बुधवार, 1 दिसंबर 2010

काँधे मेरे तेरी बन्दूक के लिए नहीं है .....







मैं
नादान
नाजुक
कमजोर
हताश
मायूस
तुम्हे लगती रहू
मगर
याद रख
कांधे मेरे
तेरी बन्दूक के लिए नहीं है ....

छोटे हाथ मेरे
नाजुक अंगुलियाँ
भले होंगी मेरी
भार उठाएंगी
खुद इनका
जरुरत हुई तो ....

जीतना मैं भी चाहूं
तू भी
बस जुदा है
रास्ता तेरा - मेरा
जीतना चाहती हूँ मैं
सम्मान से सम्मान को
प्रेम से प्रेम को .....
जीत स्थायी वही होती है
जो
मिले
दिलों को जीत कर
युद्ध शांति का पर्याय कभी नहीं होता
देख ले
इतिहास के पन्ने पलट कर

आखिर महाभारत से किसने क्या पाया
क्या सच ही....
शांति ....??
कलिंग जीत कर भी
अशोक क्यों चला
शांति की ओर
लाशों के ढेर
कभी आपको नहीं दे सकते
सम्मान ,शांति और प्रेम ...

सिर्फ दे सकते है
घिन
वितृष्णा
नफरत ...
और घबरा कर जो बढ़ेंगे कदम
तो तय करेंगे
राह
सिर्फ
प्रेम और शांति की ही ...




ज्ञानवाणी से

चित्र गूगल से साभार ...

45 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम और शांति -मानवता के चिरन्तन साथी ....

    जवाब देंहटाएं
  2. वानी जी,
    नमस्ते!
    सत्य वचन.
    सार्थक सन्देश.
    आई एग्री.
    आशीष
    ---
    नौकरी इज़ नौकरी!

    जवाब देंहटाएं
  3. आखिर महाभारत से किसने क्या पाया
    क्या सच ही....
    शांति ....??
    कलिंग जीत कर भी
    अशोक क्यों चला
    शांति की ओर
    लाशों के ढेर
    कभी आपको नहीं दे सकते
    सम्मान ,शांति और प्रेम ...
    .......
    चाहते हो गर सुकून
    तो सुकून की खिड़कियाँ तुम भी खोलो
    मन की जीत ही जीत है
    मन की हार हार
    ........
    बहुत ही सारगर्भित भावनाएं

    जवाब देंहटाएं
  4. बड़े ही सुन्दर भाव पिरो लाती हैं आपकी कवितायें।

    जवाब देंहटाएं
  5. आखिर महाभारत से किसने क्या पाया
    क्या सच ही....
    शांति ....??
    सार्थक प्रश्न उकेरती रचना. युद्ध कभी सुकून नहीं दे सकता

    जवाब देंहटाएं
  6. Hi..

    Prem pyaar se jeeta jaata..
    Man ka har aayam..
    Aur yudh bas de sakta hai,
    nafarat ka paigam..

    Samrat Ashok aur Kaling yudh ko kaun bhul sakta hai..

    Sargarbhit kavita..

    Deepak..

    जवाब देंहटाएं
  7. प्रेम का संदेश देती एक सुंदर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  8. संसार को प्रेम और शांति से ही बचाया जा सकता है.

    जवाब देंहटाएं
  9. बहुत सुन्दर सन्देश...

    जितना मै भी चाहू ........बहुत सुदर पैरा.......
    आदर सहित
    मंजुला

    जवाब देंहटाएं
  10. कलिन्ग जीत कर भी ---- चिन्तनपरक रचना।
    कन्धे मेरे तेरी बन्दूक के लिये नही हैं---- मगर आज कल लोग अपने मतलव के लिये दूसरों के कन्धी ही प्रयोग मे लाने लगे है। कुछ अपने स्वार्थ के लिये धर्म के कन्धों पर बन्दूक रख कर चला रहे हैं कोई धन के लिये तो कोई किसी और वजह से। बहुत अच्छी लगी रचना। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  11. प्रेम और शांति का संदेश देती एक बेहद उम्दा प्रस्तुति।बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  12. प्रेम और शांति की ओर अग्रसित करती अच्छी रचना ...इतिहास के उदाहरण से बात को बल प्रदान किया है ..

    जवाब देंहटाएं
  13. शांति सन्देश ..भावपूर्ण अंदाज में.बहुत सुन्दर.

    जवाब देंहटाएं
  14. जीत वही स्थायी है..जो दिलो को जीत कर मिले....सोलहो आने सच बात
    बड़ी जोश दिलाने वाले प्रेरणामयी कविता है

    जवाब देंहटाएं
  15. इसे कहते है feminine मजबूती , बहुत अच्छे, लिखते रहिये .....

