बुधवार, 14 जुलाई 2010

व्यथित मत हो कि तू किसी के बन्धनों में है ...

अपनी पिछली प्रविष्टि "एक स्त्री के प्रति " के प्रति पाठकों की उत्सुकता और पसंदीदगी ने हिमांशु की ही एक और कविता से रूबरू करने को विवश किया है ...कवि का परिचय देने जितना मेरा शब्द सामर्थ्य नहीं है ...स्त्रियों के प्रति उनके सम्मान भाव और सामाजिक न्याय के आग्रह ने हमेशा ही प्रभावित किया है ...

व्यथित मत हो
कि तू किसी के बंधनों में है,
अगर तू है हवा सुगंधित है
सुमन के सम्पुटों में बंद होकर
या अगर तू द्रव्य है निर्गंध
कोईसुगंधिका-सा बंद है मृग-नाभि में
या कवित है मुक्तछंदी तू
अगर मुक्त है आनन्द तेरा
सरस छान्दिक बंधनों में
या अगर नक्षत्र है तू
परिधि-घूर्णन ही तुम्हारी लक्ष्य-गति है
या अगर तू आत्मा है
देह के इस मृत्तिका घट में बंधी है,
मत व्यथित हो कि
तू सदा ही बंधनों में व्यक्त है, अभिव्यक्त है ।

25 टिप्‍पणियां:

  1. वाणी जी ,
    इतनी सुन्दर कविता हम तक पहुँचने के लिए आभार ...

    कवि ने सुन्दर शब्दों में स्त्री को घट में बाँध ही दिया है..और यह भी कह दिया कि व्यथित मत हो..यही गति है यही लक्ष्य भी...

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  2. पसंदगी = पसंदीदगी !

    देखिये बंधनों में अभिव्यक्त हों या परिधि में घूर्णन के लिए लक्षित,कवि महोदय सहजीविता और अन्योनाश्रितता आधारित समादृतता पर फोकस कर रहे हैं उनके इससे विचार से कौन असहमत हो सकता है भला ! मुझे लगता है कि यह कविता उभय लिंगी सी है बस जरा से शाब्दिक हेर फेर से ये "एक पुरुष के प्रति" बन जाती है !
    बहरहाल सुन्दर /अर्थपूर्ण कविता हेतु उन्हें धन्यवाद !

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  3. इससे = इस

    और कविता के प्रस्तुतीकरण हेतु आपका धन्यवाद !

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  4. आम परिवेश से अलग .... बौद्धिक सागर

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  5. अन्ततः हर भाव शब्दों के बन्धन में बँधे हैं।

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  6. bahut sundar shilp aur achhee sampreshan kshamta.dhanyawad vaani ji,aapne aisee kavita se roobru kavaya.

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  7. कविता तो मैं पहले ही पढ़ चुका हूँ -मगर कवि है कहाँ इन दिनों ,श्याद आपको पता हो ?
    या यह आह्वान है उसके प्रगटन का !

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  8. इतनी सुन्दर कविता पढवाने का बहुत बहुत शुक्रिया, वाणी .

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  9. @ मैं तो खुद आपसे पूछने वाली थी ....लम्बे समय से चिटठा अपडेट नही है ...!

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  10. Vani ji,

    Itni sundar rachna hume padhwane ke liye aabhar.

    Kavi ne bahut sashakt shabdon mein jo ashwasan diya hai, uske liye kavi ki aabhari hun.

    kavi wahi hai jo apne shabdon se niraash logon mein bharpur asha ka sanchaar kar de.

    bahut oz-mayee kavita ke chayan ke liye vani ji ko naman .

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  11. इतनी सुंदर कविता को शेयर करने के लिए धन्यवाद.

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  12. सुन्दर विचार....सुन्दर कविता.
    ___________________
    'पाखी की दुनिया' में समीर अंकल के 'प्यारे-प्यारे पंछी' चूं-चूं कर रहे हैं...

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  13. इन सारे बंधनों के होते हुए भी वह गरिमामयी है.

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  14. वाह क्या बात है लाजवाब.भाषा,विषय, गति और लय सब कुछ बेमिसाल

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