मुझे चाय बहुत भाती है ...
हर रंग में हर रूप में
कभी यूँ ही काली कडवी से
कभी उस काली चाय में नीम्बू,
कभी बर्फ ,
कभी दूध डाली चाय
तो कभी उसमे ढेर सारे मसाले
चाय हर रंग में रूप में मुझे बहुत भाती है
कितनी उबाली जाए
कितनी चीनी
कितने मसाले
कितना दूध
किस प्याले में परोसी जायेगी
बनाने वाला ही तय करता है ....
मगर
जिसे पीना हो
चीनी दूध की मात्रा घटा बढ़ा सकता है
और बन जाती है उसके स्वाद की चाय !
जिंदगी भी मुझे चाय सी ही लगती है ...
जिस रंग में हो
जिस रूप में हो बहुत भाती है ...
कितना खौलेगी
कैसा रंग होगा
कैसा स्वाद ...
बाह्य आवरण कैसा होगा
बनाने वाला ही तय करता है ....
मगर
जिसका जीवन है
घटा- बढ़ा सकता है ख़ुशी या आंसूं
और बन जाता है उसके स्वाद का जीवन ....
जिंदगी मुझे चाय -सी ही लगती है
इसलिए हर रंग में मुझे बहुत भाती है ...
sunder prastuti .
जवाब देंहटाएंaap kaisee chay peete hai aur kaisee jindgee jeete hai sabhee kuch to swayam aapkee pasand par nirbhar hai........
Aabhar
सुबह की चाय के संग इसे पढ़ा और ज़िन्दगी का स्वाद आने लगा , कभी कडवी कभी मीठी, कभी स्पेशल , कभी खट्टी , कभी फीकी ... इस रचना की खूबी उस चिंतन की ऊँचाइयों तक ले जाती है जिसने जीवन को करीब से हर कदम पर जाना है
जवाब देंहटाएंवाह ! नई ज्ञानवाणी. सुंदर :)
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDER ,AAPKO SUBHKAAMNAYEN.....
जवाब देंहटाएंचाय में आकंठ डूबे हैं।
जवाब देंहटाएंजिसका जीवन है
जवाब देंहटाएंघटा- बढ़ा सकता है ख़ुशी या आंसूं
और बन जाता है उसके स्वाद का जीवन ....
चाय का बिम्ब और जीवन ... काश सब कुछ घटाना बढ़ाना अपने हाथ में होता ... जो स्वाद चाहते नहीं वैसी भी बन जाती है कभी कभी चाय और उस समय एक ऑप्शन होता है कि चाय को न पिया जाए ..या फिर मुँह बनाते हुए पी ली जाए ... पर ज़िंदगी के साथ यह ऑप्शन नहीं होता ... जीनी ही पड़ती है चाहे जैसी भी बनी हो ज़िंदगी की चाय ...सोचने पर विवश करती ..चिंतन मंथन से निकली खूबसूरत रचना
जिंदगी की चाय के प्याले से तुलना बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंमै तो चाय की रेसिपेस गद्य में पढ़ी थी आप ने तो ...उसको नया ही रंग दे दिया ......आपकी चाय बहुत भा गयी है
जवाब देंहटाएंwaah bahut sundar zindagi wakai ek chaay ka pylaa hai .....behtreen rachna
जवाब देंहटाएंवाह ……चाय सी ज़िन्दगी………बहुत सुन्दर ख्याल्।
जवाब देंहटाएंवाह ! जी,
जवाब देंहटाएंचाय सी ज़िन्दगी…
इस कविता का तो जवाब नहीं !
चाय के एक प्याले ने जीवन की सच्चाई से रूबरू करा दिया, बहुत सुंदर बिम्ब का चित्रण !
जवाब देंहटाएंवैसे मुझे तो सिर्फ कुल्लड वाली चाय ही भाती है :) पर आपकी यह चाय बहुत भायी
जवाब देंहटाएंवैसे तो काली चाय ही पसंद है लेकिन आपकी रचना पढ़ कर हर रंग की चाय पीने का मन करने लगा..ज़िन्दगी और चाय की बहुत सुन्दर तुलना और उतनी ही प्रभावमयी अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंचाय के प्याले और जिंदगी के मेले की वाजिब तुलना में नया रंग उकेरा है .
जवाब देंहटाएंमुझे अदरख की चाय की याद दिला दी । दिल में कुछ-कुछ होने लगा चाय का नाम सुनकर। आशिकी हिलोरें लेने लगी , तो चाय बनाकर ले आई । फिर चुस्कियों के संग टिप्पणियां पढ़ीं। शिखा जी ने कुल्हड़ की याद दिला दी । सोंधी खुशबू आ गयी। लेकिन कुल्हड़ कहाँ से लाऊं ?
