं ....
या इक दिन उसी जहर से दम तोड़ देती हैं .....
वाणी जी आज आपने समाज की एक कुरीति पर कलम रखी है ....
इसलिए मैं तो इस रचना की जितनी तारीफ करूँ कम है .....!!
आपकी पोस्ट रविवार २९ -०८ -२०१० को चर्चा मंच पर है ....वहाँ आपका स्वागत है ..
जवाब देंहटाएंhttp://charchamanch.blogspot.com/
विचारणीय पोस्ट। याद आया कि एक बिल्कुल अलग परंतु पूरक से विचार पर एक कविता जैसी लिखी थी - इत्मीनान
जवाब देंहटाएंएक विचारोत्तेजक कविता| कन्या से विषकन्या बनने का गहन विश्लेषण|कम हमारा समाज इस विष को देना बंद करेगा?
जवाब देंहटाएंगज़ब गज़ब गज़ब्………………आज की सामाजिक कुरीति पर गहरा प्रहार्……………बहुत सुन्दरता से उकेरा है आज के हालात को और भविष्य मे होने वाले नुकसान को।
जवाब देंहटाएंविष कन्या के इतिहास को और उसके वर्तमान रूप को बहुत ही सूक्ष्मता से वर्णित किया है |
जवाब देंहटाएंसशक्त कविता |
बहुत ज्वलंत व विचारोत्तेजक लेख
जवाब देंहटाएंविषकन्या पर कितनी सारी जानकारी दे दी...
जवाब देंहटाएंयह कविता पहले भी पढ़ी थी.....तब भी उतनी ही विचारोत्तेजक लगी थी..बहुत ही सार्थक रचना
सुंदर कविता...विषकन्याओं का दर्द बयां करती...सार्थक कविता
जवाब देंहटाएंक्या बात है, वाणी जी. एक गंभीर मुद्दे को कहने का बिल्कुल मौलिक तरीका.
जवाब देंहटाएंबहुत गज़ब की रचना है ! यह सच है कि हम सब जिम्मेवार हैं इनको बनाने में ! इन बेचारियों ने अपने दिल से कब चाहा होगा ऐसी जिन्दगी बताने को ..सो मेरे ख़याल से समाज को कर्जदार होना चाहिए विषकन्याओं का और मानना चाहिए कि हम बहुत क्रूर है !
जवाब देंहटाएंसादर
vani ji..bahut sundar ...ek nayapan hai !
जवाब देंहटाएंकन्याओं से विषकन्या की यात्रा बहुत मार्मिक है ... ये अपराध है युग का .....
जवाब देंहटाएंमार्मिक कहूं या चुनौती देने वाली !
जवाब देंहटाएंइस बार के ( ३१ अगस्त , मंगलवार ) साप्ताहिक चर्चा मंच पर आप विशेष रूप से आमंत्रित हैं ...आपके लिए कुछ विशेष है ....आपकी उपस्थिति नयी उर्जा प्रदान करती है .....मुझे आपका इंतज़ार रहेगा....
जवाब देंहटाएंशुक्रिया
.
जवाब देंहटाएंवाणी जी,
हमेशा कि तरह एक प्रभावशाली रचना।
आभार।
.
aakhri kuchh panktiyaan bahut hi achchhi lagi .unke dard ko aapne bhali bhanti samjha hai .sundar .
जवाब देंहटाएंबचा सकते हो तो बचा लो
जवाब देंहटाएंइस धरा पर अपने होने का प्रमाण
वर्ना नहीं दूर है
अब एक पूरी सभ्यता का अवसान ....विचारोत्तेजक लिखा आपने..सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई.
________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
सुचिंतित और बेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक कविता ,
जवाब देंहटाएंकृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
बहुत उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंविषकन्या के मर्म को बखूबी समझा है आपने।
जवाब देंहटाएं………….
जिनके आने से बढ़ गई रौनक..
...एक बार फिरसे आभार व्यक्त करता हूँ।
बचा सकते हो तो बचा लो
जवाब देंहटाएंइस धरा पर अपने होने का प्रमाण
वर्ना नहीं दूर है
अब एक पूरी सभ्यता का अवसान ..........
विष कन्याओं के सहारे इतिहास से वर्तमान तक बालिकाओं के विषय में अच्छा दस्तावेजी प्रस्तुति दी है आपने....सही कहा जब तक हम अपनी मात्री सत्ता को सम्मान नहीं देंगे विकास के सारे प्रतीक और प्रतिमान झूठे हैं.....!
सटीक विश्लेषण,बेहतरीन रचना,
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति.बधाई ....कविता बहुत गहरे तक जाकर असर छोडती है ....बेहतरीन
sabse pehle to is pyari rachna ke liye shubkaamnaayein... bahut hi pyara likha hai aapne...
जवाब देंहटाएंA Silent Silence : Raha Baaki Kya Aa Zara..(रहा बाकी क्या आ ज़रा..)
Banned Area News : Daughter comes first for Jovovich
वाणी गीत जी विषकन्या के दर्द और मर्म को समझाने हेतु आभार
जवाब देंहटाएं