कूड़े के ढेर पर दो नवजात बच्चियां
बचा ली गयी ...
चींटियों के ढेर ने निगल ली थी एक आँख जिसकी
बचा ली गयी ...
अखबार की एक खबर ही तो है कुछ लोगो के लिए !
लड़कियां मरती नहीं , कैसे भी बच जाती है !
इन फुसफुसाहटों के बीच कान पर हाथ रख चींखने को मन करता है !
लोंग कैसे भूल पते हैं इन ख़बरों को
कि कूड़ेदान में पाई गयी नवजात बच्ची की लाश...
थैलियों में लिपटे पड़े मिले टुकड़े- टुकड़े भ्रूण
जो यकीनन जन्म लेने वाली बेटियों के ही थे ...
डॉक्टरों की टीम से घिरे हुए भी
एक गर्भवती मर गयी अस्पताल में
चार महीने का गर्भ गिराते
या फिर कोख इस लायक ही ना रही कि
और बच्चियों को जन्म दे सके ...
भूल जाते हैं हम सब ...
अखबार की हेड लाईन्स का क्या
रोज बदलती हैं ...
कोई सिलसिला नहीं है अखबार की ताजा खबरों और
पौराणिक कथाओं के गुत्थम- गुत्था होने का
मगर मुझे याद आ जाती है ...
यशोदा माँ की दुधमुंही
जिसने अभी ठीक से आँखें नहीं खोली थी...
मुट्ठियाँ भींचे सिकुड़ी- सी
माँ के आँचल की गर्मी में कुनकुनाती...
सुलाकर अपने पुत्र को
उस पुत्री को उठा ले गये वसुदेव ...
किसी के पुत्र की रक्षा के लिए
किसी की पुत्री का बलिदान आवश्यक था ....
सच बताना जो यशोदा का पुत्र होता
तब भी उसे ले जाना इतना आसान ही होता !!!
महामाया का अंश थी वह पुत्री
बच गयी जालिम कंस के हाथों ...
धिक्कारती , फुफकारती चेता गयी ...
तू मुझे क्या मारेगा , तुझे मारने वाला जन्म ले चुका है !
अब वह युग नहीं कि हर कन्या महामाया बन कर जन्म ले ...
और कहाँ कंस जैसे मामा का होना ज़रूरी है !
जब बन रहे हो स्वयं माँ- बाप ही हत्यारे !
मन ही मन कंस को माफ़ कर देने का मन होता है !
पुत्र के गर्वित माता -पिता
गर्भ हत्या का अपराध बोध उतार लेते हैं
नवरात्र में कन्याओं के
चरण धोकर !
आज भी पुत्र के अस्तित्व की रक्षा के लिए
गर्भ में ही बेटियों का मर जाना तय है ....
मर्मस्पर्शी....अफसोसजनक स्थितियाँ...
जवाब देंहटाएंअत्यंत सार्थक, चिंतनीय रचना....
जवाब देंहटाएंसादर...
मर्मस्पर्शी ||
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति ||
बधाई |
मन ही मन कंस को माफ़ कर देने का मन होता है !
जवाब देंहटाएंकितनी बड़ी बात कह डाली... कंस ने स्वयं ही कन्याओं को हटा दिया तो बुरा (प्रसंग अपना ही हित था ) , अपने ही हित में लोग भ्रूण हत्या करवाते तो पुण्य ?व्यक्ति कितना हैवान हो चला है , ... फिर जैसे कृष्ण ने कंस का संहार किया , वही होगा ऐसे लोगों का ...
स्थितियाँ निसन्देह सुधरेंगी।
जवाब देंहटाएंसच बताना जो यशोदा का पुत्र होता
जवाब देंहटाएंतब भी उसे ले जाना इतना आसान ही होता !!!
कटु सत्य पर उठाया प्रश्न
और कहाँ कंस जैसे मामा का होना ज़रूरी है !
जब बन रहे हो स्वयं माँ- बाप ही हत्यारे !
मन ही मन कंस को माफ़ कर देने का मन होता है !
तीखा प्रहार है ... अब कंस की क्या ज़रूरत ...कन्याओं के लिए माता पिता ही कंस बने हुए हैं
गर्भ हत्या का अपराध बोध उतार लेते हैं
नवरात्र में कन्याओं के पैर धोकर !
सटीक चिंतन ..
सोचने पर मजबूर करती अच्छी रचना
कल 04/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद!
बस कान ही खीचने की इच्छा होती है , कभी कभी तो जबान खीचने और कान के नीचे एक देने की इच्छा होती है |
जवाब देंहटाएं"जो यशोदा का पुत्र होता "
इस लाइन के लिए वाह वाह वाह क्या खूब लिखा है
पर शायद एक संतोष जनक उत्तर कोई ना दे पायेगा
अंधी भक्ति में असली सवाल सब गोल कर जायेंगे |
अब वह युग नहीं कि हर कन्या महामाया बन कर जन्म ले ...
जवाब देंहटाएंऔर कहाँ कंस जैसे मामा का होना ज़रूरी है !
जब बन रहे हो स्वयं माँ- बाप ही हत्यारे !
