स्वीकार कर लिया
काँटों के पथ को
पहचाना फ़िर भी
जकड़ लिया बहुरूपी झूठे सच को
कुछ बतलाओ, न रखो अधर में
हे स्नेह बिन्दु !
करते हो समझौता ?
जब पूछ रहा होता हूँ, कह देते हो
'जो हुआ सही ही हुआ' और
'जो बीत गयी सो बात गयी' ,
कहो यह मौन कहाँ से सीखा ?
जो समाज ने दिया
अंक में भर लेते हो
अपने सुख को, मधुर स्वप्न को
विस्मृत कर देते हो
यह महानता, त्याग तुम्हीं में पोषित
कह दो ना, ऐसा मंत्र कहाँ से पाया ?मन के भीतर
सात रंग के सपने
फ़िर उजली चादर क्यों ओढी है तुमने
हे प्रेम-स्नेह-करुणा-से रंगों की धारित्री तुम
स्वयं, स्वयं से प्रीति न जाने
क्यों छोड़ी है तुमने ?मैं अभिभूत खडा हूँ हाथ पसारे
कर दो ना कुछ विस्तृत
हृदय कपाट तुम्हारे
कि तेरे उर-गह्वर की मैं गहराई नापूँ
देखूं कितना ज्योतिर्पुंज
वहाँ निखरा-बिखरा है ।
काँटों के पथ को
पहचाना फ़िर भी
जकड़ लिया बहुरूपी झूठे सच को
कुछ बतलाओ, न रखो अधर में
हे स्नेह बिन्दु !
करते हो समझौता ?
जब पूछ रहा होता हूँ, कह देते हो
'जो हुआ सही ही हुआ' और
'जो बीत गयी सो बात गयी' ,
कहो यह मौन कहाँ से सीखा ?
जो समाज ने दिया
अंक में भर लेते हो
अपने सुख को, मधुर स्वप्न को
विस्मृत कर देते हो
यह महानता, त्याग तुम्हीं में पोषित
कह दो ना, ऐसा मंत्र कहाँ से पाया ?मन के भीतर
सात रंग के सपने
फ़िर उजली चादर क्यों ओढी है तुमने
हे प्रेम-स्नेह-करुणा-से रंगों की धारित्री तुम
स्वयं, स्वयं से प्रीति न जाने
क्यों छोड़ी है तुमने ?मैं अभिभूत खडा हूँ हाथ पसारे
कर दो ना कुछ विस्तृत
हृदय कपाट तुम्हारे
कि तेरे उर-गह्वर की मैं गहराई नापूँ
देखूं कितना ज्योतिर्पुंज
वहाँ निखरा-बिखरा है ।
कविताकोश पर भटकते एक समकालीन कवि की कविता बहुत मन भाई ...स्त्री के गरिमामय व्यक्तित्व को समर्पित !
कवि का परिचय बाद में ...अभी तो कविता को पढ़े और रचनाकार की स्त्रियों के प्रति अगाध श्रद्धा और सम्मान की भावना को नमन करे !
चित्र गूगल से साभार...
एक स्त्री का तेजस्वी स्वरुप.........इसके बाद भी एक स्त्री अनकही शक्ति है , 'महाग्रंथ' की हकदार है. जिसने भी लिखा हो , उसकी सोच को नमन
जवाब देंहटाएंसचमुच कविता ने अंतर्मन में ज्योतिर्पुंज प्रज्वलित कर दिया ..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता है...
कवि को नमन..
स्त्री के प्रति कवि के भाव बहुत गहरे हैं...अच्छी रचना पढवाने का शुक्रिया...
जवाब देंहटाएंsahi kavitaa vahi hai jo dilko chhoo le.kavi koi bhi ho. yah kavitaa saatvik bhav-bodh se bhari hui hai. kai baar kevalkavitaa yaad rah jatee hai, kavi gumnaam rahataa hai.
जवाब देंहटाएंसत्य को चित्रित करती हुई सी प्रतीत हो रही रचना पढवाने के लिए धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंनारी के विभिन्न भावपूर्ण विशेषताओं को बखूबी उकेरा है, रचनाकार ने...उन्हें भी साधुवाद!
आपको शुभकामनाएं...
