बुधवार, 14 मार्च 2012

अनुगूँज ---28 काव्य प्रतिध्वनियों का संग्रह

क्या हम मात्र ब्लॉगर हैं या भावनाओं के अनुभवों के सूत्रधार भी !
हम आपस में मिलते हैं जिन एहसासों को जीते हैं दो शब्दों का रिश्ता जोड़ते हैं
वह ईश्वर का आशीष है निरर्थक गौण साथ नहीं
बस समझना है एक दूसरे को बारीकी से
और थाम लेना है हाथ
फिर ...अकेलापन नहीं होगा
दर्द को नया आयाम मिल जायेगा
हर गूँज अनुगूँज को एक आधार मिल जाएगा ...

ब्लॉगिंग की दुनिया से जुड़ना एक अलग रोमांच है जो इन शब्दों में उद्भासित होता है . साथ पढ़ते लिखते सब अनजबी पहचाने से हो जाते हैं , एक पाठशाला की तरह ही . यह आम व्यक्ति की बेलौस, बिना मिलावट अभिव्यक्ति को प्रकट करने का एक स्वतंत्र माध्यम है .साहित्यकार टाईप लोंग कितना ही कह लें कि ब्लॉगिंग ने आम महिला /पुरुष को अपनी सार्वजनिक डायरी लिखने का अवसर दिया है , मधुर सत्य यह है कि ब्लॉगिंग ने आम आदमी की अभिव्यक्ति को मांजने का काम भी किया है . डायरियों की राह से ही सही , ब्लॉगिंग हिंदी साहित्य को पुष्ट ही कर रही है . ऐसे ही कुछ नवोदित ब्लॉगर और जाने माने साहित्यकार ब्लॉगर्स की मिली जुली अभिव्यक्ति है अनुगूँज !

हिंद युग्म द्वारा प्रकाशित रश्मि प्रभाजी द्वारा सम्पादित अनुगूँज 28 काव्य प्रतिध्वनियों का संग्रह है . इन कविताओं में जीवन के हर रंग घुले मिले हैं .

शब्दों की ये प्रतिध्वनियाँ चीटियों की चाल से आईना दिखाते हुए झुग्गियों से पुराने घर होते हुए पापा के जूते और माँ के साथ अपने बचपन को याद कर रिश्तों की परिभाषा निरुपित करती हैं तो वही पार्थ बन जाने का आह्वान करते एहसासों की धरती पर पंचतत्व में लिपटे अज्ञेय मन की वसीयत पढ़ती हैं .

1.शुरुआत इसकी संपादिका रश्मि प्रभाजी की रचनाओं से ही करते हैं .
अपनी कविता " चिंगारी तो भड़काओ " में युवाओं को वैचारिक क्रांति की मशाल थमाते हुए कहती हैं.
शहीदों की मजारों पर मेले लगाकर क्या होगा
यदि एक चिंगारी को आग तुमने ना बनाया .
श्रीकृष्ण ने गीता में अर्जुन को सन्देश दिया था , कुछ ऐसा ही सन्देश है "अर्जुन बनो"
नीति संस्कार जीवन का मूलमंत्र हैं
मगर यदि यह नीतियुक्त समाज के निर्माण में बेड़ियाँ बन जाए
तो इनसे बच निकलना समय की मांग है !
ईश्वर है या नहीं , तर्कशास्त्रियों के लिए तर्क का विषय हो सकता है , मगर आस्थावानों का हर कार्य ईश्वर के निमित्त ईश्वर के आशीष से ही होता है , और ईश्वर के न्याय पर अटूट विश्वास .ऐसा ही दृढ विश्वास है इस कविता में " जाने दो "
जब विश्वास की कमजोर दीवारें गिर जाती हैं
चालाकी के रेंगते कीड़े नजर आते हैं
तब वह न्याय करता है .
वह किसी बात को
जाने नहीं देता है !

2.रश्मि जी की काव्य प्रतिभा पर उनकी माताजी श्रद्धेय सरस्वती प्रसाद जी का वरदहस्त और आशीष है .उनकी कविता " अनुगूँज " इस संकलन का शीर्षक भी है .
सूर्य की प्रथम रश्मि में , भोर की गुनगुनाती हवा में , किल्लोल करती नदी , विशाल सागर , सुरमई शाम या फिर चाँद -सितारे , प्रकृति के कण -कण में उस दाता की छवि विद्यमान है .
" अपने शब्दों के करघे पर
तुम्हारी अप्रतिम छवि बुनती हूँ
तुम सर्वत्र हो "
इनकी कविता दरवेश की आवाज़ आध्यात्मिकता से सराबोर है .रेत की तरह ही जीवन समय की मुट्ठियों से फिसलता है , फिर इस मिट्टी की काया का क्या गुमान !
मिट्टी रेत का यह तन , महल का गुमान
दरवेश की आवाज़ टकराती है चिड़िया रैन बसेरा ...
समझ से ज्यादा इंसान समय से सीखता है . समझदार आदमी में समझ के तयशुदा नियम कानून जितना समझदार नहीं बनाते , उससे कहीं अधिक समय बनाता है .

