बुधवार, 5 मई 2010

प्रेम आखिर पलता कहाँ है ....




प्रेम आखिर पलता कहाँ है ...

किसी मृगनयनी के आंसुओं में ...

रक्तरंजित कलाई पर गुदे हुए आशिक के नाम में ....

हृदयपटल में अवस्थित खामोश तस्वीर में ...

संतति के लिए नैसर्गिक आत्मसमर्पण में ...

अपना लेने के आकर्षण में ...

सिर्फ अधिकार जताने में

या ...

स्वतंत्र कर तो दिया तुम्हे ...

मगर ...लौट आओगे ...
यह विश्वास जताने में ...

प्रेम आखिर पलता कहाँ है ....






चित्र गूगल से साभार ..

21 टिप्‍पणियां:

  1. "प्रेम आखिर पलता कहाँ है ...."

    Badhiyaa prastuti !

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  2. प्यार पलता है मेरे ही अन्दर
    तभी तो सोचा है तुम लौट आओगे
    विश्वास दिलाने....

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  3. प्रेम कुछ कस्तूरी जैसा नहीं...और 'मृग ढूंढें बन माही....'
    कौन परिभाषित कर पाया है, इसे कभी..

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  4. Gulzaar ki rachana yaad aa rahi hai..."Hamne dekhi hai un aankhon ki mahakti khushbu..."Ek aisi bhavna jise shabd baandh nahi sakte..ek ehsaas jise sirf mahsoos kiya ja sakta hai..can be very ethereal & sublime!

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  5. सुन्दर रचना ....गहरे भाव लिए हुआ .....प्रेम पलता कहाँ है ?...कहना मुश्किल है ..महसूस करना आसान ....पर हाँ प्रेम , प्रेम से ही पलता है

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  6. ab prem bas maa ke aanchal me palta hai...aur kahin nahin....

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  7. पता नहीं...
    बहुत दिनों से मिला नहीं है....
    पता-ठिकाना लिखवाया नहीं था उसने...
    तुम्हें पता चले तो मुझे भी बताना...

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  8. वाणी जी सच कहती है -या प्रणय सा विमुक्तये ! जो विमुक्त करता अहो वही निछल प्रेम है !

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  9. वाह ! बहुत सुन्दर रचना है !
    प्रेम तो बस रिश्तों में पलता है जी
    ये रिश्ता कुछ भी हो सकता है पर ज़रूरी है की रिश्ते में प्रेम रहे !

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  10. प्रेम एक पहेली सा ही तो है कौन पूरा पढ पाया है……………॥बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  11. प्रेम के मामले में अज्ञानी हूँ....:):)

    फिर भी एक सोच है शायद....

    प्रेम पलता है बिना अधिकार जताए समर्पण में...विश्वास में...

    प्रश्न और पूछने का तरीका बहुत खूब

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  12. wooooooooooowwwwwwwwwwwwww.....ye baat lagi zabardast .. :) nishchit roop se prem aakhir ki kuch panktiyon me palna chahega...behad achhi lagi yah nazm mujhe..

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  13. इसको तो और..और पढ़ने दीजिए !
    फिर कुछ कहता हूँ ! गज़ब है ।

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  14. आज आपकी कई रचनाएँ पढ़ी, आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है, पढ़कर अच्छा लगा, काव्य मंजुषा पर आपकी बेबाक टिप्पणी से भी मैं प्रभावित हुआ हूँ, आज जब हर कोई जल्दबाजी में घटिया सी पोस्ट पर भी बहुत सुन्दर.....बेहतरीन......वाह....काबिले तारीफ़....जैसी टिप्पणी कर रहा हो, आप जैसे सच्ची टिप्पणी करने वाले बहुत कम लोग हैं, और ये एक अच्छा संकेत है!

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  15. आपकी रचनाओं में एक अलग अंदाज है,

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  16. आपकी लिखी रचना सोमवार. 14 फरवरी 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  17. क्या बात है वाह सुंदर रचना।
    सादर।

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  18. वाह!!!
    सही प्रश्न है प्रेम कहाँ पलता है
    बहुत ही सुन्दर
    लाजवाब।

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  19. शायद प्रेम पलता नहीं अपितु पालता है सही ढंग से | सुंदर रचना वाणी जी |

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  20. "प्रेम पलता कहां है"गंभीर प्रश्न। जबाव ढुढते ढुढते कितने आशिक बने, कितने दिवाने और कितने तो पीर फकीर भी बन गए। वैसे तो पलता अपनी रुह में ही, मगर हम मृग की भांति वन वन ढुंढते रहते हैं। बेहतरीन अभिव्यक्ति, सादर नमन आपको 🙏

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