जवाब देंहटाएंचाय का प्याला .....और...जिंदगी
जवाब देंहटाएंअच्छी तुलना...गहन भाव .....सुन्दर बिम्ब
सचमुच जिन्दगी चाय के प्याले से ही चलती है!
जवाब देंहटाएंचाय....मुझे भी बहुत भाती है...
जवाब देंहटाएंसुन्दर!!!
वाह! वाह! क्या बात है...जिंदगी एक चाय की प्याली सी...बहुत ही बढ़िया तुलना रही.
जवाब देंहटाएंमेरी पसन्द की चाय और जिन्दगी से तुलना । सुन्दर साम्य...
जवाब देंहटाएंchhay k bahane aapne ek tarah se zindagi ko hi abhivyakt kar diyaa. achchhi rachana k liye badhai...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!! गुरुदेव गुलज़ार साहब ने कहा था ये जीना है अंगूर का दाना/जितना पाया मीठा था,जो हाथ न आया खट्टा है!! आपने इसे चाय की प्याली में समेत दिया.. लेकिन मशहूर कहावत भी है एक..चाय की प्याली में तूफ़ान...
जवाब देंहटाएंचाय कि प्याली और जिंदगी. अच्छा साम्य स्थापित किया है. बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी चाय का प्याला? और मैने आजकल चाय पीनी छोड दी है। सुन्दर भावमय रचना। बधाई।
जवाब देंहटाएंये जीवन भी चाय के प्याले के इर्द गिर्द घूमया रहता है ... सुबह उठने के बाद से सोने तक ....
जवाब देंहटाएंuff ...di chai peete peete ye rachna kar daali kya aapne!!
जवाब देंहटाएंbahut khubsurat!!
चाय की चुस्की की तरह
जवाब देंहटाएंघूँट घूँट पी रहे हैं...
ज़िन्दगी का मज़ा कुछ इस तरह
हम ले रहे हैं...
बड़ी ज़बरदस्त है जी... चाय, ज़िन्दगी की...!
wah. chay par itni achchi kavita....maza aa gaya.
जवाब देंहटाएंहर रंग की चाय जैसा जीवन..... जैसे मेरे ही मन की बात कह दी हो....... जीवन जैसा भी हो उसे भरपूर जी लिया जाए....
जवाब देंहटाएंयही तो खूबसूरती है जीने की.....
टिप्पणी के लिए ब्लॉग़ खुल नहीं रहा इसलिए मेल करना पड़ा..... मेल करने की बेसब्री इसलिए कि आपकी रचना ने तो मन मोह लिया....
मीनाक्षी
बस अब तो यही कामना है कि लोगों का प्यार "टी बैग" बन मिलता रहे और हम उसे अपनी चाय रूपी ज़िन्दगी में डुबो डुबो उसका अर्क लेते रहें ।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना ।
चाय की जीवन से तुलना अच्छा प्रयोग ,बधाई ..
जवाब देंहटाएंवाह! क्या तुलना की है आपने
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बेहतरीन चाय दर्शन।
जवाब देंहटाएंचाय का बिम्ब और जीवन ..बेहतरीन
जवाब देंहटाएंजिंदगी सच में चाय की तरह कितने ही रंग और स्वाद की है ...सबकी अपनी पसंद और अपना जीने का अंदाज...
जवाब देंहटाएंChay to muze bhee behad pasand hai aur jindagee bhee uske sare rangon ke sath chahe we khushee ke hon ya udasee ke.
जवाब देंहटाएंAnokhe andaj kee sunder rachna.
जवाब देंहटाएंवाणी जी सुंदर पोस्ट बधाई चाय मुझे भी पसंद है |
जवाब देंहटाएंजिंदगी तो हर रंग हर रूप में हमें एक सन्देश देती है दोस्त बस जरूरत है नज़रिए की , कि हम उससे कितना सिख सकते हैं वर्ना जिंदगी को समझना इतना मुश्किल भी नहीं |
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसूरत रचना चाय के मीठे घूंट कि तरह | :)
चाय किसे नहीं भाती है
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
I am also very fond of tea. Nice poem.
जवाब देंहटाएंवाह आपकी इस मसाले चाय की चुस्कियां लेते लेते मैं तो खो गया ... क्या बात है ! बहुत सुन्दर रचना और सोच !
जवाब देंहटाएंचाय जिन्दगी है... बिल्कुल सही . सुन्दर प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंजिन्दगी को देखने और समझने का अपना अपना नजरिया.. इस चाय के माध्यम से जिन्दगी का नया रूप देखा आज हमने
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बहुत .... अच्छी प्रस्तुति
चाय और जीवन, कवि की कल्पना को नमन.
जवाब देंहटाएंआपका अंदाजे बयां वाकई निराला है।
जवाब देंहटाएंचाय और प्याले में जिंदगी को ढ़ाला है॥
chaay ko zindgi jaisaa jaan kar
जवाब देंहटाएंbahut sukoon haasil huaa ..
rachnaa kee shaili
apni baat khud hi samajhaa paa rahi hai !
