खूबसूरत स्मृतियाँ तो अंगराग -सी ही हैं जो छूट जाने पर भी खुशबू और रंगत ही देती हैं ...
फिर भी कभी किसी शाम तन्हाई आकर करीब बैठ जाए तो फिर तन्हाई , शाम , उदासी और हम ...फिर तन्हा रहा कौन !!
हर रोज क्षितिज पर
जब धरती आसमान से
गले मिल कर जुदा होती है ...
आसमान में घिर रहा हल्का अँधेरा
शाम की आँखों से बह रहा हो काज़ल जैसे ...
धीरे धीरे शाम ढलती है स्याह अँधेरे में
अपने साये से लिपटकर
उदास शाम के साथ
अपनी उदासी भी भाती है तबसे ....
एक ही राह के हमसफ़र
जो बन गये हैं
उदासी , तन्हाई , शाम और हम ...
बिना गले मिले
बिछड़े थे हम जबसे
शाम इतनी ही उदास तन्हा है तबसे !!!
हँसी ख़ुशी से कर रही, वर्षों से मनुहार ।
जवाब देंहटाएंमुखड़े पर मुस्कान की, है कबसे दरकार ।
है कबसे दरकार, उदासी तन्हाई है ।
सदा जोहता बाट, संदेशा पहुंचाई है ।
सुन रे ऐ नादान, ख़ुशी जमकर इतराती ।
जहाँ रहे मुस्कान, वहाँ मैं पहले आती ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
इसमें कुछ ऐसा है, जो दिल में अटक गया है।
जवाब देंहटाएंबिम्ब अच्छे बन पड़े हैं।
मनोज कुमार ने आपकी पोस्ट " शाम इतनी उदास तन्हा है तबसे ! " पर एक टिप्पणी छोड़ी है:
जवाब देंहटाएंइसमें कुछ ऐसा है, जो दिल में अटक गया है।
बिम्ब अच्छे बन पड़े हैं।
Aah!
जवाब देंहटाएंशाम सी अपनी उदासी ... बड़ी गहरी दोस्ती है ----- तन्हाइयां बंट जाती है
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ....
जवाब देंहटाएंये शामें , ये उदासी औ ये तन्हाई ...
एक बार आ ,गले से लगा लूँ तुझको
कुछ यादों के परचम भी मैं लहराऊँ औ
अश्क के साथ बहा दूँ खुद को .....
बहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर
एक ही राह के हमसफ़र
जवाब देंहटाएंजो बन गये हैं
उदासी , तन्हाई , शाम और हम ...
और मै .... 5..... शुभ हो जाएगा...
फिर सिर्फ दो होंगे एक मैं और एक आप
ऐसी घटनायें स्मृतियों का स्याह लाती हैं..
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंबिना गले मिले
जवाब देंहटाएंबिछडे थे हम जब से
शाम इतनी ही उदास तनहा है तब से !
वाह ! दिल को छू गयी ये पंक्ति !
बेहतरीन कविता !
आभार !
होली है होलो हुलस, हाजिर हफ्ता-हाट ।
जवाब देंहटाएंचर्चित चर्चा-मंच पर, रविकर जोहे बाट ।
रविवारीय चर्चा-मंच
charchamanch.blogspot.com
शाम , उदासी , तन्हाई...क्या बात है ..बढ़िया कविता.
जवाब देंहटाएंWAH..
जवाब देंहटाएंमिलन बिछुड़ने के लिए होता है।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंगले मिल कर बिछड़े होते तो तेरी महक साथ होती...तब कहाँ तनहा होते.....
कवि के भावों से पाठक को भिगो पाना कविता की सफलता ही है, इस मायने में यह कविता सुन्दर और सक्षम है।
जवाब देंहटाएंअदभुत बिम्ब , शाम और दर्द का || लिखते रहिये
जवाब देंहटाएंबिना गले मिले
जवाब देंहटाएंबिछडे थे हम जब से
शाम इतनी ही उदास तनहा है तब से !
साझा अनुभूति की कविता ...
खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंस्मृति और एहसास
जवाब देंहटाएंप्राकृतिक उपलाम्भो के साथ
बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,बेहतरीन रचना,...
जवाब देंहटाएंफालोवर बनगया हूँ आप भी बने मुझे खुशी होगी.
मेरे पोस्ट आइये स्वागत है,...
NEW POST...फिर से आई होली...
बड़े अकलेपन की कविता ..मन हो रहा है गा पडूं..
जवाब देंहटाएंजब शाम ढले आना जब दीप जले आना ....
होली देहरी लांघ चुकी है अब तो मिलन की बाते करो कवयित्री !
yaade aur ehsaas ...sundar rachna .
जवाब देंहटाएंबहुत ही प्यारी रचना है,बधाई आप को
जवाब देंहटाएंएक शानदार रचना पढ़ने को मिली।
जवाब देंहटाएंबधाइ्र आपकों
.
जवाब देंहटाएंअब तो होली है …
अजी ख़ुश रहिए …
तन्हाई और उदासी से इतर रंग की आपकी अगली रचना की प्रतीक्षा रहेगी…
बिना गले मिले
जवाब देंहटाएंबिछड़े थे हम जबसे
शाम इतनी ही उदास तनहा है तबसे .....
कविता का पोर पोर उस पीड़ा से सराबोर है ...वाह! शब्द नहीं हैं मेरे पास !
I HOPE YOUR EVENING MUST BE CHEERFUL AND FULL OF EMOTIONS AND WITH JOY.
जवाब देंहटाएंBEAUTIFUL EXPRESSION OF EVENING KSHITIJ AND SKY
AND NICE PICTURE.