बुधवार, 8 दिसंबर 2010

जिंदगी और समय .....





जिंदगी और समय
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उससे

लड़ना ...
झगड़ना ...
रूठना ...
चाहे मत मनाना ...
बस ...
कभी अलविदा मत कहना ...
उसने कभी मुड कर नहीं देखा ...
पलट कर देखना उसे आता नहीं ....
रुक जाना उसके वश में नहीं ....
क्या है वह ....!
जिंदगी या समय ...!


रुठते उससे कैसे भला
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किसी बात से खफा नहीं होना
बस मुस्कुरा देना
आदत मेरी कभी नहीं थी ....
रुठते मगर उससे कैसे भला
मनाना जिसकी आदत ही नहीं ...



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चित्र गूगल से साभार ..

















46 टिप्‍पणियां:

  1. रूठना उनसे क्या
    जो मनाते नहीं
    ....
    बहुत अच्छी रचना

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  2. चाहे मत मनाना उसे बस , कभी अलविदा मत कहना।

    सुन्दर पंक्ति , अच्छी कविता। बधाई।

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  3. अच्‍छी अभिव्‍यक्ति, बधाई। भाई हमारा भी ऐसे लोगों से ही पाला पड़ा है जो मनाना जानते ही नहीं। हा हा हा हा।

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  4. सुंदर प्रस्तुति| बधाई|
    http://thalebaithe.blogspot.com

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  5. अच्छे भाव लिए सुंदर अभिव्यक्ति .....

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  6. Sach hai...unse kya rrothna jo manana na jane! Bahut sundar rachana!

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  7. रूठने मनाने पर अच्छा शोध ....जब कोई मनाये ही नहीं तो रूठने से क्या लाभ ? :):)

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  8. चाहे मत मनाना ...
    बस ...
    कभी अलविदा मत कहना ...

    बस यही पते की बात है...रूठने-मनाने से ज्यादा...सुन्दर लिखा है

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  9. बहुत खूब , जिन्दगी का समय का... चित्रण

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  10. बहुत खूब ! शुभकामनायें आपको !

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  11. जी वक़्त कभी रुकता नहीं हमें ही वक़्त के साथ चलना पड़ता है .....

    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....!!

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  12. बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत बहुत सुंदर!!

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  13. रूठते उससे कैसे भला
    मानना जिनकी आदत नहीं...
    बहुत ही खूबसूरत लगीं ये पंक्तियाँ....
    लेकिन..
    रूठों को मनाये कैसे भला...
    मानना जिनकी आदत नहीं...
    बुरा मत मानियेगा, एक ख़याल ये भी हो सकता है...
    आपका आभार..!

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  14. vaani ji
    bahut bahut hi achhi post kya do tuk baat likhi hai aapne .
    bahut hi gahan abhivyakti.
    bdhai.
    poonam

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  15. समय हमें अलविदा कहने का मौका कहाँ देता है। हर बार वही कह कर चल देता है।
    ..सुंदर प्रस्तुती।

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  16. अच्छा हुआ जो उसने
    फितरत अपनी बता दी
    वर्ना हम तो रूठ कर
    इंतज़ार में मर जाते.

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  17. रूठने मनाने की यही है कहानी । सुन्दर भावमय अभिव्यक्ति।

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  18. पलट कर देखना उसे आता नहीं.........ज़िन्दगी या समय !
    सही कहा आपने दोनों की फितरत ऐसी ही है !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  19. वाणी जी ,
    यूं तो दोनों ही कवितायें अच्छी हैं पर पहली कविता का दर्शन मुझे ज्यादा पसंद आया ! मेरे हिसाब से दोनों ही कवितायें 'अपेक्षाओं' पर टिकी हैं फर्क केवल ये कि पहली में केवल अनिश्चित उत्तर और दूसरी में अपेक्षाओं के अनुरूप हो जाने की कोशिश साफ़ नज़र आती है !


    [ कम्प्यूटर महाराज की गद्दारी की वज़ह से देर से पहुँच पाया आपकी कविताओं के आगे मेरी टिप्पणी बौनी है ! इसे और ज्यादा सहृदय / विशाल ह्रदय होना चाहिए था ]

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  20. दोनों कवितायें बहुत ही सुन्दर हैं। दार्शनिक अनुभूतियों से ओतप्रोत हैं।

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  21. चाहे मत मनाना ...
    बस ...
    कभी अलविदा मत कहना
    भावमय, सुन्दर, दार्शनिक प्रस्तुती।

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  22. लिखा भी दिलकश है और तस्वीर और भी उम्दा !

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  23. जिंदगी और समय अलग कहा ? और बाद की कविता बहुत बुद्धिमानी दर्शाती है !
    (बाई द मनाना मुझे भी नहीं आता ,काश कोई सिखा देता )

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  24. सराहनीय प्रस्तुति
    http://nature7speaks.blogspot.com/

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  25. एकदम सटीक बात...उनसे भला क्या रूठना जो मनाना नहीं जानते।...नए भावों से युक्त एक उत्तम कविता।...शुभकामनाएं।

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  26. हर श्ब्द मुखरित हो उठे हैं। धन्यवाद।

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  27. इसलिए खड़ा रहा की तुम मुझे पुकार लो ..बच्चन की पंक्तिया याद आई ! मर्मी कविता के लिए बधाई !

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