3. अंजना दयाल अपनी कविताओं पिता के चमकते जूते में उनके होने का एहसास देखती हैं , वही पहले प्यार की मीठी स्मृति में एक ही जीवन में कई जीवन जी लेना का हौसला भी रखते हैं .दो पल के जीवन से एक उम्र चुराने जैसा ही !

4. अंजू चौधरी की कविताओं में जिंदगी के अलग रंग हैं . फूल के छोटे से जीवन के बाद भी फिर से दूसरे फूल का खिलना हौसले और कभी ना टूटने वाली उम्मीद की बयानी है , वहीं मूर्तिकार शिल्पकार के लिए व्यथित भी . इन कलाकारों की पेट की भूख उनकी सबसे सुन्दर कलाकृति भी बिकवा देती है .इन कविताओं में जिंदगी का स्पंदन महसूस जा सकता है .

5. अभिषेक निशांत की कविता शब्द सीखेंगे प्रतिदिन.... कहते हैं शब्द ही सृजन की पहचान हैं , कभी प्रेरणा तो कभी आह्वान हैं .

6. आनद द्विवेदी जी की रचनाओं में करुणा और भावुकता का समावेश है . उनकी महफ़िल में हम ना हुए तो क्या , हमारी दुआएं तो रहेंगी उनके उजालों के लिए ...फिर भी अपने मुकद्दर से उन्हें कोई शिकवा नहीं . देश की वर्तमान परिस्थितियों को इंगित करते हैं कि जन्म से अंधे धृतराष्ट्र और जान बूझकर अंधी हुई गान्धारियों के इस देश में एक संजय की आवशयकता अधिक है जो सत्य की भीतरी तह तक अपनी पहुँच बना सके . गीत गाओ तो शब्द बनकर दर्द यूँ टपकता है उनकी दर्द से भीगी ग़ज़ल में .

7.आशीष अवस्थी सागर कविताओं में ढूंढ रहे हैं अपनी कविता को " मेरी कविता " में .
मैं एक निर्जल सागर में सागर की व्यथा है -
प्रायः विचार करता रहता यह खारापन आया कैसे
मैं सुधा बांटने निकाला था ,फिर मैंने विष पाया कैसे !

8. ब्लॉग जगत को अपनी कविताओं द्वारा साहित्यिक समृद्धि देने वाले एम. वर्मा जी को कौन नहीं जानता . इनकी कविता आईना कोई वस्तु नहीं , बल्कि वह है अपना स्वभाव , आईने में झांकते हमें वही दृष्टिगत होता है जो हम देखना चाह्ते हैं . इसकी चौकस नजरों से अंतर्मन की बंद खिडकियों के दृश्य सजीव हो उठते हैं .
राजनैतिक और आर्थिक मोर्चे पर राजनीति के शिकारियों से लड़ने के लिए पार्थ का आह्वान हैं तो हर दाने के पीछे छिपे जाल से परिंदों को सावधान करने वाली सजगता भी .
लोकतंत्र की नींव में लगी भ्रष्टाचार की दीमक का हवाला देते हुए चिंता वाजिब ही है ...
" ताश के महल से काँपता है मकान
नींव को कुछ लोंग हिला रहे होंगे "

9. किशोरे खोरेन्द्र ...चुप रहने वाली लड़की या कविता , बात एक ही है . मन के सीप में शब्दों के मोती, नयनों से झरते आंसुओं के साथ चुप रह जाने वाली लड़की सी ही है इनकी कविता.

10. देवेन्द्र शर्मा रिश्तों की खूबसूरत परिभाषा बताते हैं . रिश्ते वे भी हैं जो खुली आँखों से नजर आते हैं और वे भी जो दृश्यमान भी हैं मगर अदृश्य से ...जैसे पेड से छाँव का रिश्ता , नदी से किनारों का रिश्ता .
अपनी कविता आईना में एक विपरीत दृष्टिकोण रखते हैं . हमेशा आईना सत्य नहीं दिखाता है , या दिखाता भी है तो अर्थ हम अपने ही निकलते हैं .

