पगतलियों के छालों को सहलाते
भींचे लबों सेजब कुछ गुनगुना पाओगे
अश्रु छिपे कितने
मुस्कुराती आँखों के सागर में
तब ही समझ तुम पाओगे .....
रंग रूप यौवन चंचलता से
नजर चुरा कर
जब मिलने आ पाओगे
सौन्दर्य रूह का कितना उज्जवल
कितना पावन
तब ही समझ तुम पाओगे ....
ज़िन्दगी के सत्य को समझना होता है
जवाब देंहटाएंदर्द की गहराइयों से गुजरना होता है ...
ज़िन्दगी के सत्य को समझना होता है
जवाब देंहटाएंदर्द की गहराइयों से गुजरना होता है ...
सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंसच, जो न गुजरा वो न समझ पाया|
जवाब देंहटाएंपगतलियों के छालों को सहलाते
जवाब देंहटाएंभिंचे लबों से
जब कुछ गुनगुना पाओगे...
वाह! सचमुच बहुत सुंदर!!
प्रेम में गहरे उतरकर ही उसे समझा जाता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (17-09-2016) को "अब ख़ुशी से खिलखिलाना आ गया है" (चर्चा अंक-2468) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी इस कविता ने एक उम्मीद पैदा कर दी है मेरे मन में कि ब्लॉग काल को दुबारा जीवित किया जा सकता है.
जवाब देंहटाएंइस कविता के विषय में... महान अंग्रेज़ी कवि शेल्ली ने कहा है कि हैं सबसे मधुर वो गीत जिन्हें हम दर्द के सुर में गाते हैं.. और शायर ने कहा "जिनके होठों पे हँसी, पाँव में छाले होंगे"... इनके बाद मेरे खाने को कहाँ बाकी रहता है कुछ!
बहुत ही सुन्दर!
अप्रतिम सौंदर्य में डूब कर ही पावन प्रेम गुनगुना पाता है कोई ।
जवाब देंहटाएंपगतलियों के छालों को भी तभी सहला पाता है कोई ।
sangeeta ji ki paktiyaan prasangik hai..bilkul sahi keha
जवाब देंहटाएंअसल प्रेम तो मन का प्रेम है ... जो उसे ही देख के आता हिया प्रेम उसको ही समर्पित होता है ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंकम ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं
सुन्दर शब्द रचना
जवाब देंहटाएंhttp://savanxxx.blogspot.in
बहुत खूब , मंगलकामनाएं आपको !
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