रविवार, 29 जनवरी 2012

वसंत का स्वप्न








कोयल कुहुक मधुर कानों में
पवन छेड़े आँचल लहराए
कहीं लबों पर दहके पलाश
कही मन आलापिनी ना हो जाए !

सूरज महुए -सा महका है
धरा पीले आँचल शरमाये
नीले बादल ओस झर रही
कहीं मन हरी दूब ना हो जाए!

कहीं कुसुमित कानन नयनों में
मन कहीं तितली बन जाए !
पल्लवित वृक्ष सा मौन आमंत्रण
कहीं मन वल्लरी ना हो जाए !

कही ताल सज रही कुमुदनी
कही मन भ्रमर बन जाए
कहीं मन है सुरभित वृन्दावन
कही मन गोपी ना हो जाए!

कहीं हिलोरे लेता समन्दर
बिखरे गेसू सा काँधे पर
भेद कर विस्तृत शिलाएं
मन सरिता बन ना बह जाए!

नैन ना खोले रैन सुनहरी
धवल ओट पलके झपकाए
यह वसंत का स्वप्न कहीं है
वसंत कहीं स्वप्न ना हो जाए!



48 टिप्‍पणियां:

  1. लता मंगेशकर द्वारा गाया हुआ एक गीत याद आ गया ...

    ओ बसन्ती पवन ...रोको कोई !

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  2. अद्भुत भाव ....अद्भुत आह्लाद देती ...बहुत उत्कृष्ट रचना ....हार्दिक बधाई स्वीकारें ....

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  3. प्रकृति के साथ अल्हड़ सा लहराती शब्द लहरी..

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  4. चौखट पर मधुमास की दस्तक आ गयी
    वासंती बयार ऐसे स्वप्न बनके छा गयी।

    सुंदर रचना

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  5. वसंत अभी-भी शीत की चादर में लिपटा है, मगर स्वप्न नहीं है.. उसके आगमन की पदचाप सुनाई दे रही है नेपथ्य में. और इस गीत के बाद तो उसका रुकना असंभव है!!

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  6. वसन्त का रंग कितनी खूबसूरती से उकेरा है कि मन वसन्तमय हो गया।

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  7. बसंत की खूबसूरत अनुभूति करता मन ..बासंती हो उठा है ..सुन्दर प्रस्तुतिकरण ..

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  8. मंगल-मँजीरा बाजे झन-झन
    ताल पर थिरके बदरा सा तन

    मधुऋतु का फैला है सम्मोहन..

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  9. कल 31/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!

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  10. ऋतू बसंत , कोयल और तुम्हारे गीत ... चहुँ ओर आनंद छायो ...
    सूरज महुए -सा महका है
    धरा पीले आँचल शरमाये
    नीले बादल ओस झर रही
    कहीं मन हरी दूब ना हो जाए!

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  11. बहुत ही खूबसूरत बसंत में बासंती सी कविता.

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  12. पीताम्बर ओढे हुए धरती मधुमास है
    अंबर की छांव तले छाया उल्लास है

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  13. इतनी मीठी कविता पढ़ मन वसंत वसंत सा हो गया

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  14. वाह बहुत खूब ....हर शब्द वासंती रंग में डूबा हुआ

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  15. बसंत का मनोहारी चित्रण।
    दिग्दिगंत, विचरत बसंत !

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  16. बहुत सुन्दर! जैसे सुन्दर चित्र वैसा ही मनोहारी शब्द चित्र!

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  17. वसंत के आगमन का संदेश दे रही है आपकी यह सुंदर कविता...

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  18. बेह्द खूबसूरत दिल मे उतर जाने वाली रचना……………आपको वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!

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  19. मन को बसंती रंग में भिगोता ... मधुर मॉस को अवतरित करता मनमोहक सुन्दर गीत ...

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  20. सुंदर चित्रों और खूबसूरत कविता से पूरा वातावरण बसंतमयी हो गया. बढ़िया प्रस्तुति.

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  21. बसंत की मादकता से बचना दुष्कर है !

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  22. सुंदर चित्रों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति.

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  23. खेलत बसंत राजाधिराज , देखत नभ कौतुक सुर समाज

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  24. bahut sundar aur komal rachna. shubhkaamnaayen.
    नैन ना खोले रैन सुनहरी
    धवल ओट पलके झपकाए
    यह वसंत का स्वप्न कहीं है
    वसंत कहीं स्वप्न ना हो जाए!
    antim pankti mein thodi tees.

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  25. बहुत सुन्दर रचना....
    प्रथम पद में प्रयुक्त शब्द (आलापिनी) पकड़ में नहीं आ रहा...
    सादर.

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  26. सुन्दर वासंती रचना...
    सादर.

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  27. मन आलपीनी न हो जाए ...
    यह प्रयोग नया और अच्छा लगा। आप काव्य भी अच्छा रचती हैं।

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  28. यह वसंत का स्वप्न कहीं है
    वसंत कहीं स्वप्न ना हो जाए!..
    mohak vasanti rachna...:)

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  29. सुन्दर,मन गोपी ही क्यूं राधा क्यों न हो जाए!
    अब बसंत में इतना भी फूंक फूंक कर चलने की जरुरत है तो फिर बसंत आया ही कहाँ ? :)

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  30. मन वृन्दावन हो जाए .....बेहतरीन भाव अनुभाव बिखेरती रचना .

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  31. वाह! अनुपम अनूठा गीत है आपका,वाणी गीत जी.
    मृदुल मृदुल शब्दों और भावों का अदभुत संयोजन.

    शानदार प्रस्तुति के लिए आभार.

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  32. आपकी कविता बहुत ही अच्छी लगी । भावों का समावेश भी रूचिकर लगा । मेरे पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  33. Kayi dino baad upasthit hua hun... samayaabhaav hai is liye blog darshan aaj kal kar nahi paa raha.... mail par hi RSS feed manga kar padh liya karta hun... rachna humesha kee tarah khubsurat... aur sabse achhi antim kee chaar panktiyaan... ek baat aur achhi lagi rachna se mail khate hue chitron ka prayog....

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