मन ही मन कंस को माफ़ कर देने का मन होता है !
स्थितियों का बेहतर आकलन किया है आपने .... मर्मस्पर्शी पंक्तियों के माध्यम से ....शीर्षक सब कुछ कह देने की क्षमता रखता है ....!
कंस की आत्मा मायावी रुप धर कर त्रिभुवन में विचर रही है। एक दिन इन कंसों को रोना ही पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंभारत और चीन जैसे देशों में कन्या जन्म के खिलाफ जो दकियानुसी मानसिकता है उसे बदलने की ज़रूरत है ...
जवाब देंहटाएंएक कटु सच्चाई को सामने लाती दिल को छूने वाली कविता, समाज को इसकी कीमत भी चुकानी ही पडेगी.
जवाब देंहटाएंएक कटु सत्य को उजागर करती अत्यंत मार्मिक प्रस्तुति...आभार..
जवाब देंहटाएंwaah... kitna behtareen ullekh kiya hai aapne... ek sach ki shayad isi tarah likha jaata hai... aur isthiyaan sudhar rahi hai, aur dheere-dheere aur bhi sudhar jaayegi... ummed pe duniya kaayam hai... :)
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक चिंतन है। बस एक बात बता दूं कि जब बलिदान देना होता है तब पुत्री या पुत्र नहीं देखा जाता है। यशोदा का पुत्र भी होता तो वह भी बलिदान की बेदी पर चढ़ता क्योंकि पन्ना-धाय ने उदयसिंह को बचाने के लिए अपने पुत्र चन्दन को बलि दी थी। इसलिए मुझे लगता है कि उन बलिदानों को आज के आंदोलनों के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। नहीं तो पुरातन में हुए सारे ही बलिदान व्यर्थ चले जाएंगे। हमारे यहाँ पुत्र की कामना ही इसलिए थी कि वह बलिदान देता है, इसलिए सभी को समाज ओर देश की रक्षा करने के लिए पुत्र चाहिए था।
जवाब देंहटाएं@कविता लिखते समय मुझे पन्ना धाय का स्मरण भी था ,ऐसे बलिदान के मौके दुर्लभ होते हैं जबकि कन्या भ्रूण हत्या आजकल आम है ...
जवाब देंहटाएंआभार !
मार्मिक ...पर स्थितियां बदलेंगी जरुर.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंयही दर्द भरी सच्चाई है, स्थितियां आज भी कमोबेश वही हैं इस दुखद सत्य को स्वीकार कर कुछ करना पडॆगा.
जवाब देंहटाएंरामराम.
प्रहार करती एक सशक्त रचना.
जवाब देंहटाएंआशीष
--
लाईफ़?!?
दुखद ,विचारणीय सार्थक रचना .......
जवाब देंहटाएंjabardast chot to kar rahi hai ye rachna...lekin dekhna hai ham anpadho me se koi samajh pata hai ise ye nahi.
जवाब देंहटाएंमन दुखी हो गया पढ़कर....लड़के/लड़की का रेशियो घटता जा रहा है...फिर भी लोगो की आँखें नहीं खुल रहीं...
जवाब देंहटाएंबहुत ही भयावह स्थिति है.
लड़कियां मरती नहीं, फिर भी बच जाती हैं।...यही सच है।
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज के चर्चा मंच पर भी की गई है!
जवाब देंहटाएंअधिक से अधिक लोग आपके ब्लॉग पर पहुँचेंगे तो चर्चा मंच का भी प्रयास सफल होगा।
मारने में माँ भी शामिल हैं यह दुखद है .
जवाब देंहटाएंअत्यंत मार्मिक ...
जवाब देंहटाएंसार्थक लेख.. ' अभिव्यंजना' में आप का इंतजार है...
जवाब देंहटाएंबहुत ही दुखद स्थिति है। कब हम सुधरेंगे।
जवाब देंहटाएंपाषाण ह्रदय को भी झकझोर देने वाली कविता।
जवाब देंहटाएंजहां बन रहे हों स्वयं माँ-बाप हत्यारे, कंस को माफ कर देने का मन करता है।
...कविता का सबसे तीखा स्वर।
कडुवा प्रश्न खड़ा करती है ये मार्मिक रचना ... मनोस्थिति बदलनी होगी समाज को ...
जवाब देंहटाएंआपके सामाजिक सरोकारों को नमन. बहुत अच्छे तरीके से आपने कन्या भ्रूड हत्या को नकारा है, आप बधाई की पात्र हैं. सुंदर प्रभावशाली प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंविजयादशमी की शुभकामनायें.
एक दुखद सत्य की मार्मिक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसही लिखा आपने ..
जवाब देंहटाएंआप सभी को विजयदशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!
___________
'पाखी की दुनिया' में आपका स्वागत है.
चिंतनीय विषय है...
जवाब देंहटाएंचिंतन से मर्म तक पहुंचें हम!
विजयादशमी की शुभकामनाएं!
vakai touchy hai...is soch ko salaam!
