रविवार, 2 मई 2010

जा कर दिया आज़ाद तुझे मैंने ......








जा कर दिया आज़ाद तुझको दिल की गहराईओं से
ना माने तो पूछ लेना अपनी ही तन्हाईओं से

नहीं लायेगी बादे - सबा अब कोई पैगाम
ना करना कोई सवाल आती- जाती पुरवाईओं से

पीछे छोड़ आये कब के वो दरो -दीवार माज़ी की
चढ़ने लगे थे रंग जिनपर ज़माने की रुसवाईओं से

नजरे बचाए फिरते रहते थे उन गलियों चौबारों में
क्या अच्छा लगता था बचते फिरना अपनी ही परछाईओं से

टीसते हैं जख्म गहरे इस कदर बेवफाईओं के
भरते नहीं हैं अब किसी बावफा की भी लुनाईयों से




चित्र गूगल से साभार ...

36 टिप्‍पणियां:

  1. जा कर दिया आज़ाद तुझको दिल की गहराईओं से
    ना माने तो पूछ लेना अपनी ही तन्हाईओं से
    बहुत सुन्दर

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  2. बहुत सुन्दर रचना, बधाई.

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  3. गहरे पैठना प्रेम का और उससे मुक्ति एकाकीपन की ...रचना का नाभिक विचार...बहुत बढ़िया...इसके बाद सब तुकांत सा और संभवतः इससे भी पहले कई बार कहा गया होगा !
    कृपया थोड़ा सा सुधार कीजियेगा ..."डरो दीवार" की जगह "दर-ओ-दीवार" बेहतर रहेगा ! आदर सहित !

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  4. kavitaaon se rubru hona mujhe achha lagta hai
    inse kahna sunna achha lagta hai

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  5. ना करना कोई सवाल,आती जाती,पुरवाइयों से
    बहुत ही बढ़िया अभिव्यक्ति...

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  6. उफ्फ्फ !!!! लाजवाब ,कमाल है !!!!!!!!!!!!!!

    टीसते हैं जख्म गहरे इस कदर बेवफाईओं के
    भरते नहीं हैं अब किसी बावफा की भी लुनाईयों से

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  7. wah kya baat hai????naaraazgi bhi aur itti jabardast.....
    bahut acchhe shabdo me dhala hai.
    badhayi.

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  8. माफ़ी चाहती हूँ देर से आई हूँ कमेन्ट करने....
    इसे पढ़ कर यही कहने का दिल कर रहा है...
    परछाइयों से बचना बचाना...दिल की गहराइयों में उतरना, और तनहाइयों से बतियाना ....ये सब क्या हो रहा है , मैडम जी ???
    आप तो ऐसे न थे .....!!
    हाँ नहीं तो...!
    किन्तु बालिके.....प्रस्तुति उत्तम है...
    लगी रहो कन्या ....साडे नाल रहोगे तो....चमत्कार हो जाएगा...

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  9. नज़रें बचाए फिरते थे .....गज़ब का शेर है....बहुत खूब...

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  10. @ अदा जी ,
    बालिके , कन्या ...44 साल की ...??
    :):)

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  11. मैं आपके ब्लॉग को लेकर थोड़ी कन्फ्यूज़ हूँ .....
    क्या आप वही वाणी दी हैं या कोई और ....अपना प्रोफाइल भी नहीं लिखा न तस्वीर ....?
    कृपया अपना परिचय भी लिखें .....

    अदा जी कि टिपण्णी तो यही बताती है कि आप वही हैं ....तो नए ब्लॉग से परिचित तो करवाना था ......?

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  12. अब रचना पर ......
    जा कर दिया आजाद तुझे दिल की गहराइयों से ,,,,,,

    ओये होए .....कौन है वो ....?
    कैसे तुम्हें जनता है ....??
    दिल को पहचानता है ......???
    ये नज़रें बचाने वाले भी बड़े दगाबाज़ होते है वाणी जी .....बच के रहिएगा .....
    नज़्म तो दिल से लिखी लगती है ,,,,,कुछ रुसवाईयाँ हैं ....तन्हाईयाँ हैं ...बधाइयां .... जी बधाइयां .....!!

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  13. तकलीफ में जीते लोगों को अक्सर आनंद शब्द निरर्थक सा लगने लगता है !

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  14. @ हरकीरत "हीर"
    जी हाँ ...मैं आपकी वही वाणी दीदी हूँ ...पिक नहीं लगाई ...इसका कारण मेल में बता चुकी हूँ ...
    इसका लिंक मेरे ज्ञानवाणी ब्लॉग पर भी दिया है मैंने ..तुम्हे बताना भूल गयी ...हमका माफ़ी दई दो ...:):)

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  15. बस लिखती जाइये ! देख रहा हूँ, इस ब्लॉग पर कविताओं की आमद..बहुरंगी कविताएं...गज़लें..नज़्में !

    इस प्रस्तुति का आभार ।

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  16. किस खूबसूरती से लिखा है आपने। मुँह से वाह निकल गया पढते ही।

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  17. बहुत ही खुबसूरत ग़ज़ल वाणीजी

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  18. जा कर दिया आज़ाद तुझको दिल की गहराईओं से
    ना माने तो पूछ लेना अपनी ही तन्हाईओं से
    वाह ... बहुत खूब।

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  19. वाह..................

    बेहतरीन गज़ल....

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  20. kitna sukoon kitani tadap ...........
    sundar man ki gahraiyon se likhi najm .
    aaiye mere blog par svagat hae.

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  21. थोड़ी निराशा, थोडा सा आक्रोश झलक रहा है.पर प्रभावी बन पड़ी है रचना.

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  22. हंगामा मच रहा हैं ख्यालों से तेरे ,
    तूने दबी जुबां में जाने कहा हैं क्या |

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  23. क्या अचचा लगता ता बचते फिरना अपनी ही परछाइयों से ।
    वाह बहुत बढिया ।

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  24. कभी समझ ना सका अभागे प्यार भरे उस बंधन को
    जा तुझको आज़ाद कर दिया अपने दिल के बंधन से

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