शुक्रवार, 11 जनवरी 2013

शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े




शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े 
करके मेरी पुकार अनसुनी 
बैठ जाते है अलाव तापने 
कभी दुबके रजाई में 
मोज़े मफलर शॉल लपेटे 
खदबदाती राबड़ी में जा छिपते हैं 
करते आँख मिचौली 
ऐसे नहीं सुनने वाले है ये ढीठ शब्द 
कभी  बैठते हैं छत से जा चिपके 
यहाँ- वहां से इकठ्ठा करूँ 
बैठा दूं करीने से 
पुचकारू   प्यार से 
हौले से थपकी दे संभालूं 
या कान उमेठ समझा दूं 
सर्दी के छोटे दिनों में 
टुकड़े -टुकड़े दिन सँभालते 
एक पूरा दिन इतना तो मिले !! 



44 टिप्‍पणियां:

  1. शब्द बच्चे बन ही गए हैं तो नहला धुलाकर स्वेटर पहनकर सामने बैठाओ - कहो,हिलना मत

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  2. अब इतनी ठण्ड है , बच्चो को नहलाने की बात करेंगी तो दूर भागेंगे वो गिल्ली डंडा खेलने . वैसे जाने वाली है सर्दी , कब तब दूर रहेंगे शब्द , आ तो गए.

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  3. होता है ऐसा कभी कभी जिन्हें ज्यादा चाहो वो ही तो सिर चढ जाते हैं :)

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  4. :):) फिर भी पकड़ कर ले ही आयीं हैं शब्दों को .... मेरी तो पहुँच से दूर हो गए हैं ।

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  5. टुकड़े टुकड़े दिन सँभालते
    एक पूरा दिन इतना तो मिले !!
    लो जी कर लो बात ..... सर चढ़े इतने दुलारे होते हैं ....... :))

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  6. हाँ शब्दों को भी undivided attention चाहिये। ऐसे कैसे चले आयें..:)
    अब देखो इतने प्यार से बुलाया तो आये न इस गीत की शक्ल में

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  7. आप तो ले ही आयीं उन्हें रजाई के बाहर ......बहुत सुंदर

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  8. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार (13-12-2013) को (मोटे अनाज हमेशा अच्छे) चर्चा मंच-1123 पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  9. "शीत ऋतु" को शब्द सुन्दर तरीके से शब्द की दुलाई

    ओढ़ाई गयी है ......बहुत ही सुन्दर रचना ...

    मगर यहाँ तो वर्तमान घटनाओं के लिए मुखरित होते

    शब्द भी सरचढ़े नहीं लगते ....दूसरी और सामने वाला

    हमें ही अपराधी मान बैठा है ...चोरी और सीना जोरी ...

    (वर्तमान में सरहद में बलि चढ़े दो शहीदों के सम्बन्ध में)

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  10. इतनी सर्दी में भी शब्दों को आखिर पकड ही लिया? बहुत सुंदर रचना.

    रामराम

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  11. आपने इस ठंड में भी खदबदाती राबडी की अच्छी याद दिला दी. पर अब कहां वो मांटी की हांडी और कहां वो लकडी का चाटू? राबडी, हांडी और चाटू सब यादों में ही रह गये हैं. ्बस पुरानी यादें ताजा हो आई.

    रामराम.

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  12. शब्द मासूम भी होते हैं.. और मन-मौजी भी ! कभी बिन बुलाए ज़हन में आ जाते हैं... कभी ढूँढे से भी मिलते नहीं...
    ~सादर!!!

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  13. ✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
    ♥सादर वंदे मातरम् !♥
    ♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿


    शब्द हो गए हैं इन दिनों सर चढ़े
    करके मेरी पुकार अनसुनी
    ...
    ...
    यहाँ- वहां से इकठ्ठा करूँ
    बैठा दूं करीने से
    पुचकारूँ प्यार से
    हौले से थपकी दे संभालूं
    या कान उमेठ समझा दूं
    सर्दी के छोटे दिनों में
    टुकड़े टुकड़े दिन सँभालते

    एक पूरा दिन इतना तो मिले !!
    हां , क्या मुश्किल है फिर आपके लिए
    एक पूरा दिन इतना तो मिले...
    :)

    आदरणीया वाणी जी
    बहुत सुंदर कविता लिखी है , बधाई !
    ऐसे ही सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन होता रहे आपकी कलम से …


    हार्दिक मंगलकामनाएं …
    लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !

    राजेन्द्र स्वर्णकार
    ✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿

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  14. जब सब कुछ जम रहा हो तो बेचारे शब्दों का क्या कसूर ...
    ख्यालों का अलाव जलाइए ... खुद ब खुद झोली में गिर पड़ेंगे ...
    मकर संक्रांति की शुभकामनायें ...

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  15. मुझे तो लगा था की आपके शब्द सफ़र पर निकल गए :-)

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  16. शरारती शब्दों की सुन्दर शरारत ..

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  17. वाह ! आपकी तो शब्दों से बहुत बनती है..बहुत प्यारी सी कविता!

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  18. लो कल्लो बात!!
    इतनी खूबसूरती से पकडकर आपने शब्दों को एक लाइन में बिठा दिया कि वे भी खुश हो रहे हैं!! और हम तो खुश हैं ही!! :)

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  19. बहुत बढ़िया
    अभी ठण्ड बाकी हैं ....

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  20. अरे वाह ...
    वाकई शब्दों को ठंडक लग गयी है ...
    याद ही नहीं आते !

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  21. सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...

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  22. बहुत ही सुन्दर कविता |ब्लॉग पर आने के लिए आपका विशेष आभार |

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  23. बढ़िया बिम्ब सुंदर गीत
    बधाई

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  24. बहुत प्यारी कविता.....वाकई शब्द बहुत मनचले होते हैं...सदा अपने मनकी करते हैं.....:)

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  25. बेहद प्रभाव साली रचना और आपकी रचना देख कर मन आनंदित हो उठा बहुत खूब

    आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में

    तुम मुझ पर ऐतबार करो ।

    .

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  26. शब्द वाकई नकचढे हो जाते हैं कभी कभी । एक अलग सी प्रस्तुति ।

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  27. शब्द भी शरारती होते हैं :-)
    सुन्दर रचना
    सादर !

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  28. सच में शब्दों पर कहाँ बस चलता है...बहुत सुन्दर

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  29. बड़े नटखट हो गए शब्द हैं आजकल-एकदम छूट भागते हैं ,पर आपने कुशलता से समेट लिया !

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  30. शब्दों का खेल, शब्दों के साथ..बड़ी सुन्दर कल्पना है.

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  31. शब्दों शब्दों में ही शब्दों पर बेहतरीन रचना ..एक नयापन सा लगा इस कविता में ..सादर बधाई के साथ

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  32. गहन अनुभूति
    सुंदर रचना


    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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