रख लिया है कानों और आँखों पर हाथ
नहीं सुननी हैं वे आवाजें
नहीं देखना चाहती हूँ वे दृश्य
जो भर रहे है धीरे -धीरे हमारे भीतर
नफरत का जहर
वे चाकू से कुरेद कर निकाल देना चाहते हैं
हमारे कलेजे से
प्रेम का आखिरी कतरा तक ...
हमारे चारों ओर भर देना चाहते हैं ऐसी आग
जो सोख ले
हमारे जिगर से
प्रेम की आखिरी बूँद तक ...
नहीं सुनना चाहती हूँ नहीं देखना चाहती हूँ ...
उन्हें पहुँचाना है इसे फ्लुइड की तरह हमारी नस- नस में
कि हमारे भीतर स्पंदित हृदय बेजान हो जाये ...
हमारे दिमाग की नसों का खून उबल कर आँखों तक उतर आये ...
क्योंकि
हमारा धड़कता दिल
खुला दिमाग
उनके लिए व्यर्थ है ...
उन्हें चाहिए बस कुछ ऐसे खोल
जिनमे भर सके अपना कूड़ा करकट
और लगा दे आग कि
उस धुंए में राख होते रहे हमारे पास- पड़ोस
उन्हें चाहिए बस अस्तित्वविहीन कीट
जो बनाये रख सकते हों उनका वजूद ....
बचपन की किलकारियां
नदी की कलकल
चिड़ियों का चहकना ....
शोर लगता है जिन्हें नहीं सुननी है हमें उनकी आवाजें
जो चाहते हैं हमारे कान अभ्यस्त हो
चीख- पुकार, रोने बिलखने की आवाज़ों के ....
फूलों की खुशबू चुराकर भर देना चाहते हैं
गोला -बारूद ,लाशों की दुर्गन्ध
जिन्हें देता है अनिवर्चनीय आनंद
सूखे पत्तो पर चलने से उपजा संगीत
वे रोक देना चाहते हैं वसंत को ...
कानों को चुभती है उन्हें कोयल की तान
वे पतझड़ के पहरेदार ...
सुन्दर प्रस्तुति, आभार.
जवाब देंहटाएंपतझड़ के पहरेदार, बहुत सुन्दर शब्द दिया आपने।
जवाब देंहटाएंkatra katra bilakhte ehsaas ... per kahan hai wah thaur jahan nahin dikhaai de ye , nahin sunaai de ye
जवाब देंहटाएंअच्छी अभिव्यक्ति , बधाई।
जवाब देंहटाएंपतझड़ के पहरेदार,सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut acchi rachna.... prem ke akhiri katre ko kured kar nikalne jaisi abhivyakti ne hils kar rakh diya
जवाब देंहटाएंबहुत खूब , एक अच्छा पैग़ाम
जवाब देंहटाएंपूरी कविता नए बिम्ब के साथ एक सार्थक अर्थ सामने लाती है ...आपका भर
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया.
जवाब देंहटाएंसादर
आज जिधर देखें हिंसा का तांडव है और जनता अब ऊब चुकी है, उन्हें बदलाव चाहिए आपकी कविता इस परिवर्तन को लाने की एक ईमानदार कोशिश है !
जवाब देंहटाएंआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
जवाब देंहटाएंप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (3/2/2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
पतझड़ के पहरेदार..वाह क्या बात कही है ..
जवाब देंहटाएंखूबसूरत बिम्बो वाली कविता.
bahut hi bhavpoorn sundar prastuti..
जवाब देंहटाएंइस कविता के माध्यम से जो संदेश दिया है आपने उसकी बहुत आवश्यकता है आज समाज में!! प्रेम की नदी जो सूख गई है, उसे फिर से प्रवाहित करने का समय है!! बहुत ही सुंदर रचना!!
जवाब देंहटाएंडिफिकल्ट है...
जवाब देंहटाएंआशीष
कुर्बान जाऊं ! आज तो दिल जीत लिया आपने !
जवाब देंहटाएंइस सार्थक / अर्थपूर्ण कविता की तारीफ के शब्द कम पड़ गए !
dard jhalak raha he, be-intaha dard, sahikaha, nhi sunni hamne wo aawaje,
जवाब देंहटाएंsundar/ kavita, dil kochhuti hui si,
kuch apni si,
sadhabad
बहुत सशक्त प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंआप की कलम को शुभ कामनाएं
पतझड़ के पहरेदार बहुत सुंदर सुंदर वर्णन, शब्दों का चयन और भी सुंदर , बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंपतझड के भी पहरेदार / वाह आज तेवर कुछ तल्ख से लग रहे हैं/ बहुत अच्छी लगी रचना बधाई।
जवाब देंहटाएंbahut hi sarthakta vcharon ke sath sunder prastuti....
जवाब देंहटाएं.
SRIJAN _SHIKHAR
बहुत सही कहा आपने, नहीं चाहिये ऐसे लोग, ऐसे पतझड़ के रखवाले ! एक सार्थक रचना के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंवाह....मन की तल्खियाँ...शब्दों में ढलकर सारा सच उजागर कर गयीं...
जवाब देंहटाएंसच एक गहरी साजिश सा है सबकुछ....सार्थक कविता
bahut sundar , saarthak kavita .
जवाब देंहटाएंमुग्ध हूँ, शानदार बिम्ब, शानदार कविता, सही सन्देश
जवाब देंहटाएंsundar, pasand aai..
जवाब देंहटाएंसच्चाई को आत्मसात करके ठहरे हुए समय का पूरा हिसाब देती हैं आपकी कविता !
जवाब देंहटाएंहर पंक्ति में सच की अभिव्यक्ति का प्रभावी चित्रण !
बहुत ही गहरे विचार।
जवाब देंहटाएं---------
पुत्र प्राप्ति के उपय।
क्या आप मॉं बनने वाली हैं ?
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंआपका शुक्रिया....
और अब तो ये पहरेदारी कुछ ज्यादा ही जोर शोर से हो रही है ...
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना सोमवार. 31 जनवरी 2022 को
जवाब देंहटाएंपांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
संगीता स्वरूप
आभार!
हटाएंयह जो साजिश चल रही है कभी सफल नहीं होगी ,क्योंकि मानव मन की संवेदनाएँ मरी नहीं हैं - रह-रह कर जागती हैं और झकझोर कर जगा जाती हैं,प्रेरित कर जाती हैं सत्यऔर सुन्दर की साधना के लिये.
जवाब देंहटाएंसमाज को मानव, आने वाली पीढ़ी को संवेदनाओं से हीन करने वालों के मुखौटो के नीचे बस तपती आँखे हैं, और जहर से भरा हृदय।
जवाब देंहटाएंश्र्लाघ्य सृजन ।
निशब्द, यथार्थ।
चिंतनीय एवं सार्थक सृजन।
जवाब देंहटाएंपतझड़ के पहरेदार जितनी भी कोशिश कर ले वसंत का आना नहीं रोक सकते।
जवाब देंहटाएंअत्यंत भावपूर्ण संदेशात्मक सृजन।
सादर।
पतझड़ के पहरेदार जितनी भी कोशिश कर ले बसंत आने से रोक नहीं सकेंगे।
जवाब देंहटाएंसारगर्भित सृजन।
सादर
प्रेम के आगे नफ़रत हमेशा हारी है और हारती ही रहेगी, ये नफ़रत फैलाने वाले लाख कोशिश करें।मन के आक्रोश को बहुत ही सुन्दर शब्दों में पिरोया है आपने,सादर नमन
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंवे रोक देना चाहते हैं वसंत को ...
जवाब देंहटाएंकानों को चुभती है उन्हें कोयल की तान
वे पतझड़ के पहरेदार ...
वाह….बहुत खूब!!