सोमवार, 16 अगस्त 2010

लड़कियां जो हो जाती हों अचानक से चुप ....





लड़कियां जब हो जाती हैं
अचानक से चुप ...
उन्हें कुरेदना
ठीक नहीं समझती हूं मैं
डरती हूं मैं
कि वो बोल देंगी तो
कोइ आस ना खो जाये
कहीं मेरा विश्वास
धूमिल ना हो जाये ...


मैं जो लगी हूं
रिश्तों के पुल बनाने में
उन रिश्तों से कहीं
खुद मेरा ही
विश्वास ना उठ जाये ...

लड़कियां जब बात कर रही हों
बहुत ज्यादा
तो उन्हें चुप हो जाने को कहना भी
नहीं लगता ठीक मुझे
डरती हूं मैं
कि अगर वो हो जायेंगी
अचानक से चुप

कितना कुछ पी जायेंगी
अमाशय में घुलकर
विष न हो जाये कहीं
और फ़ट पड़े एक दिन
चिंथड़े ना उड़ जाये
उनके दिमाग के
कहीं चिंदियों मे
बिखरा रहे कलेज़े का
टुकड़ा -टुकड़ा ...

इसलिये
लड़कियों को
बोलने दो
जब वो कुछ कहना चाहें
और
हो जाने दो चुप
जब वो कुछ ना कहना चाहें....



चित्र गूगल से साभार ...

57 टिप्‍पणियां:

  1. लड़कियों को
    बोलने दो
    जब वो कुछ कहना चाहें

    शायद यही सही है
    सुन्दर रचना

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  2. बहुत सही विश्लेषण किया है...
    आख़िर हम भी वही मन रखती हैं...
    सुन्दर कविता...

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  4. अति का भला न बोलना अति की भली न चूप -ये तो सभी के लिए है !क्या कहा कवित्त नहीं समझा ? हो सकता है !

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  7. Vaani di..

    Ladki ko ladki se behtar..
    Ab tak kisne jaana hai..
    Har ladki ek abhujh paheli..
    Humne to ye maana hai..

    Antar main kitni hi baatain..
    Liye wo aksar rahtin hain..
    Man ki baat wo man main rakhtin..
    Nahi kisi se kahtin hain..

    Kitna hi mauka paa jaayen..
    Antarman ko kholen na..
    Man ka bhed na jaane koi..
    Aur kisi se bolen na..

    Jo kahti hain, wo na kahtin..
    Jo na kahtin, wo hain kahtin..
    Kahtin wo hi, jo na man main..
    Jo man main ho, wo na kahtin..

    Sundar bhav..

    Deepak..

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  8. वाह.... मैं लगी हूं रिश्तों का उल बनाने में..सुंदर पंक्तियाँ...रिश्तों का भी पुल होता है उसमें रेत मीट्टी की जगह प्यार की मिठास घोली जाती है

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  9. इसलिये
    लड़कियों को
    बोलने दो
    जब वो कुछ कहना चाहें
    और
    हो जाने दो चुप
    जब वो कुछ ना कहना चाहें....
    sahi vishleshan

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  10. @ वाणी जी ,
    आप अच्छा लिखती हैं पर बुरा मत मानियेगा , मैंने आपको अब तक जितना पढ़ा , जबसे पढ़ा उसमें से यह सर्वश्रेष्ठ है ! अदभुत ! बेहतरीन ! कम से कम मेरे लिये !

    "बेहद गहरे अर्थ लिये लड़कियों को अनुवादित करती कविता"

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  11. शायद ब्लाग्स में अब तक पढ़ी सर्वोत्तम कृति !



    { तीन का अंक मेरा सर्वप्रिय अंक है आज आपको समर्पित }

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  12. oh i think there is some thing missing vani in the poem cant point out but its or may be in its being incomplete its more complete

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  13. इसलिये
    लड़कियों को
    बोलने दो
    जब वो कुछ कहना चाहें
    और
    हो जाने दो चुप
    जब वो कुछ ना कहना चाहें....

    काश इतनी समझदारी सब में आ जाए...फिर तो दुनिया स्वर्ग बन जाए...
    बहुत ही सुन्दर कविता

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  14. बहुत बहुत बेहतरीन लिखा है आपने ....बहुत ही पसंद आई यह रचना ...जैसे सबके दिल की बात

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  15. बहुत अच्छा मनोवैज्ञानिक विश्लेषण किया है ....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  16. बहुत पते की बात बताई ..ऐसे टिप्स देती रहिएगा ..बढ़ी हो रही बेटियों की माओं के बहुत काम आते हैं :)
    शुक्रिया.

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  17. Vani di, ham bhi kahenge, ladkiyon ko bolne do........lekin sirf ladkiyon kyon, ham jaise ladko ko kyon nahi.........:)

    bahut pyari rachna!!

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  18. बडी ॠजुता से अभिव्यक्त हुई है,अभिव्यक्ति की आज़ादी!!
    अदभुत,धीर, गम्भीर। आभार

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  19. वाणी जी,
    बडी गहरी सोच के साथ लिखी है ……………एक सच है जो खुद आकर यहीं रुक जाता है और प्रश्न करता है खुद से।

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  20. बहुत सही सोंच .. सुंदर अभिव्‍यक्ति !!

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  21. इस विषय पर कईं कुटिल रचनाओं पर भारी पडती है यह आपकी सौम्य रचना।

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  22. .
    .
    .

    आदरणीय वाणी जी,

    सुन्दर, बेहतरीन और सच्ची कविता...

    बोलने दो लड़कियों को... और रहने दो चुप भी... जब जैसा वो चाहें... आमीन!


    ...

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  23. बेहतरीन कबिता! हम खुद एगो बेटी के बाप हैं अऊर इस कबिता का संदेस समझते हैं… अऊर हमरे लिए त ई कबिता इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि हमरी बेटी उस उमर के पड़ाव पर है, जहाँ चुप रहने या बोलने पर सवाल उठाने से बिद्रोह का जन्म होने लगता है... आपका बात गाँठ बाँध लिए हैं हम...धन्यवाद!!

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  24. दी ......... बहुत सुंदर...रचना...

    --
    www.lekhnee.blogspot.com


    Regards...


    Mahfooz..

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  25. वाणीजी
    बहुत सुन्दर कथन आज के परिप्रेक्ष्य में |पहले हमेशा लडकियों को चुप रहने को ही कहा जाता था और इसे सहनशीलता का नाम दिया जाता था |जिससे वो सच को सच स्वीकारने और झूठ को झूठ कहने का निर्णय भी नहीं ले पाती थी |इसलिए
    ldkiyo ko bolne do ...

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  26. क्या बात है!!! जीव विज्ञान के शब्दों का सही इस्तेमाल.. अति सुन्दर..

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  27. ख़ामोशी दीवार से बोली
    कभी मैं भी खिलखिलाया करती थी
    एक दिन सज्जाद पकड़ लाया मुझे
    और चिन दिया तुझ में ...
    अब मैं पत्थर हो गयी हूँ ......

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  28. vaani ji .namskaar
    kahte hai ki jaroorat se jayaada bolnaa tatha bilkul hi na bolna dono hi roopo me sthiti ghatak haoti hai.isi liye kabhi kabhi lagta hai ki behatari kisme hai manme hi saari baate samet kar ghutte rahe ya fir jo hoga dekha jaayega
    ,saari baaten kah daalen.
    poonam

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  29. सहसा चुप हो जाने का कोलाहल और भयानक होता है।

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  30. आप की रचना 20 अगस्त, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपने सुझाव देकर हमें प्रोत्साहित करें.
    http://charchamanch.blogspot.com

    आभार

    अनामिका

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  31. कितनी सहजता से आपने कह दी है...
    लेकिन मैं कुछ नहीं कह पा रही यह पढ़कर.....
    निःशब्द कर दिया आपने...

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  32. बेटी थी,अब माँ हूँ....
    इतने लम्बे सफ़र का कितना कुछ सामने आकर खड़ा हो गया और क्या क्या सिखा गया...क्या कहूँ...

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  33. आपकी वाणी में यह सकारात्‍मक सोच देखकर बहुत अच्‍छा लगा। आधी दुनिया के प्रति इस निष्‍ठुर होती दुनिया में ऐसे विचारों की सख्‍त जरूरत है।

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  34. सच है ...बहुत संवेदनशील होती हैं लड़कियाँ .... जब कभी दिल की बात खोल रहीं हो .... खोलने देना चाहिए ...
    एक लड़की के मनोभावं को लिखा है आपने ... अच्छा किया सतर्क कर दिया ..

    जवाब देंहटाएं
  35. वाणी दी...

    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आयें और मेरा मान बढा दें........
    www.deepakjyoti.blogspot.com

    दीपक...

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  36. इसलिये
    लड़कियों को
    बोलने दो
    जब वो कुछ कहना चाहें
    और
    हो जाने दो चुप
    जब वो कुछ ना कहना चाहें
    kamaal kamaal kamaal ,aur yahi sahi hai ,harkirat ji ki tippani bhi laazwaab hai .dono chhoo gayi man ko .

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  37. बहुत सही आकलन और विशलेषण किया है लड़कियों का |बधाई |
    आशा

    जवाब देंहटाएं
  38. .
    लड़की ही क्यूँ, जब कोई भी बोले, तो बोलने दो लेकिन, चुप रहने की इज़ाज़त नहीं। चुप रहना आने वाले किसी बड़े तूफ़ान की और इशारा करता है। उससे बोलो, बात करो, उसे सुने, उसे रोने दो, लेकिन चुप मत रहने दो ।

    चुप हो जाना एक भयानक अंत है।
    .