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंजिन्दगी और चाय,वाह! क्या बात है?
जवाब देंहटाएंzindagi mujhe chay si lagti hai
जवाब देंहटाएंkya sunder tulna hai har rang har rup me sunder lagti hai
sahi kaha
rachana
यह अंदाज़ बढ़िया रहा चाय के साथ ....
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें !
very beautiful and unusual comparison of tea and life.
जवाब देंहटाएंI loved it.
चाय, चुस्की और चौबारा, जीवन, मुस्की औ' देह सारा
जवाब देंहटाएंचाय जीवन है तो चुस्की-मुस्कान यह शरीर, चौबारा
मधुरता-प्यार, कसैलापन-तकरार, उष्णता-उमंग,
दुग्ध-श्रृंगार, नींबू-बहार, तरलता--नियति के रंग
कुछ ऐसा भी है जो कभी-कभी बहुत खले
जब खौलती हुई चाय से आत्माराम जले
जिंदगी की चाय के प्याले से तुलना बहुत अच्छी लगी|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चाय।
जवाब देंहटाएंaapne bilkul sahi kaha hai
जवाब देंहटाएंjindagi ko dekhne ka ye bhi ek najariya hai vastutah ham apne roj ke jeevan me jo bhi kaam karte hai wo hame jeevan ke prati ek nayi soch deta hai naya aayam deta hai.....
chai ko aapne udahran ki tarah prastut kiya hai bahut khoobsoorti ke sath
बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह सुबह सुबह चाय का मज़ा आ गया|
जवाब देंहटाएंक्षमा करें... इससे पूर्व की टिप्पणी में दिन गलत हो गया था..!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बृहस्पतिवार के चर्चा मंच चौराहे पर खड़ा हमारा समाज ( चर्चा - 1225 ) में "मयंक का कोना" पर भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार !
हटाएंचाय पी जाए, जिंदगी जी जाए
जवाब देंहटाएंज़िन्दगी की चाय कभी उबलती हुई
जवाब देंहटाएंकभी मुस्कान बनाती
कभी बेकार .................. पर जो हो तुम्हारी यह चाय मुझे बहुत अच्छी लगी
पियो चाय और एंजाय -एक चाय की तलब मुझे फिर चाय वाली तक ले आयी है :-)
जवाब देंहटाएंकुछ और एनालाजीज बताने का मन है मगर जाने दीजिये :-)
चाय तो कभी पी नहीं
जवाब देंहटाएंअच्छी ही नहीं लगी
लेकिन चाय तो वर्षों से
अलग-अलग लोगों के
पसंद का बनाती आ रही हूँ
शायद इस लिए जिन्दगी भी जी रही हूँ
अलग-अलग लोगों के पसंद का ........
वाह ! चाय और ज़िंदगी दोनों की ही कितनी स्वादिष्ट रेसीपी दे दी आपने ! सच अपने हिसाब से खुशी या गम घटा बढ़ा कर हम ज़िंदगी का ज़ायका भी अपने मन माफिक बदल सकते हैं बस थोड़ा सा नज़रिया बदलने की ज़रूरत है ! बहुत प्यारी रचना !
जवाब देंहटाएंआज भी इस कविता को पढ़ कर बिलकुल वही खयाल आए जो मैंने पहले टिप्पणी में लिखे थे ..... कविता पढ़ते हुये नहीं देखा था कि यह पहले की पोस्ट है ..... और सच कहूँ तो याद भी नहीं थी आपकी यह रचना .... जब टिप्पणी के लिए कर्सर आगे बढ़ाया तो देखा कि ज़िंदगी की चाय का मज़ा तो पहले भी लिया जा चुका है :):)
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
बहुत सुन्दर रचना...
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक तुलना की है...
जवाब देंहटाएंएक बारगी लगा कि आज भी सभी लोग ब्लॉग पढ़ते हैं मैं ही एक नहीं पढ़ रही इतने कमेंट आये हैं |बाद में प्रकाशन की तारीख देखी :)
जवाब देंहटाएंचाय सी जिंदगी ! चाय खपती नहीं मुझे कभी भी...शायद जिन्दगी भी....चाय सा घटा बढ़ा लेते जीवन का स्वाद !
जवाब देंहटाएंवाह!!!!
अद्भुत एवं लाजवाब सृजन ।
चाय के साथ ज़िंदगी का फलसफ़ा कितनी सुगढ़ता से रच डाली भै आपने।
जवाब देंहटाएंसुंदर बिंब और बेहतरीन अभिव्यक्ति।
सादर।
चुस्की लेते हुए पिया।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण अभिव्यक्ति।चाय और जीवन का दर्शन।उस पर गुणीजनों की सुन्दर टिप्पणियाँ।वाह !वाह!!!🙏🌺🌺
जवाब देंहटाएं