बुधवार, 2 मार्च 2011

अहम् ....हम ...

अहम

मना ले तो करीब आऊँ
गले लग जाए तो मना लूं...
कट जाती है
एक पूरी उम्र
पटरियों -सा साथ चलते
इसी कशमकश में
कई बार
यूँ ही
तन्हा ...


मैं -हम

जिद कहाँ थी कि मै तू ही रहे
मैं मैं ही रहूँ
तू भी तू ही रहे
मगर कभी -कभी
हम भी तो रहें .....


वृक्ष

बसंत में जब
गिर रही हो घनी शाखें
टपाटप
पतझड़ में
झरते पीले पातों का
सोग भी मनाता होगा ??


भय

एक खिड़की
एक भय
कई खिड़कियाँ
कई मुखौटे
बड़ा डराता था...
एक दिन
बंद कर दी
सभी खिड़कियाँ
जड़ दिए ताले
और चाबियाँ फेंक दी समंदर में
कर लेना अब समन्दर से दो हाथ!
भय बड़ा कसमसाता होगा ना ...




...............................................

40 टिप्‍पणियां:

  1. मगर कभी-कभी तो हम रहें...
    बहुत ख़ूब...
    सारी की सारी लाजवाब हैं...

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  2. बसंत का सोग गीत, निर्भय और आत्‍मीय.

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  3. ओह सुन्दर क्षणिकाएँ, आभार.

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  4. यही उलझन जीवनपर्यन्त बनी रहती है। बहुत सुन्दर कवितायें।

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  5. भय बड़ा कसमसाता होगा ना ... ' डर से मुक्ति पाने के लिए लगाया ताला , अब हर वक़्त ये ख्याल , भय बड़ा कसमसाता होगा न ! मन की वह स्थिति जहाँ वह मुक्त नहीं हो पाता , सारे दरवाज़े, खिड़कियाँ बन्द करके भी सोचता जाता है .... बहुत ही बढ़िया

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  6. एक एक क्षणिका कुछ अलग ही एहसास लिए हुए है.

    सादर

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  7. भय बड़ा कसमसाता होगा ना ...Beautiful expression . At times we need to be courageous . It depends on a person's strong will power !

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  8. चंद लाइनों में कही कई गहरी बात सब अच्छी लगी |

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  9. वाह्……आज तो गागर मे सागर भर दिया………सभी शानदार्।

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  10. चारों रचनाएँ बहुत सुन्दर हैं, बहुत ही सुन्दर।

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  11. चारों क्षणिकाएं बहुत ही सुन्दर हैं ..पहली वाली खास अच्छी लगी.

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  12. सारी की सारी क्षणिकाएं काबिल-ए-तारीफ़ हैं.

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  13. 'kat jaati hai
    ek poori umr
    patariyon sa sath chalte'
    wah!konal bhavon ki sundar abhivyakti.
    sabhi kshankayen asardar..

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  14. कट जाती है एक पूरी उम्र....
    शानदार क्षणिकाएं हैं वाणी जी.

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  15. आपकी क्षणिकाएं आपकी बेहतरीन सोच को प्रतिबिंबित करती हैं.अन्य ब्लोगों पर आपके परिपक्व कमेंट्स अक्सर पढता हूँ.

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  16. Ekse badhke ek kshanika!Kaash! Itna sundar kabhi mai bhee likh paun!

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  17. और फ़ेक दी चाबी समन्दर में ,
    भय बहुत कसमसाता होगा ना।

    बेहद सुएन्दर पंक्ति, बधाई।

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  18. कभी हम भी तो रहें .. क्या बात है बहुत खुबसूरत , बधाई

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  19. सभी एक एक बढ़ कर एक ...बहुत पसंद आई मगर कभी कभी हम भी तो रहे .....बहुत बेहतरीन

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  20. मैं मैं ही रहूँ
    तू भी तू ही रहे
    मगर कभी -कभी
    हम भी तो रहें .....


    सभी रचनाएँ बहुत अच्छी लगी...... 'मैं -हम' और 'वृक्ष' बहुत ही पसंद आई

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  21. (१) बात वही पर अंदाज नया ,प्रस्तुति नई ! ये कहना मुश्किल है कि अहम वास्तव में श्रेष्ठता का बोध है या फिर हीन भावना ? लेकिन यह निश्चित है कि सम्बन्धों में असहजता का कारण है !

    (२) कभी उसके तू या मेरे मैं में एकाकार हो जाने से बेहतर क्या हो सकता है :)

    (३) या फिर आज के हालत में उसकी संवेदनायें भी मनुष्यों की तरह भोथरी हो गई हों ?

    (४) क्या यह किसी के 'स्व' / अंतर्मन के एक्सपोज्ड हो जाने को लेकर है या फिर किसी के 'स्व' पर बाह्य हस्तक्षेप के विरुद्ध प्रतिरोध जैसा ?

    बहरहाल चारों रचनाओं से एक बात निसंदेह स्थापित होती है कि रचनाकार कवि भले ही माना जाये पर उससे पहले वो एक दार्शनिक है ! आभार !

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  22. भय बड़ा कसमसाता होगा न ...बहुत खूब ...

    बेहतरीन प्रस्‍तु‍ति ।

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  23. अल्टीमेट.. मज़ा आ गया पढ़कर, क्षणिकाए हमेशा से मुझे पसंद आती है..

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  24. ye aham sach me dampatya jeevan ko tod deta hai...!!

    bahut khub! par sasbe pahlee post ne dil ko chhua..!

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  25. बहुत सुन्दर क्षणिकाएँ, आभार|

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  26. जीवन के हर रंग का एहसास कराती पंक्तियां । बधाई !

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  27. बहुत लाजवाब ... हर क्षणिका ... गहरी दुनियादारी समेटे हुवे .... सच है पूर्णतः हर बात ...

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  28. पटरी सा साथ चलते ...पंक्ति ने वर्षों पहले के पल और ऐसे ही वाक्य को ला खड़ा कर दिया और आपकी छणिका अहम जीवंत हो उठी. अनजाने में ही कोई कभी-कभी बहुत कुछ दे जाता है. धन्यवाद.

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  29. sabse zyada pasand mujhe "bhaiy" aayi

    jab apke andar dar hota hai us samay bhi dar ko jeetne ka ehsaas kamaal hai.

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  30. सारी क्षणिकायें चिंतन योग्य हैं ! मन की हलचल को बहुत ही सुघरता से निरूपित किया है आपने ! 'मैं' और 'तू' के समन्वय और सामंजस्य के साथ 'हम' बन की प्रत्याशा में कभी-कभी सारा जीवन ही व्यतीत हो जाता है ! इतनी सार्थक प्रस्तुति के लिये बधाई एवं शुभकामनायें |

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  31. सभी क्षणिकायें बहुत अच्छी लगी। पहली वाली तो दिल को छू गयी। बधाई।

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  32. कभी कभी कविता आत्म विवेचन ,आत्मालोचन और आत्म प्रवंचना का मार्ग अपनाती हैं तब वे और भी यथार्थपरक बन जाती हैं -इन्ही शेड्स को लिए हैं ये उद्भावनाएँ !

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