शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े
करके मेरी पुकार अनसुनी
बैठ जाते है अलाव तापने
कभी दुबके रजाई में
मोज़े मफलर शॉल लपेटे
खदबदाती राबड़ी में जा छिपते हैं
करते आँख मिचौली
ऐसे नहीं सुनने वाले है ये ढीठ शब्द
कभी बैठते हैं छत से जा चिपके
यहाँ- वहां से इकठ्ठा करूँ
बैठा दूं करीने से
पुचकारू प्यार से
हौले से थपकी दे संभालूं
या कान उमेठ समझा दूं
सर्दी के छोटे दिनों में
टुकड़े -टुकड़े दिन सँभालते
एक पूरा दिन इतना तो मिले !!
शब्द बच्चे बन ही गए हैं तो नहला धुलाकर स्वेटर पहनकर सामने बैठाओ - कहो,हिलना मत
जवाब देंहटाएं:-)
हटाएंअब इतनी ठण्ड है , बच्चो को नहलाने की बात करेंगी तो दूर भागेंगे वो गिल्ली डंडा खेलने . वैसे जाने वाली है सर्दी , कब तब दूर रहेंगे शब्द , आ तो गए.
जवाब देंहटाएंमैं भी राह पुकारूँ, आयें..
जवाब देंहटाएंहोता है ऐसा कभी कभी जिन्हें ज्यादा चाहो वो ही तो सिर चढ जाते हैं :)
जवाब देंहटाएं:):) फिर भी पकड़ कर ले ही आयीं हैं शब्दों को .... मेरी तो पहुँच से दूर हो गए हैं ।
जवाब देंहटाएंटुकड़े टुकड़े दिन सँभालते
जवाब देंहटाएंएक पूरा दिन इतना तो मिले !!
लो जी कर लो बात ..... सर चढ़े इतने दुलारे होते हैं ....... :))
हाँ शब्दों को भी undivided attention चाहिये। ऐसे कैसे चले आयें..:)
जवाब देंहटाएंअब देखो इतने प्यार से बुलाया तो आये न इस गीत की शक्ल में
आप तो ले ही आयीं उन्हें रजाई के बाहर ......बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-12-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!
सूचनार्थ!
कडाके की सर्दी में अपने शब्द कहना नही मानते,,,
जवाब देंहटाएंrecent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
achchhi lagi kawita.
जवाब देंहटाएं"शीत ऋतु" को शब्द सुन्दर तरीके से शब्द की दुलाई
जवाब देंहटाएंओढ़ाई गयी है ......बहुत ही सुन्दर रचना ...
मगर यहाँ तो वर्तमान घटनाओं के लिए मुखरित होते
शब्द भी सरचढ़े नहीं लगते ....दूसरी और सामने वाला
हमें ही अपराधी मान बैठा है ...चोरी और सीना जोरी ...
(वर्तमान में सरहद में बलि चढ़े दो शहीदों के सम्बन्ध में)
इतनी सर्दी में भी शब्दों को आखिर पकड ही लिया? बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
आपने इस ठंड में भी खदबदाती राबडी की अच्छी याद दिला दी. पर अब कहां वो मांटी की हांडी और कहां वो लकडी का चाटू? राबडी, हांडी और चाटू सब यादों में ही रह गये हैं. ्बस पुरानी यादें ताजा हो आई.
जवाब देंहटाएंरामराम.
ठण्ड का एहसास है,शब्द नहीं.
जवाब देंहटाएंNew post : दो शहीद
New post: कुछ पता नहीं !!!
शब्द मासूम भी होते हैं.. और मन-मौजी भी ! कभी बिन बुलाए ज़हन में आ जाते हैं... कभी ढूँढे से भी मिलते नहीं...
जवाब देंहटाएं~सादर!!!
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♥सादर वंदे मातरम् !♥
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शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े
करके मेरी पुकार अनसुनी
...
...
यहाँ- वहां से इकठ्ठा करूँ
बैठा दूं करीने से
पुचकारूँ प्यार से
हौले से थपकी दे संभालूं
या कान उमेठ समझा दूं
सर्दी के छोटे दिनों में
टुकड़े टुकड़े दिन सँभालते
एक पूरा दिन इतना तो मिले !!
हां , क्या मुश्किल है फिर आपके लिए
एक पूरा दिन इतना तो मिले...
:)
आदरणीया वाणी जी
बहुत सुंदर कविता लिखी है , बधाई !
ऐसे ही सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे आपकी कलम से …
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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जब सब कुछ जम रहा हो तो बेचारे शब्दों का क्या कसूर ...
जवाब देंहटाएंख्यालों का अलाव जलाइए ... खुद ब खुद झोली में गिर पड़ेंगे ...
मकर संक्रांति की शुभकामनायें ...
मुझे तो लगा था की आपके शब्द सफ़र पर निकल गए :-)
जवाब देंहटाएंशरारती शब्दों की सुन्दर शरारत ..
जवाब देंहटाएंshabd,shabd ke apne hi bhav hai
जवाब देंहटाएंवाह ! आपकी तो शब्दों से बहुत बनती है..बहुत प्यारी सी कविता!
जवाब देंहटाएंलो कल्लो बात!!
जवाब देंहटाएंइतनी खूबसूरती से पकडकर आपने शब्दों को एक लाइन में बिठा दिया कि वे भी खुश हो रहे हैं!! और हम तो खुश हैं ही!! :)
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंअभी ठण्ड बाकी हैं ....
अरे वाह ...
जवाब देंहटाएंवाकई शब्दों को ठंडक लग गयी है ...
याद ही नहीं आते !
बेहतरीन!!
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर कविता |ब्लॉग पर आने के लिए आपका विशेष आभार |
जवाब देंहटाएंgazab ki soch.....bahut achchai lagi.
जवाब देंहटाएंबढ़िया बिम्ब सुंदर गीत
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत प्यारी कविता.....वाकई शब्द बहुत मनचले होते हैं...सदा अपने मनकी करते हैं.....:)
जवाब देंहटाएंSundar shbd rchna..
जवाब देंहटाएंबेहद प्रभाव साली रचना और आपकी रचना देख कर मन आनंदित हो उठा बहुत खूब
जवाब देंहटाएंआप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
.
शिवरात्रि की शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंशब्द वाकई नकचढे हो जाते हैं कभी कभी । एक अलग सी प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंशब्द भी शरारती होते हैं :-)
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
सादर !
shabdo ko kahan sula diya.........
जवाब देंहटाएंbade din ho gaye.. koi updates nahi aaya...
जवाब देंहटाएंसच में शब्दों पर कहाँ बस चलता है...बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंबड़े नटखट हो गए शब्द हैं आजकल-एकदम छूट भागते हैं ,पर आपने कुशलता से समेट लिया !
जवाब देंहटाएंशब्दों का खेल, शब्दों के साथ..बड़ी सुन्दर कल्पना है.
जवाब देंहटाएंशब्दों शब्दों में ही शब्दों पर बेहतरीन रचना ..एक नयापन सा लगा इस कविता में ..सादर बधाई के साथ
जवाब देंहटाएंगहन अनुभूति
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों