रविवार, 24 मार्च 2013

क्या ईश्वर का उद्देश्य भिन्न था .....






ईश्वर ने रचे रात्रि दिवस 
संग अनादि दृश्य प्रपंच था !
ब्रह्माण्ड आच्छादित चन्द्र सूर्य 
तारक समूह नभ आलोकित था !!
   
बाग़ बगीचे , झरने कलकल  
पहाड़ नदियाँ  थार मरुस्थल !
वसुधा के आँचल पर काढ़े  
वनस्पतियों का विस्तार सघन था !!

बसंत नव पल्लव शरद शिशिर  
पतझड़ पीला पात मर्मर  था ! 
ग्रीष्म  आतप  दग्ध था भीषण  
रिमझिम पावस जलतरंग था !!

मधुर  मदालापी मीन मधुप 
खग- मृग  कलरव किलोल था !
चातक  चकोर सुक खंजन 
नील सरोवर उत्पल व्याकुल था !!

मुग्ध दृष्टि  सृष्टि पर रचता 
ह्रदय शिरा मस्तिष्क  संचित था! 
प्रथम स्त्री रची शतरूपा
प्रथम पुरुष स्वायंभुव मनु था !!


प्रेम न उपजे पण तो यह था  
किन्तु  यह न्यायोचित न था ! 
पवन वेग से अग्नि शिखा  का 
वन में दावानल घटना था !! 

ईश्वर ने रची  रचना  भिन्न थी 
उस पर प्रेषित निर्देश भिन्न था! 
कहत नटत रीझत खीझत सा 
क्या ईश्वर  का उद्देश्य भिन्न था !!





चित्र गूगल से साभार ....

शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े




शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े 
करके मेरी पुकार अनसुनी 
बैठ जाते है अलाव तापने 
कभी दुबके रजाई में 
मोज़े मफलर शॉल लपेटे 
खदबदाती राबड़ी में जा छिपते हैं 
करते आँख मिचौली 
ऐसे नहीं सुनने वाले है ये ढीठ शब्द 
कभी  बैठते हैं छत से जा चिपके 
यहाँ- वहां से इकठ्ठा करूँ 
बैठा दूं करीने से 
पुचकारू   प्यार से 
हौले से थपकी दे संभालूं 
या कान उमेठ समझा दूं 
सर्दी के छोटे दिनों में 
टुकड़े -टुकड़े दिन सँभालते 
एक पूरा दिन इतना तो मिले !! 



बुधवार, 5 दिसंबर 2012

तेरा होना जैसे कि कोई ख़याल ....



सुनहरी धूप   में 
आँखों को चौंधियाते 
भुरभुरी रेत के टीबे  से 
होते हैं कुछ ख़याल 
पास बुलाते हैं इशारे से 
छू कर  देखे तो 
पल में  बिखर जाते हैं !

उम्र की सरहदों के पार 
बालों से झांकती सफेदी के बीच 
मोतियाबंदी आँखों में झिलमिलाते  
पोपले चेहरे की लजीली मुस्कराहट 
हमसाया सा  आस -पास 
जीवन भर रहता  एक  ख़याल !!

अहसास की किताबों के पन्ने 
लिखे जाते हैं स्वयं ही 
मन हुआ तो पढ़ लिया 
वर्ना पन्ने पलट दिए .
ऐसे ही किसी पन्ने पर  
लिखा हुआ  कोई ख़याल !!

काली गहरी रात के वितान पर 
सुनहरे सितारों से सजा 
बेखटके निहारते 
आसमान पर टांग दिया 
एक खयाल !


जीवन मुट्ठी से फिसलती रेत -सा 
पलकों के इर्द गिर्द रहा एक  ख्याल 
मुद्दतों यही सोच कर आँखें रोई नहीं 
गीली रेत  पर क़दमों के निशाँ साफ़ नजर आते हैं .!!