अपने ही गर्भ में छिपा लो ...सिखा दो ...अभेद्य मंत्र
अनजाने चेहरों वाली
सीमाओं से पार
भाषाओँ से इतर
कई तस्वीरें
देखी ..सुनी ...पहली -पहली बार
तुम्हारे ही संग
उनमे बसा प्रेम
उभरा तब तुम्हारी आँख से
छलका हमारे होठों तक
आज फिर
गया उसी दौर में
पर अबूझ रह गए वो चित्र
जड़ है नायक
स्थिर नायिकाएं
ना वहां युद्ध था
ना प्रेम
था तो बस एक अटूट एकांत
सन्नाटा ! जिसे चीर पाना नहीं मुमकिन मेरे लिए
बिना तुम्हारे
अब अपने ही गर्भ में छिपा लो
जन्म देने से पहले सिखा देना
अवाक हो जाने के चक्रव्यूह से निकलने का अभेद्य मंत्र !
सीमाओं से पार
भाषाओँ से इतर
कई तस्वीरें
देखी ..सुनी ...पहली -पहली बार
तुम्हारे ही संग
उनमे बसा प्रेम
उभरा तब तुम्हारी आँख से
छलका हमारे होठों तक
आज फिर
गया उसी दौर में
पर अबूझ रह गए वो चित्र
जड़ है नायक
स्थिर नायिकाएं
ना वहां युद्ध था
ना प्रेम
था तो बस एक अटूट एकांत
सन्नाटा ! जिसे चीर पाना नहीं मुमकिन मेरे लिए
बिना तुम्हारे
अब अपने ही गर्भ में छिपा लो
जन्म देने से पहले सिखा देना
अवाक हो जाने के चक्रव्यूह से निकलने का अभेद्य मंत्र !
......चंडीदत्त शुक्ल
लौट तो आना ही होगा ....
तुम्हे लौट कर आना ही होगा
कि हो सकूँ
इस अपराध बोध से मुक्त
स्नेहासिक्त हो अनजाने ही कही
मैंने ही तो नहीं दिया
बाधित कर दे जो सृजन
उन अँधेरी गुहाओं को तुम्हारा पता
जिन पर मीलों सफर किया मैंने तनहा
कि अब तो अँधेरे में भी देख सकती थी
उजाले की वह किरण
अँधेरी गुफा के आखिरी छोर से आती है जो
या कहीं
स्नेहाधीन हो
तुम स्वयं ही तो नहीं चले आये कहीं
बिछी बिसात पर चल दिए गए प्यादों की तरह
चक्रव्यूह में घेर लिए जाने से अनजान
जिसे भेदने का गुर अभी तुमने सिखा ही नहीं
लौटना ही होगा तुम्हे
खड़े हो जहाँ अभी इसी वक़्त
उलटे पैरों वहीँ से
कितनी जोड़ी आँखें टिकी है तुम पर
जिनमे है विश्वास
रचोगे तुम ही
काव्य -सृजन का नव इतिहास !
और अब मेरी कविता ...
लौट तो आना ही होगा ....
तुम्हे लौट कर आना ही होगा
कि हो सकूँ
इस अपराध बोध से मुक्त
स्नेहासिक्त हो अनजाने ही कही
मैंने ही तो नहीं दिया
बाधित कर दे जो सृजन
उन अँधेरी गुहाओं को तुम्हारा पता
जिन पर मीलों सफर किया मैंने तनहा
कि अब तो अँधेरे में भी देख सकती थी
उजाले की वह किरण
अँधेरी गुफा के आखिरी छोर से आती है जो
या कहीं
स्नेहाधीन हो
तुम स्वयं ही तो नहीं चले आये कहीं
बिछी बिसात पर चल दिए गए प्यादों की तरह
चक्रव्यूह में घेर लिए जाने से अनजान
जिसे भेदने का गुर अभी तुमने सिखा ही नहीं
लौटना ही होगा तुम्हे
खड़े हो जहाँ अभी इसी वक़्त
उलटे पैरों वहीँ से
कितनी जोड़ी आँखें टिकी है तुम पर
जिनमे है विश्वास
रचोगे तुम ही
काव्य -सृजन का नव इतिहास !
रश्मि प्रभा जी और चंडीदत्त शुक्ल जी की कविताओं से खुद की कविता को जोड़ने का मेरा तात्पर्य हरगिज़ ये नहीं है कि मैं स्वयं को उन्हीकी श्रेणी की कवयित्री मान बैठी हूँ , मेरे आदर्श जरुर हैं इस तरह शब्दों के धनी/शिल्पकार !
