समूह में घिरी हुई तुम
दिख जाती हो अक्सर
बेरंग बदरंग चेहरे
तुमसे चिपटते , बलैया लेते
एक दूसरे की बहन बनाते
तुम्हे बोल्ड और ईमानदारी का तमगा पकड़ाते
जिनकी आँखों की बेईमानी
साफ़ नजर आती है.
तुम्हे नजर नहीं आता या
झूठे तमगों की सुनहरी रौशनी में
अपनी गर्दन ऊँची कर तुम
गटक जाती हो
अपनी सब निराशाओं को
नाकामियों को …
या कि
कंटीली झाड़ियों के दुष्कर पथ पर
अपने क़दमों के निशा रखती हो
पीछे चले आने वाले
नन्हे क़दमों को संबल देते
जो तुमसा होना चाहते हैं
तुम हो जाना चाहते हैं !!
अपनी मुक्ति का जयघोष करते
इन्द्रधनुषी रंगों की सतरंगी आभा
भली लगती है तुम्हारे चेहरे पर
तुम्हारी आँखों में
मगर
क्या समझना है तुम्हे
मुक्त किससे होना है तुम्हे
मुक्ति का मार्ग बताने वाले
मुक्ति के गूंजा देने वाले नारों के बीच
चुप रह जाने वालों की भाषा
तुम समझोगी नहीं
कुछ घुटी -घुटी चीखें
सूनी आँखों से बताती है
तुम्हारी मुक्ति ही उनकी आजादी है !!
वाह! कथन एक, आयाम अनेक।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती,आभार।
जवाब देंहटाएंवाह..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक
जवाब देंहटाएंहम्म्म्म......
जवाब देंहटाएंगहन अभिव्यक्ति.....
अनु
विलक्षण दृष्टि!! अनुत्तर !!
जवाब देंहटाएंshaaandaar... aur saarthak !!
जवाब देंहटाएंबढ़िया कविता
जवाब देंहटाएंतुम्हारी मुक्ति ही उनकी आज़ादी है वाह!!! शानदार गहन भाव अभिव्यक्ति...:)
जवाब देंहटाएंबहुत गहन और सार्थक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग को ब्लॉग एग्रीगेटर "ब्लॉग - चिठ्ठा" में शामिल किया गया है। सादर …. आभार।।
जवाब देंहटाएंबहुत आभार !
हटाएंमुक्त किससे होना है तुम्हें....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सशक्त और प्रभावी.
रामराम.
प्रभावी ... अपनी आजादी पाने को लालायित क्या किसी को सच्ची मुक्ति दे पाएंगे ... ये तो खुद से ही संभव है ...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक और गहन अभिव्यक्ति!!
जवाब देंहटाएंस्वयं से लगाए बंधनों से मुक्ति ही शायद असली मुक्ति होगी .... सुनहरे तमगों को पा निराशाओं को गटकती नहीं है बस बंधनों के बीच घुट जाती है ... ऐसी रचना जिसे जितनी बार पढ़ो एक अलग अर्थ सामने आता है ... सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंvery deep feelings
जवाब देंहटाएंगहन..... ऐसे प्रश्न उद्वेलित करते हैं मन को
जवाब देंहटाएंएक विचारणीय और सटीक पोस्ट.....
जवाब देंहटाएंआपने लिखा....
जवाब देंहटाएंहमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 07/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in ....पर लिंक की जाएगी.
आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....
लिंक में आपका स्वागत है .
धन्यवाद!
बहुत आभार !
हटाएंबहुत आभार !
जवाब देंहटाएंकृपया एक बार यहॉ की यात्रा करें ।
जवाब देंहटाएंhttp://techeducationhub.blogspot.com/
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मन में मुक्ति सतत जलती हो,
जवाब देंहटाएंगाँठें आग्रह में ग़लती हों।
जोरदार अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआभार !
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट...बेहद सुन्दर...वाह वाणीजी
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना की बधाई स्वीकारें !
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर रचना , बहुत ही गहन भाव लिए ..
जवाब देंहटाएंअपनी मुक्तता आप ही करनी होगी ।
जवाब देंहटाएंबहुत प्रभावी रचना ।
बहुत सुंदर लगी कविता
जवाब देंहटाएंतुम्हारी मुक्ति ही उनकी आजादी है !!
जवाब देंहटाएंगहन भाव
क्या समझना है तुम्हे
मुक्त किससे होना है तुम्हे
मुक्ति का मार्ग बताने वाले
मुक्ति के गूंजा देने वाले नारों के बीच
चुप रह जाने वालों की भाषा
तुम समझोगी नहीं
कुछ घुटी -घुटी चीखें
सूनी आंखों से बताती है
तुम्हारी मुक्ति ही उनकी आजादी है !!
सूनी आंखों से बोलती घुटी-घुटी चीखों को सुनने-समझने की सामर्थ्य हर किसी की कहां होती है आदरणीया वाणी जी ?
पीड़ा को स्वर देने वाले बिरले ही होते हैं...
रचना के अंतर में छुपे मर्म तक पहुंचने का प्रयास कर रहा हूं...
साधुवाद !
❣मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
सच मुक्त होना किससे है ये एक यक्ष प्रश्न है .......
जवाब देंहटाएंvery nice.....
जवाब देंहटाएंबहुत सार्थक, गहन और उत्कृष्ट प्रस्तुति...अंतस को झकझोरती लाज़वाब अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंकुछ प्रश्न हैं ....तुम उत्तर हो
जवाब देंहटाएंकुछ बंधन हैं ...तुम मोक्ष हो
वाह!
जवाब देंहटाएंलेखनी कहाँ रख दी आपने ...??
जवाब देंहटाएंबहुत दिन हो गए.
जवाब देंहटाएंकुछ नहीं लिखा ?
लिखिये जी...भयंकर डिमांड है!! :)
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सही कहा है आपने...
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