जवाब देंहटाएंआपकी यह कविता एक ज्वलन्त प्रश्न की ओर इंगित करती है.. मैं स्वयं साक्षी रहा हूँ ऐसी एक घटना का जिसने मेरे मित्र का जीवन बदल कर रख दिया.. लिंक देने की आदत नहीं पर पोस्ट है मेरी.
जवाब देंहटाएंहमारे समाज में वैसे भी सालों भर पाप करके एक बार जय माता दी बोल देने से पाप-मुक्त हो जाने या किसी मज़ार पर चादर डालकर मुक्त होजाने या किसी पादरी के सामने कन्फेस करके पाप-मुक्त हो जाने या गुरुद्वारे में सेवा करके पाप-मुक्त होने की मान्यता है.. इसलिए आपने जो कहा वह भी उसी समाज का हिस्सा है.. गलत सब हैं.
यशोदा से पूछे गए प्रश्न के उत्तर में एक प्रश्न में भी पूछना चाहता हूँ कि वो गंगा ही तो थी जिसने अपने सात पुत्रों को जन्म दिया और गंगा में बहा आयी.. पिता को सवाल पूछने की भी अनुमति न दी.. इसका यह उत्तर नहीं हो सकता कि यदि वे पुरियां होतीं तो बाप कभी पूछते ही नहीं!!
बहुत बढ़िया लिखा है आपने! सत्य को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को दशहरे की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
ह्रदय में टीस लिए आपकी इतनी सुन्दर रचना की क्या तारीफ़ करूँ..? जब तक मानसिकता नहीं बदलेगी..
जवाब देंहटाएंदशहरा पर्व के अवसर पर आपको और आपके परिजनों को बधाई और शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंमार्मिक चित्रण किया है |
जवाब देंहटाएंआशा
मार्मिक यथार्थ और तीखा व्यंग्य आज की समाज कुव्यवस्था पर जबकी मानवीय विकास सूचकांक में हम ११९ वें स्थान पर हैं .लड़का लड़की विषम अनुपात समाज की इसी अवस्था का आईना है .
जवाब देंहटाएंमाँ-बाप ही कंस बन गए हैं ...यथार्थ को चित्रित करती सार्थक प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत मार्मिक और प्रभावपूर्ण अभिव्यक्ति ...आशा यही है कि हमारे विचार जरूर बदलेंगे..
जवाब देंहटाएंउफ़ ......
जवाब देंहटाएंयही तो विडम्बना है हमारे समाज की.
जवाब देंहटाएंकटु लेकिन सत्य।
जवाब देंहटाएंकडवे सच को दर्शाती मार्मिक रचना.
जवाब देंहटाएंपहला कदम लोगों को अपनी मानसिकता बदलने से होगा, बेटे-बेटियों का अंतर भूलना होगा.
www.belovedlife-santosh.blogspot.com
आपकी रचना "तुम्हारा पिता होना.." भी बहुत अच्छी लगी. धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंकुछ ऐसी ही बातें हैं
जवाब देंहटाएंजिनसे हमें घिन आती है
इंसान होने पर !
जितना ज़्यादा हो रहे समृद्ध हम
उतने ही कमज़ोर और लाचार बन रहे हैं !
आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद ।
मन को झंझोड़ने वाली रचना...
जवाब देंहटाएंसटीक
जवाब देंहटाएंसोचने पर मजबूर करती अच्छी रचना
कुछ व्यक्तिगत कारणों से पिछले 20 दिनों से ब्लॉग से दूर था
जवाब देंहटाएंइसी कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका !
ghatnaao dwara bahut bharsak prayas raha ki aankhe khul jaye lekin sab jante samajhte hue bhi andhe behre bane baithe hain....navratri k vrat rakhte hain.
जवाब देंहटाएंsateek, katu saty.
बहुद पीडादायक और मार्मिक तथा शर्मनाक भी मानवता के लिए
जवाब देंहटाएंहम एक निर्लज्ज समाज में रहते हैं और उसपर मजा यह कि अपने समाज को सबसे महान मानते हैं.
जवाब देंहटाएंदीपावली की शुभकामनाएँ।
घुघूती बासूती
मार्मिक और सार्थक
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंबाप के चेहरे को देखो
सींग दो दिखते वहाँ !
कौन पुत्री जन्म लेगी
कंस के ,प्रासाद में !
जन्म से पहले ही जननी,मारती मासूम को
पूतना अब माँ बनीं हैं,फिर भी हम इंसान हैं !
खिलखिलाती बच्चियों से
ही ,धरा रमणीय रहती !
प्रणय औरआसक्ति बिन
स्रष्टि कहाँ निर्विघ्न होती !
अपने बाबुल हाथ,मारी जा रही हैं, बच्चियां !
जानकी को मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !
भ्रूण हत्या से घिनौना ,
पाप क्या कर पाओगे !
नन्ही बच्ची क़त्ल करके ,
ऐश क्या ले पाओगे !
जब हंसोगे, कान में गूंजेंगी,उसकी सिसकियाँ !
एक गुडिया मार कहते हो कि, हम इंसान हैं !
२०११ की रचना २०१३ में भी सार्थक है
जवाब देंहटाएं