मंगलवार, 1 जून 2010

तुम्हारी आँखें

मेरी सूरत की पहचान तुम्हारी ऑंखें
मेरे दिल की निगेहबान तुम्हारी ऑंखें
जो राज़ कह सके लबों से
वो हर राज़ उगल गयी तुम्हारी ऑंखें

सुना है हमसे नाराज़ हो
यकीन होता तो क्यों कर
तुम्हारे दिल में हमारी मूरत
दिखा गयी तुम्हारी ऑंखें

हर सुबह हमें जगा कर गयी
हर शब् हमें रुला कर गयी
उभरे अश्क अपनी आँखों में
क्या तरल हुई तुम्हारी ऑंखें?

कश्ती टूटी पर पार कर ही आए
ग़मों की वो बहती दरिया
सहारा था तुम्हारा हमें
साहिल थी तुम्हारी ऑंखें

जिनमे संभलकर डूबे हम
जिनमे खोकर संभले हम
प्यार से प्यार जताती
हैं..सनम तुम्हारी ऑंखें

अपनी जुदाई का अफ़सोस क्या
अपने में समाये हैं तुम्हारी ऑंखें
हम किसी राह भी हो आयें
मंजिल है....तुम्हारी ऑंखें



पुनः प्रकाशित (पुरानी डायरी से )



16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!! ये आँखें...बहुत सुन्दर रचना!

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  2. जो राज़ कह न सके लबों से
    वो हर राज़ उगल गयी तुम्हारी ऑंखें

    सुन्दर भाव की रचना।

    नहीं है होंठ के बस में जो भषा नैन की बोले।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com

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  3. क्रोध पर नियंत्रण स्वभाविक व्यवहार से ही संभव है जो साधना से कम नहीं है।

    आइये क्रोध को शांत करने का उपाय अपनायें !

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  4. जीवन से भरी तेरी आँखें ..
    मजबूर करें जीने के लिए..
    सागर भी तरसते रहते हैं..
    तेरे रूप का रस पीने के लिए..
    बहुत सुन्दर कविता...

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  5. अपनी जुदाई का अफ़सोस क्या
    अपने में समाये हैं तुम्हारी ऑंखें
    हम किसी राह भी हो आयें
    मंजिल है....तुम्हारी ऑंखें....

    ये मेरी साँसों की फितरत रही
    तुम्हारी आँखों से दूर हो ना सके
    अपने साथ इनको लिए चलते रहे
    कोई दस्तक नहीं दी कुछ कह ना सके

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  6. अपनी जुदाई का अफ़सोस क्या
    अपने में समाये हैं तुम्हारी ऑंखें
    हम किसी राह भी हो आयें
    मंजिल है....तुम्हारी ऑंखें
    bahut sundar rachna !!!

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  7. कश्ती टूटी पर पार कर ही आये....बहुत खूबसूरत ग़ज़ल...

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  8. sundar geet aankhon par...manjil hain tu,mhari aankhein...bhai waah...

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  9. अपनी जुदाई का अफ़सोस क्या
    अपने में समाये हैं तुम्हारी ऑंखें
    हम किसी राह भी हो आयें
    मंजिल है....तुम्हारी ऑंखें
    क्या बात है....इतनी ख़ूबसूरत रचना रच डाली...नेट से दूर..यही हो रहा है आजकल..अच्छा है..हमें सुन्दर सुन्दर रचनाये पढने को मिलेंगी...आपकी हलो भले ही ना मिले...

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  10. बहुत बढ़िया - आँखों पर एक नयी और नयी तरह की रचना।
    पेश-ए-नज़्र है…
    आँखों मे ले के वो प्यारी आँखें,
    हैं तजस्सुस में कँवारी आँखें,
    जाने क्या गुज़रे अब आँखों पे हुज़ूर,
    झुकें-उट्ठें-मिलें-फिर जायँ तुम्हारी आँखें!

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