Bahut bahut shukriya ise pesh karne ke liye! Waqayi stree ke bheetar adbhut kshamata hoti hai..
जवाब देंहटाएंस्त्री के मन की गहराईयो को कोई इतने खूबसूरत अंदाज में पहचान सका है उन्हें साधुवाद |इस खूबसूरत रचना को पढवाने के लिए आपका आभार |
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति ! उस कवि से परिचय भी आप करवाने वाली हैं इसलिए पहले से ही दोगुना आभार !
जवाब देंहटाएंadbhut ...jis tarah ke bhav piroye hain kavi ne ...nissandeh adbhut hain ... inka pairchay bhi zaroor dijiyega..
जवाब देंहटाएंmere aur se bhi wahi soch jo Rashmi di ne kaha hai.....:)
जवाब देंहटाएंअनेक संज्ञाराशियों के उदगार में एक मेरा भी स्वर ..लाजवाब !
जवाब देंहटाएंWakai, adbhut se kam nahi kahunga is vishleshan ko.
जवाब देंहटाएंapka bahut aabhar is kavita ko yahan baantne ke liye...rachayita ko ashesh dhanyawaad.
Wakai jyotirpunj nikhar hi sa gaya.
aabhar
Itni bhavpurna rachna ke liye, Kavi avam prastutkarta dono ka aabhaar.
जवाब देंहटाएंHi..
जवाब देंहटाएंKavita ke bhavon ne humko..
Bandh liya hai kuchh aisa,
sahaj, sulakshan, sundar, sumadhur..
Sheetal geet likha jaisa..
Sundar bhav..
Deepak..
achhi bahut achhi hai aapki pasand.
जवाब देंहटाएंदी... बहुत भावपूर्ण कविता है.... कभी कभी सोचता हूँ की काश मेरी हिंदी भी अच्छी होती....
जवाब देंहटाएंवाणी जी अभिभूत हूँ ये कविता पढ कर। कहो ये मौन कहाँ से सीखा। ----मुझे लगता है कि ये रचना दोनो मे से किसी के के लिये ही हो सकती है ये कविता पात्र औरत हो या पुरुष । धन्यवाद। अद्भुत रचना है। लेखक का नाम जरूर बतायें।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंजब पूछ रहा होता हूँ, कह देते हो
जवाब देंहटाएं'जो हुआ सही ही हुआ' और
'जो बीत गयी सो बात गयी' ,
कहो यह मौन कहाँ से सीखा ?
अच्छा चयन.....कवि से परिचय की प्रतीक्षा है.
स्त्री की संवेदनाएं इस रचना मे मुखरित हैं ।
जवाब देंहटाएंप्रशंसनीय ।
स्वीकार कर लिया काँटों के पथ को ...
जवाब देंहटाएंजकड लिया बहुरूपी झूठे सच को .....
मेरी भी झोली भरी है सवालों से
और सवाल हैं की खत्म ही नहीं होते ......
nari tum keval shradha ho...se ab tak. kavi ka bhi parichay mil jata or achha lagata
जवाब देंहटाएंनमन !!
जवाब देंहटाएं@ स्वयं स्वयं से प्रीति ना जाने क्यों छोड़ी है तुमने
जवाब देंहटाएंवास्तव में स्त्री सारे परिवार से प्रीत करते करते खुद को ही भुला देती है..........अच्छी रचना पढवाने का शुक्रिया...
अच्छी रचना पढवाने का शुक्रिया.
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता पढवाने के लिए धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंistri ke vibhinn roopon ko chitrit karti bhavpurn rachna.....shubhkamna....
जवाब देंहटाएंएक बेहतरीन कविता पढ़वाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंBahut hi sunder rachna......padhkar bahut h i achha lagaa. Iske liye Aapka Dhanyabaad
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंसचमुच प्रशंसनीय भाव हैं, शुक्रिया इसे पढवाने का।
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पॉल बाबा की जादुई शक्ति के राज़।
सावधान, आपकी प्रोफाइल आपके कमेंट्स खा रही है।
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंवाणी जी सचमुच संवेदनशील और भावपूर्ण कविता...बहुत पसंद आई...आप नाम नही बता रहीं है फिर भी मेरा उस कवि के लिए नमन है....सुंदर शब्द संयोजन...बढ़िया रचना ....प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद
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