षड़यंत्र करती राधा ,
गोपियों की चुगलखोरी
मीरा की जुगुप्सा ....
यशोदा की ममता में मिलावट
जो ना हो साबित ...
तो हैरानी क्या!
तुमसे कैसा शिकवा ,कान्हा ...
जानती हूँ ...
तिरछे नयनों से, भंवर पड़ते गालों से
मुस्कुरा कर कह दोगे
"सुनती ही नहीं थी
तुम्हे कैसे चेताता
कलियुग है ! "
तुम पर मेरा अमिट विश्वास
तुम्हारी लीला तुम ही जानो !
बेहद खुबसूरत
जवाब देंहटाएंहाथ में सुदर्शन चक्र , और उसीकी तरह घूमते रिश्ते , बातें - केशव ! कुछ तो विश्राम लो
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत !
जवाब देंहटाएंखूबसूरत प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंत्योहारों की नई श्रृंखला |
मस्ती हो खुब दीप जलें |
धनतेरस-आरोग्य- द्वितीया
दीप जलाने चले चलें ||
बहुत बहुत बधाई ||
तेरा तुझको अर्पण, क्या लागे मेरा।
जवाब देंहटाएंविश्वास की लीला, कृष्णं वंदे जगदगुरू.
जवाब देंहटाएंविश्वास ही दृढ आधार है ..बाकी तो सब लीला है :)
जवाब देंहटाएंअच्छी भावाभिव्यक्ति
khubsurat rachna...
जवाब देंहटाएंवाह ....बहुत बढि़या ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर लिखा है आपने बधाई
जवाब देंहटाएंकुछ समझ में आया कुछ नहीं आया मैं क्या कहूँ सब कवयित्री की लीला...
जवाब देंहटाएंतुम्हारी लीला तुम ही जानो !!! सत्य के प्रति विश्वास जगाती कविता के लिए बहुत बहुत बधाई !
जवाब देंहटाएंओहो ...बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत कविता।
जवाब देंहटाएं----
कल 22/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!
उसकी लीला को कोई क्या जान सकता है।
जवाब देंहटाएंविश्वास के यही बोल होते हैं..
जवाब देंहटाएंisme kahan sakk...uski leela ka hame kya pata:)
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता
जवाब देंहटाएंकविता भाषा शिल्प और भंगिमा के स्तर पर समय के प्रवाह में मनुष्य की नियति को संवेदना के समांतर, दार्शनिक धरातल पर अनुभव करती और तोलती है ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना....
जवाब देंहटाएंसादर बधाई...
bahut pyaari bhavpoorn kavita.
जवाब देंहटाएंसच में कलियुग है!
जवाब देंहटाएंबहुत हि सुन्दर रचना...
सच कहा.
जवाब देंहटाएंतुम ही जानो अपनी लीला.
सत्य के प्रति विश्वास जगाती कविता| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंachchhi lagi kavita ...vishvas kiye bina gujara bhi nahi aur tripti bhi nahi ....
जवाब देंहटाएंएक सोच अलग हटकर!!
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंलीला पुरुष को अर्पित अद्भुत काव्याभिव्यक्ति! मगर आज के संदर्भ में ये राधा ,ये यशोदा ,मीरा गोपियाँ कौन कौन हैं ....और रुक्मिणी सत्यभामा की चर्चा क्यों नहीं हुयी ....? :)
जवाब देंहटाएंलाजवाब...
जवाब देंहटाएंआपको धनतेरस और दीपावली की हार्दिक दिल से शुभकामनाएं
MADHUR VAANI
MITRA-MADHUR
BINDAAS_BAATEN
कलियुग है ...सब उसकी लीला है । सुंदर प्रस्तुति ...
जवाब देंहटाएंपञ्च दिवसीय दीपोत्सव पर आप को हार्दिक शुभकामनाएं ! ईश्वर आपको और आपके कुटुंब को संपन्न व स्वस्थ रखें !
जवाब देंहटाएं***************************************************
"आइये प्रदुषण मुक्त दिवाली मनाएं, पटाखे ना चलायें"
दीपावली के पावन पर्व पर आपको मित्रों, परिजनों सहित हार्दिक बधाइयाँ और शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंway4host
RajputsParinay
दीपावली व नववर्ष की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएं**************************************
जवाब देंहटाएं*****************************
* आपको सपरिवार दीवाली की रामराम !*
*~* भाईदूज की बधाई और मंगलकामनाएं !*~*
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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जवाब देंहटाएं#
मेरे दोनों ब्लॉग कल दोपहर बाद से गायब हैं
आप में से कोई मेरी मदद कर सकें तो बहुत आभारी रहूंगा
शस्वरं
ओळ्यूं मरुधर देश री
लिंक :-
shabdswarrang.blogspot.com
rajasthaniraj.blogspot.com
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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हाँ उसकी लीला वही जाने।
जवाब देंहटाएंतुम पर मेरा अमिट विश्वास
जवाब देंहटाएंतुम्हारी लीला तुम ही जानो.
सुन्दर वाणी मधुर गीत.
आपकी प्रस्तुति से हो रही है प्रीत.
बहुत बहुत आभार,वाणी गीत जी.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
'नाम जप' पर अपने अमूल्य विचार
और अनुभव प्रस्तुत करके अनुग्रहित
कीजियेगा.
आपका पोस्ट अच्छा लगा । .मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंसब उसकी नहीं कुछ आपकी भी लीला है !
जवाब देंहटाएंlazabab......
जवाब देंहटाएंसब उस कि ही लीला है....बहुत ही लाजवाब
जवाब देंहटाएंतुम्हारी लीला तुम ही जानो..वाह!
जवाब देंहटाएंभक्ति नहीं ये प्रेम है..कहीं विशाल प्रेम.
खूबसूरत कविता... भाव का संयोजन सुन्दर है...
जवाब देंहटाएंकुछ उसकी लीला ..कुछ अपनी लीला.गजब की लीला....
जवाब देंहटाएंराधा,गोपियां,मीरा,यशोदा- सब कृष्ण के प्रेम में थीं। कहना मुश्किल है कि कृष्ण के केंद्र में भी ये ही थीं या नहीं!
जवाब देंहटाएंआज के युग-धर्म को अच्छी तरह विश्लेषित कर दिया है आपने इन पंक्तियों में .
जवाब देंहटाएंवाह ... कितना मधुर उलाहना है ...
जवाब देंहटाएंरेशमी शब्दों में उलाहना ने सुंदरता बढ़ा दी है.
जवाब देंहटाएंगहन विश्वास और हमारी दुनियां .....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें आपको !
बहुत सुन्दर भावो से भरी पोस्ट......शानदार |
जवाब देंहटाएंuski leela ko uske siva koi nahi jaan paya. kalyug to bahana hai.
जवाब देंहटाएंsunder prastuti.
एक अच्छी और गहन रचना. की प्रस्तुति के लिए धन्यवाद । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।
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आदरणीया वाणी जी
सस्नेहाभिवादन !
तुम्हारी लीला तुम ही जानो
अच्छा लिखती हैं आप
… लेकिन क्या राधा मीरा यशोदा मैया और गोपियां ग़लत थीं ?!
मंगलकामनाओं सहित…
- राजेन्द्र स्वर्णकार
bahut sundar rachna..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंतुम मेरा अमिट विश्वाश ...तुम्हारी तुम ही जानो ....बस इन्हीं पंक्तियों ने सारी बात कह डाली अब कहने सुनने को तो कुछ रहा ही नहीं :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना |
blog bhi sunder,kavita bhi prabhvee.accha talmel rachna aur prastuti ke beech.sadhuvaad aapko
जवाब देंहटाएंdr.bhoopendra
rewa
mp
नया भाव है । सचमुच विश्वास बडा होता है ।
जवाब देंहटाएंअरे! बहुत ही बढ़िया... सचमुच..
जवाब देंहटाएं"तुम्हारी लीला तुम ही जानो !"
जवाब देंहटाएंयही समर्पण तो भक्ति का मूल है!
उम्दा गीत!
जवाब देंहटाएंअति मन भावन.
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