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  39. BAHUT HI SHANDAR RACHNA , AAPNE BAHUT HI SACCHI BAAT LIKHI HAI .. LADKIYO KE MAN KI BAAT KA VARNAN... AMAZING JI

    BADHAI

    VIJAY
    आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
    http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html

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  40. @ Divya,

    प्रिय दिव्या ,
    ज्यादातर मैं टिप्पणीकारों को जवाब नहीं देती जब तक कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करे क्यूंकि मैं यह पाठकों का अधिकार समझती हूँ कि वे रचना का जो चाहे,अर्थ निकाले ...लेकिन मुझे लगता है कि अब इस कविता की मूल भावना को स्पष्ट कर देना चाहिए ...

    @ कुरेदना नहीं चाहिए ...
    इससे मेरा तात्पर्य यही है कि
    जो वो कहने वाली हैं , हम भी जानते हैं..आखिर हम भी स्त्रियाँ है , उम्र के विभिन्न दौर से गुजरे हैं...कहने के बाद कहीं उनके मन में कोई शर्मिंदगी नहीं रहे ...
    एक पहलू ये भी है कि जब तक मुझमे इतना साहस नहीं कि मैं उसकी पीड़ा को कम कर सकूँ ...कम से कम उसे यह तो तसल्ली है कि मुझे कुछ पता नहीं ...
    उकसा कर उनके मन की बात उगलवा लेना और फिर बीच चौराहे पर उसे लाकर अकेला छोड़ देना ...जिससे वे उससे भी ज्यादा भयानक परिस्थितियों में पड़ जाएँ ....ये ज्यादा खतरनाक लगता है मुझे ...!
    अपराध के दलदल में फंसे ज्यादातर लड़के या लड़कियां ऐसी ही उकसाहट का परिणाम है...इसलिए जब तक कुछ ऐसा नहीं किया जा सके कि वे इस पीड़ा से गुजर कर अपने लिए सुरक्षित भविष्य ढूंढ सके , उन्हें और बदतर परिस्थितियों में धकेलने का कार्य तो नहीं किया जाए कम से कम ...

    क्या मैं गलत हूँ ..?

    जवाब देंहटाएं
  41. .
    वाणी जी,
    आपकी बात से सहमत हूँ, मेरा व्यक्तित्व थोडा फरक है , इसलिए ऐसा लिखा, शायद अब तक हज़ारों महिलाओं की counseling भी कर चुकी हूँ, उसका प्रभाव होगा। लेकिन आम-जन के लिए आप की बात से सहमत हूँ।

    जब तक खुद में confidence न हो, दूसरों की खामोशी को न तोडें यही बेहतर है।

    मुझमें एक प्रबल इच्छा है की स्त्रियों में जबरदस्त बदलाव आये , शायद इसलिए ऐसा लिखा। मेरा खुद में विश्वास मुझसे ऐसा लिखवाता है। जो दिल में ख़याल आता है , सच्चाई के साथ लिख देती हूँ।

    मुझे लगता है कि किसी की ख़ामोशी उसका समर्पण और निराशा है, जिसे दूर किया जाना चाहिए।

    चुप्पी किसी बात का हल नहीं।
    .

    जवाब देंहटाएं
  42. @ Divya ,

    आपकी नियत पर मुझे कभी शक नहीं रहा ...
    स्त्रियों में बदलाव आना चाहिए , मगर इस तरह कि वे दोराहे और चौराहों पर खड़ी ना मिले ...

    आप बेहचक अपने विचार प्रस्तुत करें ... मैं विचारों की स्वतन्त्रता में विश्वास रखती हूँ ...खुद साधारण होते हुए भी यह असाधारण भाव मुझमे कूट- कूट कर भरा है:):) ...कभी भी कमेन्ट डिलीट करने की बात मत सोचना !

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  43. कोई भी रचना पहली बार पढ़ कर [ठीक से] मन में जो विचार उठता है वही हमारी असली सोच होती है, बाकी तो सब बनावटी बातें होती है [ ये मेरा मानना है ]
    तो पहली बार इसे पढने पर इसमें मौजूद साइकोलोजी [बिहेवियर थेरेपी जैसा लगा ] , बायोलोजी [आमाशय वाली लाइन ] और कुल मिला कर पूरी सोच एकदम परफेक्ट लगी ,
    [ इस बात पर पता नहीं क्यों ध्यान नहीं गया की सिर्फ लड़कियों की बात हो रही है]
    बात बिलकुल ठीक है , एकदम परफेक्ट है मेरे हिसाब से , मानवीय है
    इस रचना हेतु आभार , ये रचना सहेज कर रखने लायक है
    इश्वर ये समझ सब को दे

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