............................................................
दोनों ही कवितायें अद्भुत हैं ! अनुपम, बेजोड़, बेमिसाल ! एक में चक्रव्यूह को तोड़ने का अभेद्य मन्त्र सीखने के लिये गर्भ में छिपा लेने का आग्रह है तो दूसरी में वह कहीं चक्रव्यूह में ना फँस जाये इसके लिये उसे सतर्क करते हुए लौट जाने की चेतावनी है ! दोनों कवितायें एक दूसरे की पूरक लग रही हैं ! पहली कविता का प्रत्युत्तर दूसरी कविता में मिल रहा है ! आपने वाकई सच कहा कोई भी प्रश्न अनुत्तरित नहीं रहता बस हम ही कभी-कभी सुनने से चूक जाते हैं शायद ! दोनों कवितायें बहुत खूबसूरत हैं ! आभार एवं शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंआपकी इस कविता के नामाकरण से लेकर उसकी अंतर्वस्तु में निहित कथा तक कविता को एक नया संस्कार देते हैं। एक दर्शन और जीने के हठ का संकेत है।
जवाब देंहटाएंवाह, दोनो कविताएं अद्भुत भाव लिए हैं। बहुत सुंदर।
जवाब देंहटाएंआभार
ati sundar
जवाब देंहटाएंतुम स्वयं ही तो नहीं चले आये कहीं
जवाब देंहटाएंबिछी बिसात पर चल दिए गए प्यादों की तरह
चक्रव्यूह में घेर लिए जाने से अनजान
जिसे भेदने का गुर अभी तुमने सिखा ही नहीं
लौटना ही होगा तुम्हे
...
अब तुम प्रतिध्वनि बन लौटो
या अनुभवों का निनाद बन लौटो
आना होगा तुम्हें
क्योंकि प्रतीक्षारत कई आँखें खड़ी हैं
तुम्हारे लिए !
.........................वाणी जी , आपकी कलम जिस उंचाई पर है , उसकी एक अलग पहचान है . आकाश हमेशा अपना होता है , सूरज , चाँद , सितारे भी अपने अपने होते हैं . आकाश पर जब भावनाओं के बादल घुमड़ते हैं तो बरसते हुए वे कभी आंसू दिखते हैं, कभी शब्द, कभी संभावनाओं की सौंधी गंध !
इस रचना ने भावनाओं को हर रूप में संजोया है ...
बहुत ही सुंदर दो कविताओं का तोहफा पसंद आया
जवाब देंहटाएंआद. वाणी जी,
जवाब देंहटाएं"कितनी जोड़ी आँखें टिकी है तुमपर,
जिनमे है विश्वास
अचोगे तुम ही
काव्य-सृजन का नव इतिहास "
कविता में शिल्प और भाव दोनों ही पूरी प्रखरता से मुखरित हुए हैं !
आभार !
आदरणीय साथी...
जवाब देंहटाएंअद्भुत उपहार। आभार आपका। आप सुंदर लिखती हैं। मुझ अकिंचन की स्वानुभूति को अपनी अहम कविता के साथ शामिल करने का आदर देने पर आभार के लिए शब्द ही नहीं हैं।
दोनो ही कविताये गहन भावो से सराबोर हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिखा है।
जवाब देंहटाएंदोनों ही कविताएँ संवेदनाओं का अनुपम उदाहरण हीं ...
जवाब देंहटाएंलौटना ही होगा तुम्हे
खड़े हो जहाँ अभी इसी वक़्त
उलटे पैरों वहीँ से
कितनी जोड़ी आँखें टिकी है तुम पर
जिनमे है विश्वास
रचोगे तुम ही
काव्य -सृजन का नव इतिहास !
मन की कश्मकश को आदेश रूप दे कर विराम दिया है ..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति
चंडीदत्त जी की कविताएँ तो पढ़ती आई हूँ....बहुत ही गहरे भाव होते हैं.
जवाब देंहटाएंतुम्हारी कविता भी बहुत ही अच्छी है.
काफी साम्य सा है दोनों कविताओं में -अचम्भित करता हुआ..
जवाब देंहटाएंकवि सत्य एक से हो सकते हैं -भले ही अलग देश काल में उपजे हों -
इस कविता की अभिलाषा पूरी हो, यह मंगलकामना है मेरी भी।
जवाब देंहटाएंदोनों ही कविताएँ बहुत सुन्दर लगीं।
भावों में गहराई ही कविता की ऊँचाई है. वाणी जी अद्भुत कविता की लाखों लाख बधाई है
जवाब देंहटाएंदोनों ही स्तरीय कवितायें।
जवाब देंहटाएंdono hi rachnaaye kamaal ki hai jo man par ek jaadu sa kar rahi hain.