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत ही सुंदर और सार्थक रचना.

    रामराम.

    जवाब देंहटाएं
  17. इस कविता को पढकर बस एक ही ध्वनि अन्र्मन से प्रतिध्वनित होती है:
    बुद्धं शरणम गच्छामि!!

    जवाब देंहटाएं
  18. प्रेम और शांति की लेखिका को नमन.बहुत सुंदर रचना.

    जवाब देंहटाएं
  19. इस भाव की बहुत कम कविता लिखी जा रही हैं.. सुन्दर कविता..

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत ही अच्छे ख़यालात , बहुत ही अच्छी प्रस्तुति। बधाई।

    जवाब देंहटाएं
  21. सुन्दर सन्देश और सशक्त रचना.. आपकी रचना बहुत अच्छी लगी .. आपकी रचना आज दिनाक ३ दिसंबर को चर्चामंच पर रखी गयी है ... http://charchamanch.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  22. vani ji
    bahoot hi sunder prastuti......... bahoot achchhi seekh evam sunder vichar

    जवाब देंहटाएं
  23. नवीन कुछ भी हो उसका उदय शांति से ही होता है,
    आत्मीय रचना के लिए साधुवाद.

    जवाब देंहटाएं
  24. जीत स्थाई वही होती है
    जो
    मिले
    दिलों को जीतकर

    मैं उस्ताद तो नहीं मगर मेरा मन कहता है कि मैं आपको १००/१०० दूं .

    जवाब देंहटाएं
  25. स्वजनता में कहीं फंसा हुआ था पहुँचने में खासी देरी हो चुकी है ! हमेशा की तरह से वाणी ब्रांड तेवर पर इस बार शान्ति के लिए !

    अक्सर सोचता हूं अल्लाह के बंदे शांति के लिए भी महाभारत कर सकते हैं !

    जवाब देंहटाएं
  26. वाकई जीत वही है जो दिलों को जीत कर हासिल की जाती है....रचना बहुत अच्छी लगी इसलिए ब्लॉग भी फॉलो कर लिया....

    जवाब देंहटाएं
  27. बहुत प्रेरक भावो से सजी है ये कविता |
    बार बार सोचने को मजबूर करती है जब हम सब शांति चाहते है और शांति से रहते है तो युद्ध के प्रवर्तक कौन ?

    जवाब देंहटाएं
  28. युद्ध शांति का पर्याय कभी नहीं होता
    बिलकुल सही कहा है आपने ...शुक्रिया
    चलते -चलते पर आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  29. मानवीय संवेदनाओं को जीती हुई आपकी कविता मन को छूती है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

    जवाब देंहटाएं
  30. कलिंग जीत कर भी
    अशोक क्यों चला
    शांति की ओर
    युद्ध शांति का पर्याय कभी नहीं होता
    जीतना चाहती हूँ मैं
    सम्मान से सम्मान को
    प्रेम से प्रेम को .....



    वाणी जी,
    सार्थक सन्देश.
    जीत स्थायी वही होती है जो दिलों को जीत कर मिले .

    जवाब देंहटाएं
  31. बहुत ही सारगर्भीत रचना है ... अपने इतिहास भी तो बार बार यही कहता है .. पर इंसान सोच नही पाता ...

    जवाब देंहटाएं
  32. आदरणीया वाणी जी
    नमस्कार !

    आपने सच कहा -

    लाशों के ढेर
    कभी नहीं दे सकते
    सम्मान, शांति और प्रेम …

    सिर्फ दे सकते है
    घिन
    वितृष्णा
    नफ़रत …


    …और निस्संदेह
    जीत स्थायी वही होती है,
    जो मिले
    दिलों को जीत कर


    बहुत सारगर्भित रचना के लिए आभार और बधाई !

    शुभकामनाओं सहित
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  33. .

    एक जागरूक व्यक्ति की बुलंद आवाज़ सुनाई दे रही है कविता में। अब कोई किसी के कन्धों का गलत इस्तेमाल नहीं कर सकेगा।

    .

    जवाब देंहटाएं
  34. आदरणीय वानी जी,
    नमस्कार !
    कविता के माध्‍यम से एक सार्थक संदेश दिया है।
    "माफ़ी"--बहुत दिनों से आपकी पोस्ट न पढ पाने के लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  35. कविता के माध्‍यम से एक सार्थक संदेश...

    जवाब देंहटाएं
  36. बड़े ही सुन्दर भाव,सार्थक संदेश,सारगर्भित कविता.

    जवाब देंहटाएं