11. निपुण पाण्डेय की दौड़ में शामिल होने वाले सभी अपनी मर्जी से शामिल नहीं होते , बल्कि धकियाये जाने के कारण उनके पास अंतहीन दौड़ का कोई विकल्प नहीं है . भीड़ का अंग बनकर दौड़ते एक बेचैनी और बेजारी प्रकट करती हैं . कविता समझ बौनी हो गयी है , में समझदार होने के क्रम में बचपन पीछे छूटता है , और छूट जाती है निष्कपटता और निर्मलता तो विरोधाभास है कि समझ बढ़ी या बौनी हुई .

12. नीलम पुरी की कवितायेँ तुम आओ तो सही , तेरे मेरा हो जाना , यहीं तो हूँ मैं ,तुम मुझे कैसे जिन्दा पाते हो , प्रेम और समर्पण से भीगी हैं .

13. पूजा की कविता "मेरा सब तेरा ही था "में प्रेम की संकरी गली में दो का अस्तित्व एक में समाकर तेरा मेरा हो जाना है .वही " पिछले दिनों " में मुखौटों के पीछे बेनकाब चेहरों की हकीकत एक बार चौंकती भी है मगर यथार्थ से रूबरू होने की आश्वस्ति भी देती है .

14. प्रतीक माहेश्वरी अपनी कविता आत्महत्या में अपने सुख और खुशियों में सरोबार लोगों के आस पास की दुनिया से बेखबर होने की त्रासदी का मार्मिक चित्रण करते हैं .

15. बाबुशा कोहली न्यायसंगत वसीयत से प्रभावित करती हैं .ऐसी वसीयत इससे पहले कही किसी ने नहीं बनाई होगी . अपनी अनूठी वसीयत में वे करती हैं मुक्त हस्त अपनी सम्पदा का विवरण और वितरण इस प्रकार ..स्त्रियों को ख्वाब, वृद्धों को ठहाके , जवानों की विधवाओं को रंग , शायरों को आंसू , अरबपतियों को नींद और भूख , वेश्या को आबरू ,नवयुवकों को आक्रोश , सूफियों को दीवानगी , बाँट देना बराबर ....लालच, क्रोध, झूठ मेरे साथ जला देना ...
बाबुशा अपनी कविता चीटियों में समाजवाद के नाम पर हावी राजतन्त्र पर करारा प्रहार करती हैं !

16. मुकेश कुमार सिन्हा अपनी कविताओं में नॉस्टेलजिक होते हुए बचपन की स्मृतियों में पहुँच जाते हैं और अपनी दादी मैया को सबसे खूबसूरत महिला का ख़िताब देते हुए नहीं हिचकते .

17.राजेंद्र तेला जी की कविता में ठूंठ होते वृक्ष को अपनी पत्तियों के गिरने पर सहअस्तित्व की महत्ता समझ आती है .

18. रामपति जी की कविता दीप गहन तिमिर में एक जुगनू सी प्रकाश की किरण भी आशा के सौ संदेशे लाती है और लघु दीप का झीना प्रकाश ध्रुवतारे सा हो जाता है . सृजन के बीज से पल्लवित कली को देख इनके हर्ष का पारावार नहीं है .

19. वैज्ञानिक वाणभट्ट यदि धरती की पीड़ा से बेखबर नहीं है तो पर्यावरण के लिए इससे बेहतर क्या हो सकता है . ठूंठ होते वृक्ष की पुकार , धरती की पीड़ा , प्रकृति और विज्ञान का संगम हैं कवि !

20. वीणा श्रीवास्तव की कविता एक आम सच्चे हिन्दुस्तानी के मन का प्रतिबिम्ब है . इनकी कविता में शहीदों के चरणों और मजारों पर सभी पुष्प अर्पित कर उन पुष्पों के जीवन को सार्थक कर देने की अभिलाषा है . पीढ़ियों के बीच संवादहीनता को दूर करने का सन्देश भी है उनकी कविता में.

21. शोभना जी आधी आबादी की त्रासदी और अंतर्द्वंद्व को व्यक्त करती हैं .

22. आईना इस कविता संग्रह में कवियों/कवयित्रियों का प्रिय विषय रहा है . शोभा सारडा जी भी दर्पण में वही पाती है जो जिसने दिया है .

23. इंजिनीअर दामाद पाने की ख्वाहिश लिए माँ की चिंता को हास्य का पुट दिया है सत्यम शिवम् ने. यह संभवतः इस संकलन की एकमात्र हास्य कविता है .
प्रेम का रंग ऐसा है जो दोनों पर एक समान चढ़ने पर ही अपनी सम्पूर्ण आभा में प्रकाशवान होता है .मैं तुम्हरे रंग में रंग गया हूँ , प्रेम में रचा बसा गीत है !