जवाब देंहटाएंइन सुन्दर रचनाओं को पढ़वाने के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंदोनों ही कालजयी रचनाओं के लिए अनेकों धन्यवाद और रचनाकारों को नमन..
जवाब देंहटाएंसुन्दर कवितायेँ . दोनों ही भावप्रवण और मानस पटल पर अंकित होने लायक .
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना। इसे पढकर मुझे भी कुछ पुरानी पंक्तियाँ याद आ गयीं।
जवाब देंहटाएंइन बेहतरीन रचनाओं को पढवाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंwah.gazab ka likha hai......
जवाब देंहटाएंअब जिसे पढ़ा है उसे ही आदर्श मानेंगे हम ! बाकी की आगे देखी जायेगी पहले उन्हें पढ़ तो लें !
जवाब देंहटाएंbahut sundar likha hai , kabhi kabhi kisi brachna ka ek shabd hi poori poori nayi rachna gadh jata hai.
जवाब देंहटाएंdonon ke adbhut sangam se upaji nayi kriti ke liye badhai.
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 15 -03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
प्रश्न अनुत्तरित नहीं होते.
जवाब देंहटाएंउनके उत्तर छिपे रहते हैं.
आपने ढूंढ ही दिया एक अनुत्तरित प्रशन का उत्तर.
आपकी कलम की वाणी बहुत ही अद्भुत है.
गिने चुने ब्लॉग हैं यहाँ पर जा कर लगता है कि कुछ पढ़ा है.
माऊस थम जाता है यहाँ आकर.
ढेरों सलाम.
गहन भाव लिए इन स्तरीय रचनाओं को यूँ साझा करने का आभार ..... दोनों ही रचनाएँ बेमिसाल हैं ....
जवाब देंहटाएंदोनों रचनाओं में अद्भुत साम्य है ....भाव और शिल्प पक्ष की दृष्टि से अगर विचार किया जाये तो दोनों रचनाओं का भाव एक दुसरे का पूरक लगता है ..आपका आभार
जवाब देंहटाएं.........................वाणी जी , आपकी कलम जिस उंचाई पर है , उसकी एक अलग पहचान है . आकाश हमेशा अपना होता है , सूरज , चाँद , सितारे भी अपने अपने होते हैं . आकाश पर जब भावनाओं के बादल घुमड़ते हैं तो बरसते हुए वे कभी आंसू दिखते हैं, कभी शब्द, कभी संभावनाओं की सौंधी गंध !
जवाब देंहटाएंइस रचना ने भावनाओं को हर रूप में संजोया है ..
Rashmi di ki uprokt kathan se purntah sahmat:)
aap khud bejor ho..!
aur sayad rashmi di aur shukla sir ke samkaksh bhi...!.
दोनों ही कविताएं भावनाओं के समंदर में बहा ले जाती हैं...बहुत गहन भाव और उनकी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति..बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंdono hi kavitaye ek se badkar ek hai .. jeevan ke naye shabdo se bharpoor ..
जवाब देंहटाएंbadhayi sweekar kare..
---------
मेरी नयी कविता " तेरा नाम " पर आप का स्वागत है .
आपसे निवेदन है की इस अवश्य पढ़िए और अपने कमेन्ट से इसे अनुग्रहित करे.
"""" इस कविता का लिंक है ::::
http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/02/blog-post.html
बहुत गहन भाव और उनकी उत्कृष्ट अभिव्यक्ति|धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंलेकिन मुझे विश्वास है वाणी काव्य सृजन का इतिहास जरूर रचेगी। उत्कृष्ट रचना के लिये बधाई।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी कि कविता मैं पढ़ चुकी थी, परन्तु चंडीदत्त जी कि नहीं... इसलिए सर्वप्रथम, धन्यवाद इस कविता को पढवाने के लिए...
जवाब देंहटाएंआपकी रचना बहुत ही सुन्दर है... और आप जैसे ही लोग काव्य-सृजन का इतिहास लिखते हैं... नया इतिहास...
आभार...
nice poem ..bahut sunder pukar...
जवाब देंहटाएंपढ़ा तो था मेरी टीप भी दर्ज है यहां पर...कैसे भूल गया ?
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