जो होता है वह नजर आ ही जाता है
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सूरज अपने प्रकाश का विज्ञापन नहीं देता
चन्द्रमा के पास भी चांदनी का प्रमाणपत्र नहीं होता!
बादल कुछ पल, कुछ घंटे , कुछ दिन ही
ढक सकते हैं ,रोक सकते हैं
प्रकाश को , चांदनी को ...
बादल के छंटते ही नजर आ जाते हैं
अपनी पूर्ण आभा के साथ पूर्ववत!
टिमटिमाते तारे भी कम नहीं जगमगाते
गहन अँधेरे में जुगनू की चमक भी कहाँ छिपती है!
जो होता है वह नजर आ ही जाता है देर -सवेर
बदनियती की परते उतरते ही !
(या मुखौटों के खोल उतरते ही !!)
(या मुखौटों के खोल उतरते ही !!)
सही कहा आपने, प्रत्यक्ष को प्रमाण की क्या आवश्यकता?
जवाब देंहटाएंरामराम.
True! Beautifully expressed!
जवाब देंहटाएंखुशबू कब और कहाँ छुपी है ।
जवाब देंहटाएंTrue! Beautifully expressed!
जवाब देंहटाएंसटीक!! और यथार्थ!!
जवाब देंहटाएंदेर हो सकती है पर सदाकाल अंधेर नहीं रहती!!!
प्राकृतिक सौन्दर्य नज़र आता है,बर्बादी नज़र आती है ......... पर आदमी का मारा आदमी देखकर भी नहीं देख पाता कुछ ! प्रकृति में भी वही नज़र आता है,जो बिलकुल सामने होता है - अपरोक्ष में कई रहस्य हैं सूरज के चाँद के तारों के पेड़-पौधों के, ..........................
जवाब देंहटाएंसच में ..... बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंवाह वाणीजी कितनी प्यारी बात कही है ......आवरण सच्चाई को छिपा नहीं सकते ....फिर आवरण जो भी हो....
जवाब देंहटाएंजो होता है ..
जवाब देंहटाएंवो नजर आना भी चाहिए !!
अजी ! ढिठाई भी तो कोई चीज होती है जो उतड़े मुखौटे पर भी मानने को तैयार नहीं होती...
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंजो होता है नज़र आ जाता है ......एक न एक दिन सारे मुखौटे उतर ही जाते हैं ..... सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच कहा आपने ... जो होता है वह नज़र आ ही जाता है
जवाब देंहटाएंवाह वाह !!!बहुत सुंदर प्रस्तुति,,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
बहुत सुन्दर. आवरण कैसा भी दाल दें , समय के साथ सत्य तो बाहर आ ही आता है.
जवाब देंहटाएंसही कहा!
जवाब देंहटाएंआज ही हम सोच रहे थे... कि किसी के विचारों का आईना होता है चेहरा! कितना भी कोई छिपाए... चेहरा सच्चाई की झलक दिखा ही देता है...!
~सादर!!!
सच!!!!!
जवाब देंहटाएंसच कभी छुपता नहीं......
सुन्दर सहज रचना..
अनु
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल बुधवार (08-04-2013) के "http://charchamanch.blogspot.in/2013/04/1224.html"> पर भी होगी! आपके अनमोल विचार दीजिये , मंच पर आपकी प्रतीक्षा है .
सूचनार्थ...सादर!
बहुत आभार !
हटाएंवाह ...क्या सटीक बात कही है.
जवाब देंहटाएंएक शेर याद आ रहा है ...पता नहीं किसका है
सच्चाई छुप नहीं सकती बनावटी उसूलों से
कि खुशबू आ नहीं सकती कागज़ के फूलों से .
लाख छुपाओ छुप न सकेगा, राज़ ये इतना गहरा,
जवाब देंहटाएंदिल की बात बता देता है असली नकली चेहरा!
और इस नकली चेहरे की पोल आपने बड़े सुन्दर प्रतीकों के माध्यम से खोली है!!
सच वो चमकदार शीशा है जो पानी की गहराई में भी चमकता ही रहता है..सुन्दर भाव..
जवाब देंहटाएंसच है ! कोई भी आवरण सत्य को हमेशा के लिये छिपा नहीं सकता ! बहुत सुंदर रचना !
जवाब देंहटाएंरोशनी भी हो और आँख भी, फिर तो दूध का दूध और पानी का पानी। लेकिन नीर-क्षीर विवेक भी आजकल महंगा हो गया है!
जवाब देंहटाएंवाह कितनी सहजता से गहरी बात कही है
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
बधाई
आग्रह है मेरे ब्लॉग का भी अनुसरण करे
http://jyoti-khare.blogspot.in
बहुत खुबसूरत गीत.... सुंदर प्रस्तुति!!
जवाब देंहटाएंवास्तविकता सामने आ कर रहती है !
जवाब देंहटाएंसच कहा है ... जो सच है ... सामने आ ही जाता है ... अनेक प्रयत्नों के बावजूद छिपाए नहीं छिपता ...
जवाब देंहटाएंसमय सबका सच खोल ही देता है।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल सच बात..
जवाब देंहटाएंमुखौटों में जीने से कोई जिम्मेदारी नहीं बनती...जैसे लोग नकाब लगा के लुटते हैं...काश कि मुखौटे ही सामने आयें...और लोग अपनों के अपना होने का भरम पाले जीते चलें जायें...
जवाब देंहटाएंखूबसूरत सोच और सही भी
जवाब देंहटाएंबहुत खूब....
जवाब देंहटाएंसच कहा वास्तविकता कब तक छुपती है बहुत सुन्दर सन्देश देती हुई प्रस्तुति बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत सच कहा है.. मुखोटों से सचाई कब तक छुप सकती है..बहुत सुन्दर और प्रभावी अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसार्थक भावनात्मक अभिव्यक्ति .बधाई . . हम हिंदी चिट्ठाकार हैं.
जवाब देंहटाएंbahut satya...
जवाब देंहटाएंसही बात......सुन्दर कविता........
जवाब देंहटाएंवक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें।
विज्ञापनों की प्रमाण पत्रों की सिर्फ मनुष्यों को छोड़कर और किसी को जरुरत नहीं पड़ती प्रकृति स्वयं प्रमाण है अपने होने का, बेहद सुन्दर लगी रचना ...आभार !
जवाब देंहटाएंजहाँ देखें वही मुखौटे ..कहीं भी विश्वास नहीं मिलता !
जवाब देंहटाएंबधाई !
मुखौटे इस लिए हैं कि सच हर किसी को नहीं सुहाता
जवाब देंहटाएंएक सवैया याद आया
जवाब देंहटाएंसूर्य छिपे अदरी बदरी और चन्द्र छिपे जु अमावस आये .......
केतुह घूंघट काढ रहे पर चंचल नैन छिपे न छिपाए
So true!
जवाब देंहटाएं