मंगलवार, 5 अगस्त 2014

चुभती है आँखों में बहुत हंसती हुई सी लड़कियां ....


चुभती है आँखों में बहुत 
हंसने वाली लड़कियां 
खुश होती गुनगुनाती लड़कियां !

हँसते हँसते एक दूसरे पर गिरती 
दोहरी हुई ठहाकों से 
पेट पकड़कर 
लोटपोट सी होती लड़कियां !!

जब
अपनी ही आंत से रची
कृति पर मुग्ध परमात्मा
उनकी हंसी में शामिल
खुश हो लेता है भरपूर !!


तब उसकी ही बनाई कुछ रचनाएँ
आँखों में खून लिए
ह्रदय की जलन से दग्ध
उबलते
उगलती हैं
लावा , मिटटी और धुआं !!

27 टिप्‍पणियां:

  1. लेकिन यही कविता मैंने आप ही की वाल या ब्लॉग पर पहले भी तो पढ़ी थी न?

    बहुत अच्छी है :)

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  2. पत्थर दिल भी हो तो हँसती बच्चियों को देख गुनगुना उठे
    जिन्हें चुभती है उनका दिल किस चीज का बना होगा ना जाने
    उम्दा रचना हमेशा की तरह

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  3. सच......एक सृजनकर्ता की दो रचनाओं में ही एका नहीं होता....
    बहुत बढ़िया !!
    अनु

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  4. वाणी जी! इस कविता को पढ़कर कुछ भी कमेण्ट करना सम्भव नहीं.. ख़ासकर तब जब मैं स्वयम एक बेटी का बाप हूँ!
    पता नहीं दोष किसका है.. स्रष्टा का या सृष्टि का... यह जानकर लाभ भी क्या...!!

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  5. yahi prakriti ke ansuljhe rahasy hain ....banaanewale ak par itna antar kyon ?

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  6. लड़कियों की हँसी इन लोगों को सहन नहीं होती , उसे हमेशा रोते हुए और बेबस देख कर ही संतुष्ट होते हैं .किसी न किसी प्रकार उसे दबा कर अपने वश में रखने की चाह आदमी को महिषासुर बनाए दे रही है .
    और हमारे यहाँ नारी का सृजन आँत से किया गया है यह नहीं माना जाता ,वह चेतना और (क्रिया)शक्ति की पर्याय रही है .

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  7. लड़कियों के सौंदर्य को बढ़ा देती है उनकी खिलखिलाहट
    और नज़र लगाने को बड़ी लम्बी चौड़ी भीड़ है
    उनकी प्राकृतिक,सहज प्रकृति को मिटने पर तुली है दुनिया

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  8. सच , आँखों में खून ही दीखता है उनकी खिलखिलाहट के बदले

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  9. जिन्हें हँसी नहीं भाती उन्हें मानव कहलवाने का हक नहीं...हँसी ही तो मनुज का पहचान पत्र है..

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  10. कडुवा सच ... शायद इश्वर को भी पता न होगा की ऐसी हो जायेगीं उसकी रची कुछ रचनाएं ...

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  11. होते हैं ऐसे लोग भी जिन्हें लड़कियों की आंसू भरी आँखें और सहमा हुआ चेहरा ही सुख पहुँचाता है ! वे कभी समझ ही नहीं पाते कितने खूबसूरत एहसासों और पलों को खत्म कर देने का गुनाह वे कर रहे होते हैं ! संवेदना से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना !

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  12. क्या कहूं?...मौन हूँ,...सहमी ....,ठिठकी... न जाने कौन हूँ ...

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  13. कभी-कभी इसी सोच में रह जाता हूँ कि कितना अच्छा होता यदि जीवन वो वही सब होता जिससे सबों को शान्ति और सुख मिलता है. लेकिन लगता है कि सहृदयता, करुणा, प्रेम, स्नेह के साथ प्रचुर मात्रा में घृणा, द्वेष, इर्ष्या, डाह ...सब बाँट दिया रचनाकार ने. फिर लगता है कि यही जीवन की गति है. इसे ऐसे ही स्वीकार करना होगा. बस अपनी चाल में किसी कुत्स्य कृत्य को ना आने दें.

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  14. किससे सहन होती हैं हँसती हुई लडकियां :( बेहद संवेदनशील पंक्तियाँ हैं.

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  15. हर घर में नौकरानी सी पल रही है बेटी
    लडकी थी लकडी जैसी क्यों जल रही है बेटी ?
    सम्वेदना कहॉ है यह क्या हुआ मनुज को
    बेबस सी रात - दिन यूँ क्यों रो रही है बेटी ?

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  16. संवेदना से परिपूर्ण बहुत सुन्दर रचना !

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  17. संवेदनायें कहीं गहरे मे भी अपनी छाप छोड जाती है<ं1सुन्दर रचना1

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  18. जिस रचना पर परमात्मा मुग्ध हो उसे उसकी ही दूसरी रचनाएं बिगाडें..............बहुत सुंदर भावुक प्रस्तुति।

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  19. आपकी रचना के हरेक अल्फाज मन में समा गए। आपके भावों की कद्र करते हुए
    आपके जज्बे को सलाम करता हूं। शुभ रात्रि।

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