24. सीमा सदा जी की तीन कवितायेँ माँ को ही समर्पित हैं .घर से बाहर या हॉस्टल जाती बेटी के लिए नाश्ते सहित पुरी तैयारी करना , भीगी पलकों से दूर तक नजरों से पीछा करना --" माँ , बताओ न , तुम सब कैसे कर लेती हो ,लिखती हो , समझती हो , समझाती हो . तुम ही कृष्ण , तुम ही पार्थ , तुम सीता , तुम सावित्री , तुम यह सब कैसे कर लेती हो मां ...
" माँ जब भी सजदे में होती है
उसकी आँखें नम हो जाती हैं
कहती है मेरे अश्कों को जाने दे
तेरी बलाएँ तो कम हो जाती हैं "

25.सुमन सिन्हा जी ने अभी आखिर बात कही नहीं है क्यूंकि सूरज बनने के लिए धरती भी पास चाहिए .
" दीवारों से रिश्ता " में कहते हैं ..
बीते कल के निशान में सुकून के लिए
मैंने दीवारों से रिश्ता जोड़ लिया है
यादों का रिश्ता दीवारों से है !
कविता " वक़्त की ताकीद " में कहते हैं कि चक्रव्यूह बनाने का मौका देना वक्त की ताकीद है क्योंकि ख़ामोशी में छिपे हैं प्रलय के बादल .

26. सुषमा आहुति ने अपने नाम के अनुरूप ही खूबसूरत कविताओं की आहुति दी है . तुम्हारा हो में अपनी जिंदगी के अँधेरे छिपा लिए हैं , तुम्हरे जीवन में उजालों के लिए . प्रेम का समर्पण है कविता में , मैं नहीं लिखती कविता ,जब भी लिखती हूँ मैं , तुमहरा खयाल कविता बनकर पन्नों पर बिखर जाता है . मेरी बावरी आँखों ने एक ख्वाब देखा है .ख्वाब है तो ही जिंदगी है , ख्वाब की हसरतें , उनके होने या अधूरे रह जाने की दास्तान ही तो जिंदगी है .

27. हेमंत दुबे अन्ना के भ्रष्टाचार हटाओं की मुहीम का समर्थन करते नजर आते हैं अपनी कविता नए युग का महासंग्राम -महाभारत में . भ्रष्टाचार को हमने ही पाला पोसा है और वही अब भस्मासुर सा सबकुछ नष्ट करने चला है .इससे मुक्त होना है तो फिर महासंग्राम होना ही है .
" झुग्गियां " यूँ तो एक दाग है सभ्य समाज पर मगर शहर की बची खुची धडकनों को बचाती भी हैं ये झुग्गियां .

28. काव्य संकलन अनुगूँज में इन नामी गिरामी कवि /कवियत्रियों की सहयात्री बनी है मेरी कुछ कवितायेँ भी ..." स्त्रियों का होना है जैसे खुशबू , हवा और धूप ", मुझे क्षमा करना मेरे रघुराई , बता मेरे मन क्या देखूं क्या ना देखूं , समानांतर रेखाएं , विषकन्या , तुम्हारी आँखें , मेरे तुम्हारे बीच का मौन ....




39 टिप्‍पणियां:

  1. बधाई हो छपने की भी और समीक्षा की भी !

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  2. बहुत बढ़िया विस्तृत समीक्षा....

    आप सभी को बहुत बधाई...
    अनुगूंज एक संग्रहणीय पुस्तक है.

    सादर.

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  3. बधाई इस काव्य संकलन की . ज्यादातर कवियों को पढ़ते रहते है .

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  4. अनुगूँज से अच्छा परिचय मिला ..... बधाई और शुभकामनायें

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  5. बहुत खूबसूरत शुरुआत और उतना ही प्रवहमान अनुगूंज!!!

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  6. सभी को बधाई और सुन्दर समीक्षा की है।

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  7. achchha laga... ye dekh kar ki in pratidhwani me kuchh halki si awaaj meri bhi hai..:)
    dhanyawad di!!

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  8. बढ़िया चर्चा... बढ़िया संकलन... ब्लॉग जगत के प्रतिभाओं से परिचय हुआ...

