गुरुवार, 18 जून 2020

गुड़िया की गोद में गुड़िया....


सफ़ेद झक चमकदार 
फ्रिल की फ्रॉक पहने
 एक बच्ची
 मेरे साथ चलती है हमेशा!
बीहड़ सी राह पर 
थक कर बैठने को होती हूँ
पकड़ कर साड़ी की पटलियां
झूले सी लटक जाती है !!
जैसे कि 
लोहे के गेट पर लूमते 
कितने हिंडोले खाये.

शीशे के पीछे जगमगाती
खिलौनों की दुनिया तक 
अँगुली पकड़े खींच ले जाती  है.
बेखौफ़ बेतकल्लुफ़ बतिया लेती है कभी 
कभी ठिठक कर छिप जाती है.

बेध्यानी में 
गुड़िया की गोद में 
लोरी सुनाती गुड़िया 
घर ले आती हूँ.

बच्चे ताली बजा कर खुश हो जाते हैं.
 माँ हमारे लिये गुड़िया लाई...

10 टिप्‍पणियां:

  1. गुड़िया के इर्दगिर्द घूमती तुम और गुड़िया की चमक बच्चों की आंखों में, कितना अनोखा रिश्ता है ... बहुत कुछ कहता है

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  2. जैसे अपने बचपन मैं फिर बच्चों के बचपन मैं खो जाते हैं डूब जाते हैं कविता मैं

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  3. अपना बचपन खोजने जैसा है बच्चों में डूब जाना ...
    बहुत सुंदर भावपूर्ण ... 🙏🙏🙏
    आशा है आपका स्वस्थ ठीक होगा ... मेरी शुभकामनाएँ ...

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  4. भावपुर्ण । सत्यन्त सुंदर ।

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  5. कितने भी बड़े हो लें मन के किसी कोने में अपना बचपन छुपा होता है....
    बहुत ही प्यारा मनमोहक सृजन
    वाह!!!

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  6. कल्पना में भी सच्चाई झलक रही ।
    बचपन की यादें कहाँ पहुँचा देतीं हैं। ।भाव पूर्ण रचना ।

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