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  9. बहुत बहुत बधाई..इस काव्य संकलन की
    एक ही जगह इतनी सुन्दर कविताएँ पढ़ने को मिलेंगीं

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  10. 'पढ़ते सभी हैं ; कहीं पर आकाश मिल जाता है और सितारे बिखर जाते हैं ... ' अनुगूँज' की सार्थक समीक्षा इससे बेहतर नहीं हो सकती . हर कवि को एक मजबूत पड़ाव मिला है तुम्हारे शब्दों में . सूक्ष्मता से प्रत्येक रचनाओं को उल्लेख कहता है , ' लिखते , पढ़ते सभी हैं , पर कहीं लिखा विस्तार पा जाता है , कहीं गुम हो जाता है... तुमने एक विस्तृत आधार दिया है, वाकई बहुत बढ़िया

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  11. ब्लॉग जगत का लहराया परचम..

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  12. अनुगूंज को यूँ ... शब्‍दों में उतारना .. अच्‍छा लगा आपकी कलम से यह परिचय ... आभार सहित शुभकामनाएं

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  13. बहुत सार्थक पोस्ट..बधाई!

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  14. बधाई ..सुन्दर संकलन है और आपकी समीक्षा भी.( पुस्तक लॉन्च में व्यस्त थी तो देर हो गई आने में सॉरी :)

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  15. सुन्दर समीक्षा के लिए धन्यवाद ...रश्मि प्रभा जी का ये प्रयास अत्यंत सराहनीय है...

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  16. ब्लॉग की अपनी अलग विधा है, अपना अलहदा साहित्य है, इंटरनेट न होता तो न जाने कितनी प्रतिभाएं उभर कर सामने नहीं आ सकती।शुभकामनाएं

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  17. आलोचना या समालोचना का अर्थ है देखना, समग्र रूप में परखना । किसी कृतिकी सम्‍यक व्‍याख्‍या या मूल्‍यांकन को आलोचना कहते हैं । यह कवि और पाठक के गीच की कड़ी है । इसका उद्देश्‍य है रचना कर्म का प्रत्‍येक दृष्टिकोण से मूल्‍यांकन कर उसे पाठक के समक्ष प्रस्‍तुत करना, पाठक की रूचि परिष्‍कार करना और साहित्यिक गतिविधि की समझ को विकसित और निर्धारित करना ।

    वाणी जी अपनी इस मान्यता के तहत जब देखता हूं तो इस समीक्षा को उस कसौटी पर खरा पाता हूं। इसके बाद जब टिप्पणियों में रश्मि प्रभा जी की टिप्पणी पढ़ता हूं तो उसके बाद कहने को कुछ बचता नहीं,
    फिर भी उनकी कुछ पंक्तियां यहां दुहराना चाहूंगा।

    ओह!

    ताला लगा हुआ है। कोई बात नहीं ... इससे सार्थक समीक्षा हो ही नहीं सकती थी।

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  18. ब्लॉग और डायरी पर अलग से अपने विचार रखना चाहता हूं।
    एक ही प्रश्न - कोई साहित्यकार यह कह सकता है कि उसने डायरी में अपनी रचनाएं नहीं लिखी हो!
    क्या आज का कोई साहित्यकार यह कह सकता है वह ब्लॉग लिखना नहीं चाहता!

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  19. ब्लोगेर्स का अपना संसार ही सही पर ये अनजाना रिश्ता बहुत सकून भी देता है ...
    अनुगूंज की गूँज को आवाज़ दी है आपने इस लाजवाब समीक्षा के द्वारा ... रश्मि जी, आपको और आपके माध्यम से सभी को बहुत बहुत बधाई ...

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  20. बहुत सुंदर और रोचक समीक्षा...

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  21. हिंद युग्म का यह कार्य प्रशंसनीय है। इसकी पहली कृति संभावना डाट काम.. लाज़वाब है। आपकी शानदार समीक्षा से इस कृति को पढ़ने की इच्छा हो रही है।..बहुत बधाई।

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  22. रचनाओं का एक पूरा कोलाज़ और उनकी सहज समीक्षा बिखेरदी आपने इस पोस्ट के पन्नों पर जितना मर्जी जीमों.

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  23. 'अनुगूँज' के लिए रश्मि जी और आपको बधाई.

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  24. सुन्दर समीक्षा...

    बधाई आप सबको...

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  25. .


    आपका श्रम वरेण्य है
    आपकी लिखी सुंदर समीक्षा से पुस्तक का ,रचनाकारों का परिचय मिला
    सभी रचनाकारों सहित आपको दिल से बधाई !

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  26. सुन्दर प्रस्तुति। मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा । धन्यवाद ।

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  27. सुन्दर समीक्षा. समग्र समीक्षा. सम्यक समीक्षा.

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